चुनाव आयुक्तों में 'असहमति' के मुद्दे पर मंगलवार को बैठक - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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चुनाव आयुक्तों में ‘असहमति’ के मुद्दे पर मंगलवार को बैठक

आयोग अधिकारी ने बताया, मुख्य चुनाव आयुक्त अरोड़ा पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि लवासा की असहमति को कुछ मीडिया रिपोर्टों में गैरजरूरी रूप से तूल दिया गया है।

चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण में असहमति के फैसले को आयोग के फैसले में शामिल नहीं करने के मुद्दे पर चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की नाराजगी को दूर करने के लिये अगले सप्ताह मंगलवार को आयोग की पूर्ण बैठक आहूत की गई है।

आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शनिवार को बताया, “मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि लवासा की ‘असहमति’ को कुछ मीडिया रिपोर्टों में गैरजरूरी रूप से तूल दिया गया है। यह विशुद्ध रूप से आयोग का आंतरिक मामला है और ‘असहमति’ को दूर करने के लिये 21 मई (मंगलवार) को आयोग की पूर्ण बैठक आहूत की गयी है।”

उन्होंने अरोड़ा के स्पष्टीकरण के हवाले से कहा कि विषय विशेष पर चुनाव आयुक्तों में ‘असहमति’ होना सहज, स्वाभाविक और सामान्य स्थिति है। इसमें विवाद जैसी कोई बात नहीं है। उल्लेखनीय है कि अरोड़ा ने शनिवार को जारी स्पष्टीकरण में चुनाव आचार संहिता की शिकायतों के निपटारे से जुड़ी बैठकों से लवासा द्वारा खुद को अलग करने संबंधी मीडिया रिपोर्टों को ‘नाखुशगवार’ बताया था।

अरोड़ा ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान इस तरह की रिपोर्ट से बचा जाना चाहिये था। अरोड़ा ने कुछ मामलों में लवासा की असहमति संबंधी मीडिया रिपोर्टों को गैरजरूरी बताते हुये कहा कि आयोग की 14 मई की बैठक में भी लोकसभा चुनाव सम्पन्न कराने की प्रक्रिया से संबंधित मुद्दों के निपटारे के लिये पृथक समूह गठित करने का सर्वानुमति से फैसला हुआ था। इसमें आचार संहिता के पालन सहित 13 अन्य विषय शामिल थे।

आयोग के आंतरिक मामलों को लेकर उठा विवाद दुर्भाग्यपूर्ण : चुनाव आयोग

समझा जाता है कि गत चार मई को लवासा ने अरोड़ा को पत्र लिख कर कहा था कि चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण से जुड़ी बैठकों से वह खुद को तब तक अलग रखेंगे जब तक कि उनके ‘विसम्मत फैसले’ को आयोग के फैसले में दर्ज कराने की अनुमति नहीं दी जायेगी। अरोड़ा ने कहा कि आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण से खुद को अलग करने का फैसला लवासा ने ऐसे समय में किया है जबकि आयोग में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान और मतगणना की तैयारियां युद्धस्तर पर चल रही हैं।

उन्होंने कहा, “किसी विषय पर आयोग के तीनों सदस्यों के विचार पूरी तरह से समरूप होना अपेक्षित नहीं है। इससे पहले भी व्यापक पैमाने पर विचारों में अंतर देखा गया है और ऐसा होना स्वाभाविक भी है। लेकिन यह स्थिति हमेशा आयोग के आंतरिक मामलों की परिधि में ही सीमित रही है।”

अरोड़ा ने स्पष्ट किया कि निर्वाचन कानून भी विषय विशेष पर वैचारिक समरुपता को वरीयता देते हैं, लेकिन मतभेद या असहमति की स्थिति में बहुमत से फैसला करने का प्रावधान है। सूत्रों के अनुसार लवासा ने अरोड़ा को लिखे तल्ख पत्र में कहा था कि जब से बैठक में अल्पमत के फैसलों को दर्ज नहीं किया जा रहा है तब से उन्हें मजबूरन खुद को आयोग की बैठकों से अलग करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि उनके असहमति के फैसले को रिकार्ड में दर्ज नहीं करने के कारण बैठकों में उनकी मौजूदगी ‘निरर्थक’ हो जाती है।

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