कई महा कवियों ने कहा हैं कि इंसान के पास अगर विद्या हैं तो वो किसी भी मझदार में क्यों न फास जाए उसे उससे निकलने का रास्ता मिल ही जाता हैं। क्योकि जिसके पास विद्या का ज्ञान होगा वो कभी भी किसी भी परीक्षा में खरा उतर सकता हैं। उसके सर पर बस हमेशा माँ सरस्वती का हाथ ज़रूर होना चाहिए, उसके बाद उसे किसी भी कठिनाई का सामना हो ही जायेगा।
पोकरण थार का नाम आता है, तो स्वत: ही दिमाग में रेगिस्तान व रेत के टीलों का दृश्य बनने लगता है, लेकिन किसी ने सोचा होगा कि इन रेतीले धोरों के बीच एक ऐसी भी जगह है, जहां ज्ञान का अथाह भंडार भरा पड़ा है. मरुप्रदेश के तपते रेतीले धोरों के बीच भारत-पाक सीमा पर स्थित सरहदी जिला जैसलमेर वैसे तो विश्व मानचित्र पर अपनी एक अगल ही छाप छोड़ता हैं लेकिन इसके अलावा भी ये कुछ और बातो के लिए लोकप्रसिद्ध हैं।
इसी जिले में जैसलमेर-पोकरण के बीच प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल भादरियाराय माता मंदिर स्थित है। यहां जगदम्बा सेवा समिति ने एक विशाल पुस्तकालय की नींव रखी है.यह एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी है। यहां किताबो की देखरेख संरक्षण तथा उन्हें एक अलग स्थान देने के लिए करीब 562 अलमारियां बनाई गई हैं जोकि खुद में ही एक बड़ा अजूबा हैं, जिसमें लाखों पुस्तकें रखी गई हैं।
यहां 16 हजार फीट की रैक बनाई गई है, उसमें भी पुस्तकों को रखा जाएगा। उन्हें रखने के लिए यहां पर अठारह कमरों का भी निर्माण करवाया गया है। यहां बनी चार गैलेरियों में से दो करीब 275 फीट दो करीब 370 फीट लम्बी हैं। पुस्तकालय में अध्ययन के लिए अलग से एक 60 गुणा 365 फीट के विशाल हॉल का निर्माण करवाया गया है, यहां चार हजार लोग एक साथ बैठ सकते हैं।
7 धर्मो का एक साथ ही हैं सम्मेलन
जी हाँ इस पुस्तकालय कि एक और बात जो आपको बताना अति आवश्यक हैं और वो हैं, इस पुस्तकालय में विश्व के कुल 11 धर्मों में से सात धर्मों का संपूर्ण साहित्य को उपलब्ध होना। कानून की आज तक प्रकाशित सभी पुस्तकें, आयुर्वेद, वेदों की संपूर्ण शृंखलाएं, भारत का संविधान, विश्व का संविधान, जर्मन लेखक एफ मैक्स मुलर की रचनाएं, पुराण, एनसाइक्लोपिडिया की पुस्तकें, आयुर्वेद, इतिहास, स्मृतियां, उपनिषद, साथ ही साथ देश के सभी प्रधानमंत्रियों के भाषण विभिन्न शोध की पुस्तकों सहित हजारों तरह की पुस्तकें यहां उपलब्ध हैं. इसके साथ ही इस पुस्तकालय में अनेको भाषा जैसे हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी भाषाओं के साथ-साथ उर्दू, पारसी, परशियन, अरबी तथा तमिल पांडूलिपि में भी कई पुस्तकों का संग्रहण किया गया हैं।