क्या है बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व What Is The Mythological Significance Of Basant Panchami?

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क्या है बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व

बसंत पंचमी: सनातन धर्म में उत्सव या त्यौहारों का विशेष महत्व है। सभी त्यौहार हमारे धर्म और आस्था से जुड़े हैं। खास बात यह है कि सभी त्यौहारों का प्रचलन हजारों वर्ष से अनवरत जारी है। समय के साथ उत्सवों को आयोजित करने के तरीकों में हालांकि काफी कुछ परिवर्तन दिखाई देता है, तथापि उत्सवों को मनाने के उत्साह और आस्था में कभी कोई अंतर नहीं आया। जैसे-जैसे भारतीयों ने भौतिक उन्नति की वैसे-वैसे त्यौहारों को लोगों ने अपने अंतर्मन की भावनाओं से स्वीकारा। इसलिए आप कह सकते हैं कि सनातन धर्म में आस्थाओं के आधार पर ही त्यौहारों का सृजन हुआ है। जो परम्पराएं वैदिक काल में थीं, कमोबेश वे आज भी हैं, और भविष्य में भी होंगी।

बसंत ऋतु का आरम्भ

Vasant Panchmi

बसंत पंचमी, मुख्य रूप से देवी सरस्वती की पूजा का दिन है। भारत के अलावा यह नेपाल, श्रीलंका और बंगलादेश में भी कुछ स्थानों पर मनाई जाता है। वैसे तो प्रकृति में शरद, गर्मी, बंसत और वर्षा ये चार प्रधान ऋतुएं हैं। लेकिन प्रकृति ने जो रूप और लावण्य बसंत को दिया है वैसा दूसरी ऋतुओं में नहीं है। बंसत ऋतु में कलियां खिलने लगती हैं। प्रकृति अपने पूरे यौवन पर होती है। मौसम में न तो अधिक गर्मी और न ही अधिक सर्दी होती है। बहुत ही सुहावना मौसम होता है और बसंत पंचमी से इस बंसत ऋतु का स्वागत होता है।

कब है बंसत पंचमी

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सरल शब्दों में बात की जाए तो बसंत पंचमी का उत्सव देवी मां सरस्वती का जन्मोत्सव होता है। इस दिन किसी भी कार्य की शुरूआत करने से उसके सफल होने की संभावना में वृद्धि हो जाती है। इसलिए उत्तर भारत में इस दिन विवाह बहुतायत में संपन्न होते हैं। माना जाता है इसलिए विवाह करने के लिए किसी दूसरे मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है। बसंत पंचमी स्वयं में एक सर्वसिद्ध मुहूर्त है। हालांकि देवी सरस्वती को बुद्धि और विद्या की देवी माना जाता है इसलिए खासतौर पर विद्यालयों और गुरूकुलों में देवी की पूजा के विशेष आयोजन होते हैं। विक्रम संवत में प्रत्येक वर्ष माघ शुक्ला पंचमी को बसंत पंचमी कहा जाता है। अंग्रेजी दिनांक के अनुसार यह दिन 14 फरवरी 2024 को है। हालांकि पंचमी तिथि की शुरूआत 13 फरवरी को दोपहर 2 बजकर 45 मिनिट से हो जायेगी लेकिन किसी भी तिथि का महत्व तभी होता है जब कि वह सूर्योदय के समय हो। इस आधार पर पंचमी तिथि 14 फरवरी को होगी। इसलिए बसंत पंचमी का त्यौहार और पूजा के सभी कार्यक्रम 14 फरवरी को ही संपन्न होने चाहिए।

पूजा कैसे करें

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बसंत पंचमी के लिए देवी सरस्वती की पूजा का शास्त्रीय विधान है। प्रातः स्नान के उपरान्त पीले रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए। देवी सरस्वती की लगभग 3 इंच की प्रतिमा या 9 इंच के चित्र का स्थापित करके दीपक जलाएं और चंदन का तिलक करें। यदि आपके पास सुविधा हो तो किसी विद्वान से श्रीगणेशजी महाराज का स्मरण करवा कर विधिपूर्वक श्री सरस्वती देवी की पूजा करें। यदि यह संभव नहीं हो तो निम्न

प्रार्थना करें

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विद्या की देवी भगवती सरस्वती जो कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर करके विद्या देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।

पौराणिक महत्व

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वैसे तो बसंत पंचमी के संबंध में अनेक तरह के दृष्टांत पुराणों, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में पाए जाते हैं, तथापि देवी शबरी को भगवान श्रीराम ने जब दर्शन दिये वह दृष्टांत सबसे प्रसिद्ध है। मान्यता है कि वह दिन बसंत पंचमी का था और उसके बाद से ही बसंत पंचमी के त्यौहार की शुरूआत हुई। यह घटना त्रेता युग की है। देवी शबरी श्रीराम की भक्ति में इतनी तल्लीन हो गई कि वह चख-चखकर बेर श्रीराम को खिलाने लगी। जिस शिला पर भगवान श्रीराम बैठे थे उस शिला को आज भी पूजा जाता है।

Astrologer Satyanarayan Jangid
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