अमेरिका में वर्ष 1968 में जब पुलिस ने वियतनाम युद्ध केखिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को पीटा था तब प्रदर्शनकारियों ने यह नारा बुलंद किया था-‘द होल वर्ल्ड इज वाचिंग’। लेकर नववर्ष के सातवें दिन 53 वर्ष बाद यही नारा जीवंत हो गया, लेकिन दृश्य पूरी तरह उलट था। राष्ट्रपति ट्रंप समर्थकों ने संसद में घुसकर न केवल तोड़फोड़ की बल्कि गोलिया भी चलाईं। अमेरिकी संसद में जो कुछ हुआ पूरी दुनिया ने उसे देखा। दुनिया भर में खुद को लोकतंत्र का ध्वज वाहक बताने वाले अमेरिका में ऐसे होता देखकर सब हैरान रह गए। वैश्विक स्तर पर इस घटना की निंदा की गई। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की वेबसाइट पर अमेरिका को लेकर एक तंज भरा लेख प्रकाशित हुआ है। जिसमें लिखा गया है कि अमेरिका में जो कुछ हुआ, वो उसके कर्मों का ही फल है और उसका लोकतंत्र का बुलबुला फूट गया है। जब हांगकांग में विरोध प्रदर्शन हुए थे तो अमेरिका ने प्रदर्शनकारियों के साहस की प्रशंसा की थी और प्रदर्शनों को खूबसूरत नजारा कहा था। ग्लोबल टाइम्स का यह लेख राष्ट्रपति ट्रंप के शासनकाल में चीन और अमेरिका के तनाव भरे रिश्तो की एक झलक भी है। ट्रंप का कार्यकाल अब शोरशराबे के बीच खत्म होने जा रहा है। कैपिटल बिल्डिंग मे हिंसा के बाद जो कुछ अमेरिका में हुआ उससे यही साबित होता है कि अमेरिका के लोकतंत्र की जड़ें काफी गहरी हैं और कोई भी सनकी और मसखरा राजनीतिज्ञ उसे कमजोर नहीं कर सकता। ट्रंप ने हिंसक तत्वों को भड़का कर न केवल अपनी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई बल्कि पार्ट की विरासत के लिए भी मुसीबतें खड़ी कर दीं। हिंसक उत्पात के बाद कई सांसदों और संगठनों ने ट्रंप को पद से हटाने की मांग कर दी है। ट्रंप को हटाने के लिए उन पर महाभियोग लगाने या 25वें संविधान संशोधन का इस्तेमाल करने की बात कह रहे हैं। 25वें संविधान संशोधन के जरिये ट्रंप को पद से हटाना आसान होगा। ट्रंप के कार्यकाल में सिर्फ अब कुछ दिन ही बचे हैं, ऐसे में महाभियोग का विकल्प बहुत ज्यादा व्यावहारिक नहीं होगा।
ट्रंप की अपनी पार्टी रिपब्लिकन पार्टी के कई नेता भी उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं। ट्रंप को 20 जनवरी तक भी पद पर बने रहने के लिए अयोग्य कहा जा रहा है और यह भी कहा जा रहा है कि उनके कार्यकाल का एक-एक सैकेंड कानून व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। अमेरिका के उपराष्ट्रपति माइक पेंस से कैबिनेट बैठक बुलाकर 25वां संविधान संशोधन को लागू करने और ट्रंप के बचे कार्यकाल की जिम्मेदारी सम्भालने का आग्रह किया जा रहा है। हिंसक घटनाओं के बाद जिस तरह से हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सीनेट के संयुक्त सत्र में दो घंटे चली बहस के बाद राष्ट्रपति पद के लिए जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस के निर्वाचन की पुष्टि की तह भी साबित करती है कि अमेरिका में संविधान की ही सत्ता चलती है। खास बात यह है कि पार्टी सांसदों के क्रास पार्टी लाइन जाकर सत्यापन का समर्थन किया। इस तरह सांसदों ने दुनिया भर को यह भी दिखा दिया कि ‘अमेरिका एक है।’
अब सवाल उठ रहा है कि जो कुछ भी हुआ उससे क्या अमेरिका जल्द उबर पाएगा? इतना जरूर है कि अमेरिकी समाज में फूूट, नस्लवाद और बाहर वालों के खिलाफ जो बीज ट्रंप ने अपने चार वर्षों में बोया है उसकी फसल आसानी से निर्मूल नहीं होने वाली। जो कुछ भी उनके कार्यकाल में हुआ उससे अमेरिका की लोकतांत्रिक परम्परा और प्रतिष्ठा को आघात लगा है। खुद को हारता देख अमेरिका की चुनाव व्यवस्था की तुलना तानाशाही परम्परा वाले पिछड़े देशों से करते-करते ट्रंप ने अमेरिका को सचमुच उन्हीं देशों की श्रेणी में पहुंचा दिया। सारी लोकतांत्रिक परम्पराओं और मूल्यों को ताक पर रखकर सच्चे अमेरिका की रक्षा करते-करते वे अमेरिका को ऐसे रसातल में ले गए जहां उसे उबार पाना बाइडेन-हैरिस सरकार के लिए कड़ी परीक्षा साबित हो गई। ट्रंप पूरे जीवन भर एक अवसरवादी कारोबारी और शौमैन रहे हैं। इसलिए उन्होंने अपने हित में मनमाने फैसले करते हुए अमेरिका को एक पारिवारिक कम्पनी की तरह चलाना ही समझा जा सकता है लेकिन हैरानी की बात है कि रिपब्लिकन पार्टी की राजनीति के धुरंधर नेता उनकी मनमानियों पर खामोश रहे। कैपिटल पर हमले के बाद ही रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों और सीनेटरों काे होश आया और उन्होंने एक स्वर से हमले की निंदा की और दंगाइयों के सामने घुटने टेकने से इन्कार कर दिया। रिपब्लिकन पार्टी को अब करिश्माई नेता को खोजना होगा जो ट्रंप के कारण खोये जनाधार को वापिस ला सके। साथ ही जो बाइडेन और कमला हैरिस का प्रयोग करते हुए बड़ी सावधानी से राष्ट्रीय औरअन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाना होगा। देश में बढ़ती वैचारिक कटुता औ नस्लवादी भावनाओं को शांत करना होगा। ट्रंप ने अपनी मनमानी और अदूरदर्शी नीतियों से पैदा हुए टकराव को खत्म करना होगा। कोरोना वायरस जैसी महामारियों से बचने और जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग जुटाना होगा। लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को सम्भालना तथा यूरोप और दूसरे मित्र देशों के साथ बिगड़े रिश्तों को सुधारना होगा। चीन और ईरान से बढ़ते टकराव की स्थिति में संसदीय बहुमत के आधार पर नहीं बल्कि सर्वदलीय सहयोग और विश्वास हासिल कर फैसले लेने होंगे। जाते-जाते ट्रंप ने जो बाइडेन के लिए कांटे बिछाने का काम किया। प्रवासियों के मसले सुलझाने होंगे। सनकी ट्रंप का कोई भरोसा नहीं, इस लिए उन पर पुनः चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई ही जानी चाहिए। बाइडेन और हैरिस का अपना कार्यकाल चुनौतियों से भरा होगा।