कृषि कानूनों को लेकर लोकसभा में तमाम विपक्षी पार्टियों ने जोरदार हंगामा किया। बजट सत्र के दौरान लोकसभा में सत्ताधारी भाजपा के दो पूर्व सहयोगियों- शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और शिवसेना सहित प्रमुख विपक्षी दलों की ओर से हंगामा किए जाने के कारण सदन की कार्यवाही कई बार स्थगित करनी पड़ी।
सरकार और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के कई अनुरोधों के बावजूद, विपक्ष ने संसद के मॉनसून सत्र के दौरान पिछले साल सितंबर में लागू किए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए नारेबाजी की। विपक्ष ने केंद्र द्वारा पारित किए गए कानूनों को काले कानून करार दिया और इसे किसान विरोध बताते हुए इन्हें वापस लिए जाने की अपनी मांग दोहराई।
शिअद से हरसिमरत कौर बादल और शिवसेना से अरविंद सावंत ने मोर्चा संभाला और सरकार पर जमकर निशाना साधा। संसद में कृषि अधिनियमों के लागू होने के बाद कौर ने पिछले साल कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके कारण शिअद-भाजपा गठबंधन में दरार आ गई थी।
सदन की कार्यवाही शुरू होते ही स्थगित करने की नौबत आ गई। इसे पहले शाम पांच बजे तक एक घंटे के लिए स्थगित किया गया, जबकि दूसरी बार शाम 7 बजे तक और इसके बार दिन भर के लिए कार्रवाई स्थगित कर दी गई।
तीन बार सदन की कार्यवाही आगे बढ़ाने की कोशिश की गई, मगर हर बार सदन की कार्यवाही शुरू होते ही करीब 10 राजनीतिक दलों के नेताओं की ओर से हंगामा शुरू किए जाने के बाद इसे फिर से स्थगित करने पर मजबूर होना पड़ा।
विपक्षी पार्टी के सदस्य किसान विरोधी बिल वापस लो और किसानों पर तानाशाही नहीं चलेगी जैसे नारे लगाते हुए स्पीकर के पोडियम तक आ पहुंचे।
प्रमुख विपक्षी दलों के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो पूर्व सहयोगियों द्वारा किए गए हंगामे के बीच सदन में कुछ खास कामकाज नहीं हो पाया।
पिछले साल सितंबर में पारित किए गए तीन कृषि कानूनों का जिक्र करते हुए 10 से अधिक विपक्षी पार्टी के सदस्यों ने अध्यक्ष के आसन के पास जाकर नारेबाजी की। विपक्षी नेताओं ने काला कानून वापस लो के नारे लगाए।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार पर ब्रिटिश युग जैसा शासन चलाने का आरोप लगाते हुए, सदन में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने 26 नवंबर को दिल्ली की सीमाओं पर दो महीने से अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन को देखते हुए किसानों के मुद्दे पर बहस कराने का अनुरोध किया और पिछले साल पारित किए गए तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग की।
चौधरी ने कहा, पूरा देश देख रहा है कि किसान सरकार के खिलाफ किस तरह से आंदोलन कर रहे हैं। 170 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है। जिस तरह से किसानों पर अत्याचार हो रहे हैं, ऐसा लगता है कि हम अंग्रेजों के जमाने में चले गए हैं।
उन्होंने कहा कि सबसे पहले किसानों के मुद्दे पर बहस सदन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
चौधरी को कांग्रेस के अन्य सांसदों ने समर्थन दिया, जिसमें भाजपा के पूर्व सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और शिवसेना के सदस्य भी शामिल रहे। उनके साथ ही द्रमुक, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के सदस्यों को भी कानून वापसी की मांग के साथ हाथों में तख्तियां लिए देखा गया।
वाईएसआरसीपी और बहुजन समाज पार्टी के सदस्य भी अपनी सीटों से सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदस्यों से अपनी सीटों पर वापस जाने और सदन को चलने देने का आग्रह किया। उन्होंने मुद्दों को उठाने के लिए उन्हें पर्याप्त समय देने का आश्वासन भी दिया।
वहीं कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार सदन के भीतर और बाहर विपक्ष द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है। तोमर ने सदन की कार्यवाही बाधित करने के लिए विपक्षी नेताओं की निंदा भी की।
तोमर ने कहा, यह सदन असाधारण परिस्थितियों में अपना बजट सत्र आयोजित कर रहा है। विपक्ष को सदन का कीमती समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। सरकार विपक्ष द्वारा उठाए गए हर मुद्दे पर बहस के लिए तैयार है।
लोकसभा अध्यक्ष ने सांसदों को यह समझाने की कोशिश की कि उनके सभी प्रश्नों को सदन गंभीरता से लेगा और जो भी मुद्दा वे उठाना चाहते हैं, उसे व्यक्त करने का पर्याप्त मौका दिया जाएगा। लेकिन, विपक्ष के सदस्यों ने उनके अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया और नारेबाजी जारी रखी।
बिरला ने कहा, आपके सभी सवालों को लिया जाएगा। कृपया अपनी सीटों पर वापस जाएं। मैं आपको सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए पर्याप्त समय दूंगा।
उधर, राज्यसभा में भी कृषि कानून वापस लिए जाने की मांग के साथ हंगामे के कारण कार्यवाही कई बार रोकनी पड़ी और उपराष्ट्रपति और सभापति वैंकेया नायडू ने विपक्ष को शांत करने की कोशिश की। अंत में राज्यसभा की कार्यवाही भी दिनभर के लिए स्थगित करनी पड़ी।