विपक्षी दलों ने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को लाभ देने के लिए जल्दबाजी में उनके लिए आरक्षण संबंधी विधेयक लाने का आरोप लगाते हुये आज कहा कि उसका मकसद इसके जरिये आम चुनाव में राजनीतिक लाभ अर्जित करना है।
लोकसभा में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों तथा उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए 10 प्रतिशत तक आरक्षण देने वाले ‘‘124वां संविधान संशोधन विधेयक, 2019’ पर चर्चा की शुरुआत करते हुये कांग्रेस सदस्य के.वी। थॉमस ने कहा कि यह विधेयक राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इस तरह के विधेयक लाकर एक तरह से संसद पर भी दबाव बनाने का प्रयास कर रही है और उसका यह प्रयास लोकतंत्र पर कुठाराघात है।
उन्होंने सरकार पर संसद के प्रति सम्मान में कमी का आरोप लगाया और कहा कि सरकार जल्दबाजी में यह विधेयक लायी है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति को सौंपना चाहिये और एक माह बाद इसे सदन में चर्चा के लिए पेश करना चाहिये।
गरीबों के लिए 10 % आरक्षण वाला संविधान संशोधन विधेयक पेश , बिल पर चर्चा जारी
भारतीय जनता पार्टी के अरुण जेटली ने इस विधेयक को कांग्रेस की परीक्षा लेने वाला बताया और कहा कि उसने अपने घोषणा पत्र में इन तबकों को आरक्षण देने की बात की है और उसे इस विधेयक को पारित कराने में मदद करनी चाहिये। उन्होंने कहा कि यह गरीबों के हितों को साधने का प्रश्न है और कांग्रेस ही नहीं, सभी दलों के सदस्यों को गरीबों की मदद के लिए आगे आकर इस विधेयक को पारित करना चाहिये। उनका कहना था कि इस तरह के मुद्दों पर किसी भी दल को सिर्फ घोषणाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिये।
अन्नाद्रमुक के थम्बी दुरै ने कहा कि आरक्षण सिर्फ सामाजिक रूप से कमजोर लोगों को ही दिया जाना चाहिए। उनका कहना था कि तमिलनाडु में 90 फीसदी लोग सामाजिक रूप से पिछड़ हैं। वह खुद चौथे वर्ण से संबद्ध हैं। उनके लोगों को हजारों साल से दबाकर रखा गया है, इसलिए उन्हें सामाजिक अधिकार मिलने चाहिये। इसके लिए उन्हें आरक्षण का लाभ देकर आर्थिक रूप से मजबूत बनाना आवश्यक है। इसलिए, इन वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा को बढ़ई जानी चाहिये।
तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि सरकार राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण इस विधेयक को लेकर आयी है। उन्होंने कहा कि इस समय देश की अन्य समस्याओं पर चर्चा होनी चाहिये थी, लेकिन आम चुनाव में लाभ अर्जित करने के मकसद से सरकार ने इस विधेयक को राजनीतिक हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया है।
शिवसेना के आनंदराव अडसूल ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण का लाभ पाने के लिए प्रमाणपत्र लाभार्थी एवं सरकार दोनों के लिए एक चुनौती होगी। प्रमाणपत्र के फर्जीवाड़ से बचना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने देरी से ही सही पर दुरुस्त कदम उठाया है। वह इस विधेयक का समर्थन करते हैं।
तेलंगाना राष्ट्र समिति के ए.पी.जितेन्द, रेड्डी ने विधेयक का समर्थन किया और कहा कि आत्रादी के बाद दुर्बल वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए कोई ढांचागत विकास का काम नहीं हुआ। उन्होंने मांग की कि आरक्षण के विषय को राज्यों को दे दिया जाना चाहिए। उन्हीं को अनुपात तय करने की इजात्रत दी जानी चाहिए।
लोकजनशक्ति पार्टी के नेता एवं केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बधाई दी और कहा कि यह सबका साथ सबका विकास के नारे की दिशा में बहुत बड़ कदम है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ वर्ग के हितों के लिए आवश्यक कदम उठाने के बाद गरीब सवर्णों के लिए भी सोचा गया है। उन्होंने कहा कि उनका हमेशा से मानना रहा है कि सबको समान अवसर मिलना चाहिए।
श्री पासवान ने कहा कि जो लोग आरक्षण का विरोध करते थे, वो ही आज आरक्षण के लाभार्थी बन रहे हैं तो उससे आरक्षण को समाप्त करने वाली आवात्र ही खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि अब आरक्षण का विरोध नहीं होगा और किसी से कोई भेदभाव नहीं होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि आर्थिक आधार पर आरक्षण के लागू होने के साथ ही सरकार अगर 60 प्रतिशत आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल दे तो उसे न्यायालय में चुनौती देना संभव नहीं रह जाएगा। उन्होंने मांग की कि भारतीय न्यायिक सेवा भी जल्द से जल्द आरंभ होनी चाहिए ताकि न्याय पालिका में सभी जाति धर्म के लोगों को प्रतिनिधित्व मिले।
बीजू जनता दल के भर्तृहरि मेहताब ने कहा कि आज देश में इतिहास लिखा जा रहा है जब लोकतंत्र में पहली बार आरक्षण जाति की बजाय वर्ग की श्रेणी में प्रवेश कर रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को देखना होगा कि आर्थिक स्थिति हमेशा बदलती रहती है। एक साल कोई दायरे में आता है तो अगले साल दायरे से बाहर हो जाता है। जबकि आज दायरे से ऊपर रहने वाले लोग कल दायरे में आ भी सकते हैं। आखिर इस स्थिति की निगरानी कैसे होगी।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के जितेन्द्र चौधरी ने सवाल किया कि आखिर यह विधेयक संसद के सत्र के आखिरी दिन क्यों लाया गया। सरकार ने रोत्रगार का कोई आंकड़ नहीं दिया है। रोत्रगार निरंतर घटता जा रहा है। आखिर यह आरक्षण कैसे मिलेगा। उन्होंने विधेयक को अधिक व्यापक बनाने के लिए उसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंपने की मांग की।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सुप्रिया सुले ने कहा कि वह इस विधेयक का स्वागत करती हैं। लेकिन इस पर अधिक बहस होनी चाहिए। उन्होंने भारतीय न्यायिक सेवा आरंभ किये जाने के श्री पासवान के सुझाव का समर्थन किया।