यहां आज हम बात कर हैं चित्रकूट की रहने वाली कथावाचिका राधिका वैष्णव की जो इन दिनों काफी चर्चाओं में छाई हुई हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एमएससी (मैथ) की पढ़ाई करने वालीं एक साधारण लड़की राधिका अब पूरी तरह से साध्वी का चौला ओढ़े नज़र आ रही हैं। वो कथावाचिका हैं और देश भर में अब भ्रमण कर देशवासियो को श्रीरामकथा सुना रही हैं। इसके पीछे का उनका मैन उद्देश्य यह है कि पूरे देश में जाकर वह लोगों को सनातन के बारे में बताएं और विशेष रूप से युवाओं को सनातन ज़िन्दगी से जोडे और आगे और लोगो को इसकी और बढ़ाए। अगर बात अबकी करे तो इन दिनों वो संगम के किनारे माघ मेले में श्रीरामकथा सुना रही हैं। आप जानकर हैरान होंगे की वो सिर्फ 25 साल की हैं।
मीडिया से बातचीत के दौरान राधिका कहती हैं कि “आज के समय में युवा पीढ़ी सनातन और संस्कृति से दूर होती जा रही है। हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी सनातन को न भूले। इसके लिए हम देश भर में जा-जाकर सनातन का प्रचार प्रसार कर रहे हैं”।
पिता की विरासत को संभाल रही हैं राधिका
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए राधिका बताती हैं कि, उनके पिता महामंडलेश्वर कपिलदेव दास नागा जी महाराज का कुछ महीनो पहले ही निधन हो गया। राधिका का बचपन शुरू से ही उनके पिता संग गुज़रा था। अपने पिता से ही प्रेरित होकर राधिका धर्म और अध्यात्म की तरफ बढ़ने लगी। राधिका के पिता जी चाहते थे कि बेटी अफसर बने तभी तो उन्होंने चित्रकूट जनपद से राधिका को पढ़ाई करने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय भेजा था।
लेकिन राधिका के कदम किसी ओर ही राह के तरफ चलने को इच्छुक थे तभी राधिका ने अपने सनातन धर्म के लिए काम करने का मन बना लिया। और इसे आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। राधिका ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी और एमएससी किया हैं । डिप्लोमा इन योगाचार्य, डीएलएड की पढ़ाई भी की हैं। लेकिन पिता के स्वर्गवासी होने के बाद से ही राधिका ने पूरी तरह से उनकी आध्यात्मिक विरासत संभाल लीं।
विदेशी संस्कृति की ओर बढ़ रही हैं युवा पीढ़ी : राधिका
इसी सब बातो में बातें जोड़ते हुए कथावाचिका राधिका वैष्णव कहती हैं कि आज की युवा पीढ़ी यह नहीं जानती कि भगवान श्रीराम कौन हैं? श्रीकृष्ण कौन हैं? वह विदेशी संस्कृति अपना रही है। हम सनातन की रक्षा युवाओं के जरिए कराना चाहते हैं। तभी हम विशेष रूप से युवाओं पर फोकस करते हुए अलग अलग स्थानों पर रामकथा करते हैं। वह कहती हैं कि आज महिलाएं हर काम में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं, बस इसीलिए वह आगे बढ़ीं और नकारात्मक बोलने वाले लोगों को नजरअंदाज करते हुए कथावाचिका बन गईं। आप राधिका के इस कथन से कितना सहमत करते हैं अपनी राय हमें ज़रूर बताए।