नवरात्रों के पावन अवसर पर लोग घरों में मां दुर्गा की पूजा करते हैं। मां दुर्गा को अपने घर में 9 दिन तक आराधना करते हैं। आपको बता दें यह तस्वीर श्योपुर जिले की है। श्योपुर में एक वृद्घाश्रम है। नाम है प्रेरणा। यहां कई माताएं ऐसी हैं। जिनके पांच-पांच बेटे होते हुए भी अपनी ही मां को घर से निकाला हुआ है। उन माताओं का अब कोई नहीं है अब उनका ठिकाना सिर्फ वृद्घाश्रम है।
एक वृद्घाश्रम में उन माहिलाओं से बात की जिनके बच्चों ने उनको घर से निकाल दिया है और आज के समय में उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है और हमने उनकी आपबीती के बारे में जाना। श्योपुर से सटे नागदा गांव की कैलाशी सेन (69) 13 जनवरी 2010 से वृद्धाश्रम में है। पति रामचरण का निधन हो चुका है। कैलाशी के पांच बेटे मुन्ना, मुरारी, हनुमान, महावीर और कांतिशंकर हैं।
करीब 10 साल पहले शरीर पर सफेद दाग होने लगे, जो धीरे-धीरे बढ़ते गए। इसके बाद पांचों बेटों ने रोटी देना और मां से मिलना बंद कर दिया। कैलाशी बताती हैं कि उसके पांचों बेटों को डर है कि मुझसे यह रोग उनकी बीवी और बच्चों को लग जाएगा। इसलिए कोई पास नहीं आता। कैलाशी के अनुसार, सात साल पहले उसके पति रामचरण ही उसे वृद्धाश्रम में लाए।
बेटे मालिक और लचार मां बेघर
श्योपुर तहसील के रामबड़ौदा गांव की विद्याबाई सेन (84) पति शंभूदयाल (86) के साथ 3 जुलाई 2012 से वृद्धाश्रम में रह रही हैं।विद्याबाई का बड़ा बेटा बाबूलाल राजस्थान के सुल्तानपुर में वन विभाग का नाकेदार है। छोटा बेटा व्यापारी है वह रामजीलाल माधौपुर में घर जमार्ई बन कर रह रहा है। दोनों ही बेटे अपनी आराम कि जिंदगी बीता रहे हैं लेकिन मां बाप की जिम्मेदारी लेने को कोई भी बेटा आज तैयार नहीं है। इसलिए वह अपना बाकी का जीवन वृद्घाश्रम में गुजारने की ठान ली है।
किसी को अपनी मां से कोर्ई मतलब ही नहीं।
श्योपुर के मेन बाजार में पोस्ट ऑफिस के पास रहने वाले सुशीला बाई 70 साल से आश्रम में रह रहीं है। बकौल सुशीला बाई, उसका बड़ा बेटा तारा सलापुरा में रहता है। उसकी किराने की दुकान और कार भी है। उनके पोते भी काम करते हैं लेकिन उनका हाल चल आज तक भी कोई पूछने नहीं आया है। सुशीला बार्ई के मुताबिक उसका छोटा बेटा सुरेश काम करने के लिए गुजरात से सूरत चला गया। लेकिन अफसोस की बात यह है कि पांच बेटो की मां होने बावजूद भी बेटो को अपनी मां कि कदर नहीं है।