आधुनिक समय में धन के महत्त्व को नकारना बहुत कठिन है। मेरे पास आने वाले ज्यादातर लोगों की समस्या या तो धन से जुड़ी होती है या फिर पारिवारिक यथा विवाह-सगाई आदि। धन सभी रोगों की दवा तो नहीं है लेकिन ज्यादातर दुःखों और कष्टों का निवारण धन से किया जा सकता है। केवल सुख और स्वास्थ्य ही है जो कि पूरी तरह से धन से नहीं खरीदे जा सकते हैं।
वास्तु में हमें बहुत से सूत्र प्राप्त होते हैं जो कि धन के सर्कुलेशन को बढ़ाने में सहायक हैं। यहां सर्कुलेशन का अर्थ है कि धन का हाथ में बराबर आते-जाते रहना। इससे कम आमदनी के बावजूद भी व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा बनी रहती है और उसे कार्य सिद्धि मिलती रहती है। मैं अपने प्रिय पाठकों के लिए धन के सर्कुलेशन को बढ़ाने के लिए कुछ सूत्रों को पाठकों को बताना चाहूंगा।
सर्वप्रथम हमें किसी भी भूखंड या घर की ऊर्जा को चैक करना चाहिए। यदि घर में नेगेटिव एनर्जी है तो वहां कभी भी धन का सरकुलेशन नहीं रह पाएगा। यदि पॉजिटिव एनर्जी वाला भूखंड है या भवन है तो धन का सरकुलेशन हमेशा बढ़ता रहेगा और धन संबंधी परेशानी आमतौर पर उस घर में नहीं होगी। इसके अलावा स्थूल रूप से यह भी देखना चाहिए कि घर में वास्तु के मूलभूत सिद्धांतों का पालन किया गया है, तो धन का सरकुलेशन कुछ हद तक बना रहता है। लेकिन यदि वास्तु के मूलभूत सिद्धांतों की अवहेलना की गई है या पंच तत्त्वो का समन्वय नहीं है या आप यह भी कह सकते हैं कि पंचतत्व अपने स्थान पर नहीं है, तो भी धन का सरकुलेशन नहीं होता है।
क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए
- भूमि पर धन के प्रतिनिधि वास्तु देवताओं के स्थान पर नकारात्मक वास्तु नहीं होना चाहिए। जैसे कबाड़खाना, स्टोर, टाॅयलेट और सीढ़ियां आदि नहीं होनी चाहिए।
- अग्नि कोण में पानी का अंडरग्रांउड वाटरटैंक नहीं होना चाहिए।
- ईशान कोण में टाॅयलेट या सीढ़ियां नहीं होनी चाहिए।
- यदि उत्तर मुखी घर है तो उत्तर-पश्चिम में मुख्य द्वार नहीं होना चाहिए।
- यदि दक्षिण या पश्चिम मुखी घर है तो नैर्ऋत्य कोण में मुख्य द्वार नहीं होना चाहिए।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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