नई दिल्ली : भारतीय महिला फुटबॉल टीम ओलंपिक 2020 के टिकट की दौड़ से बाहर हो गई है लेकिन महिला टीम ने अंडर 17 वर्ल्ड कप खेलने का टिकट पक्का कर लिया है। चूँकि भारत को मेजबानी मिली है इसलिए वर्ल्ड कप खेलने का हक भी साथ साथ मिल गया है। लगभग पाँच करोड़, 40 लाख की आबादी वाले हमारे पड़ोसी देश म्यांमार ने 130 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत की महिला फुटबॉल टीम को 3-3 की बराबरी पर रोक कर एक बार फिर भारतीय महिला उत्थान और महिला सशक्तिकरण के नारों की पोल खोल कर रख दी। सवाल हार-जीत या बराबरी का नहीं है।
एक ओर तो कहा जा रहा है कि हमारी महिलाएँ दुनियाँ से आगे निकल रही हैं तो दूसरी तरफ आलम यह है कि एक पिद्दी से और हमसे कहीं दिन-हीन देश की फुटबॉल टीम को नहीं हरा सकते। भले ही भारतीय लड़कियों ने एफसी 2020 ओलंपिक क्वालियर मे इंडोनेशिया और नेपाल को हराया लेकिन निर्णायक मुक़ाबले मे म्यांमार से ड्रॉ खेलना और गोल औसत मे पीछे रह जाना बताता है कि देश मे महिला फुटबॉल को लेकर जो दावे किए जा रहे है उनमे ज़रा भी दम नहीं है।
बेशक, महिला फुटबॉल की दुर्दशा के लिए अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन ज़िम्मेदार है, जिसके पास खेल के विकास के लिए कोई समझ या रणनीति नहीं है। नतीजतन अब भारतीय महिला टीमको ओलंपिक मे खेलने के लिए चार साल और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।टोक्यो का टिकट तो हाथ से निकल चुका है।
अर्थात देश का करोड़ों यूँ ही बर्बाद चला गया। पुरुष टीम तो पिछले साठ साल से ओलंपिक वापसी के सपने देख रही है। यदि यही हाल रहा तो महिला टीम भी शायद कभी ओलंपिक मे खेल पाए। यह हाल तब है जबकि एशिया के बहुत से देशों ने महिला फुटबॉल को गंभीरता से नहीं लिया है। ख़ासकर, मुस्लिम देशों की महिलाएँ दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल मे भागीदारी से वंचित हैं।
(राजेंद्र सजवान)