संविधान मूल रूप से किसी भी देश का सर्वोच्च ग्रंथ होता है। यह वो किताब है जिस पर देश की संवैधािनक संरचना टिकी होती है। यह वो किताब भी है जिसमें देश की सामाजिक, राजनीतिक और न्यायिक व्यवस्था का निर्देशन करने के लिए नियम लिखे होते हैं। संविधान ही बताता है कि समाज को चलाने का आधार क्या हो? देश के हर नागरिक के अधिकार कैसे सुरक्षित हों? किसी व्यक्ति के अधिकारों का हनन न हो और सब को समान रूप से आगे बढ़ने का मौका मिले। बाबा साहेब अम्बेडकर ने हमें अधिकारों को लेकर सजग ही नहीं किया बल्कि अधिकारों के लिए जूझना भी सिखाया। उन्होंने एक बार यह भी कहा था कि हमने भगवान के रहने के लिए एक मंदिर बनाया पर भगवान को वहां स्थापित करने से पहले अगर वहां एक राक्षस आकर रहने लगे तो उस मंदिर को तोड़ देने के अलावा चारा ही क्या है? हमने इसे असुरों के रहने के लिए तो नहीं बनाया था। हमने इसे देवताओं के लिए बनाया था। उनके कहने का अभिप्राय यह था कि अगर संविधान सही ढंग से लागू ही नहीं किया जाए तो फिर उस संविधान का फायदा ही क्या है? भारतीय संविधान दुनिया में सबसे लम्बा और सबसे विशाल संविधान है लेकिन यह अन्य देशों की तरह न तो कठोर है और न ही अधिक लचीला। इसमें अब तक कई संशोधन किए जा चुके हैं। हमारे संविधान की मूल संरचना या दर्शन संविधान की सर्वोच्चता, कानून का शासन, शक्तियों के बंटवारे, न्यायिक समीक्षा, धर्म निरपेक्षता, संघवाद, स्वतंत्रता, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता पर आधारित है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने अमेरिका में आयोजित बाबा साहेब की अधूरी विरासत के मुद्दे पर छठे अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए भीमराव अम्बेडकर के संविधानवाद की जमकर तारीफ की। सीजेआई चन्द्रचूड़ को हार्वर्ड लॉ स्कूल के सैंटर ऑन लीगल प्रोफैशन द्वारा वैश्विक नेतृत्व पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने बाबा साहेब को कोट करते हुए कहा कि संविधान कितना भी खराब क्यों न हो लेकिन अगर इसे लागू करने वाले या कामकाज से जुड़े लोग अच्छे होंगे तो यह अच्छा साबित हो सकता है। संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो अगर उसे लागू करने वाले लोग अच्छे नहीं हैं तो वह खराब ही साबित होगा। उन्होंने यह भी कहा कि गहरी जड़ें जमा चुुकी वर्ण व्यवस्था को खत्म करके भारतीय समाज को बदलने और हाशिये पर पड़े समूहों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में भारतीय संविधान ने अहम भूमिका निभाई है। अम्बेडकर की विरासत आधुनिक भारत के संवैधानिक मूल्यों को आकार दे रही है। सामाजिक सुधार और सभी के लिए न्याय की खोज के लिए एक लाइट हाऊस के तौर पर भी काम कर रही है। सीजेआई ने समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर अमेरिका की जमीन पर खड़े होकर खुलकर बातचीत की। उन्होंने कहा कि समलैंगिक की शादियों को मान्यता न देने का मेरा फैसला मेरा अपना फैसला है। कई बार वोट विवेक और कई बार वोट संविधान से होता है। हमारा मानना था कि शादी में समानता के लिए कानूनों से छेड़छाड़ करने के लिए संसद के दायरे में जाना होगा। शादी के अधिकार का कानून बनाने का फैसला संसद के दायरे में आता है।
संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है। संविधान की आत्मा को जीवित रखने के िलए राजनीतिक दलों की भी अहम भूमिका है लेकिन आज हम देख रहे हैं कि अन्तर्विरोध बहुत बढ़ चुके हैं। परस्पर विरोधी विचारधाराएं रखने वाले राजनीतिक दल आमने-सामने हैं। कई राजनीतिक दल जातिवाद की राजनीति करते हैं। जातियों और सम्प्रदायों को लेकर आज भी टकराव है। नागरिकों को भले ही राजनीतिक समता का उद्देश्य तो प्राप्त हो चुका है लेकिन आर्थिक और सामाजिक समता का अभाव साफ नजर आ रहा है। समता न्याय और बंधुता जैसे मूल्यों से निर्ममतापूर्वक खेल किए जा रहे हैं। सभी राजनीतिक दल जातीय ध्रुवीकरण को मजबूत करने और विषमता बढ़ाने में लगे हुए हैं। संविधान कहता है कि सारे भारतवासी देश को अपने पंथ से ऊपर रखें, न कि पंथ को देश से ऊपर। लेकिन ऐसा होने को लेकर वे आश्वस्त नहीं थे, इसलिए अपने आप को यह कहने से रोक नहीं पाये थे। यदि राजनीतिक दल अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ जायेगी और संभवतया हमेशा के लिए खत्म हो जाये। हम सभी को इस संभाव्य घटना का दृढ़ निश्चय के साथ प्रतिकार करना चाहिए। हमें अपनी आजादी की खून के आखिरी कतरे के साथ रक्षा करने का संकल्प करना चाहिए।’
बाबा साहेब की भारतीयता की अवधारणा स्वीकार कर ली गई होती तो आज अप्रिय घटनाएं देखने को नहीं मिलती। वे चाहते थे कि लोग पहले भारतीय हों और अंत तक भारतीय रहें और भारतीय के अलावा कुछ न हों।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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