पटना : दक्षिण अफ्रीकी द्वीप देश मारीशस में बसे बिहारी मूल के आप्रवासी भारतीयों ने यहां आने के 184 साल बाद भी अपनी भोजपुरी भाषा, पर्व-त्योहार, खान-पान और पहनावे के साथ बिहार से अपना सांस्कृतिक रिश्ता बचाये रखा है। 2 नवंबर 1834 को बिहार से आये पुरखों की याद में मारीशस में आप्रवासी दिवस मनाने के लिए सार्वजनिक छुट्टी रहती है। इस अवसर पर आयोजित भव्य समारोह में मारीशस के प्रधानमंत्री प्रवीण जगनाथ ने उस कुलीघाट पर माल्यार्पण किया, जहां जहाज से उतरने के बाद 16 सीढ़ियां चढ़ कर गिरमिटिया मजदूरों का पहला जत्था पहुंचा था।
समारोह में भाग लेने के बाद बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बताया कि 12 लाख की आबादी वाले मारीशस में 68 फीसद लोग भारतीय मूल के हैं और उनकी भाषा भोजपुरी है। 1968 में आजादी मिलने के बाद से भोजपुरी भाषी व्यक्ति ही मारीशस के प्रधानमंत्री होते रहे हैं। दीवाली, शिवरात्रि और गणेश चतुर्थी यहां के बड़े त्योहारों में हैं। इन अवसरों पर सार्वजनिक छुट्टी रहती है। आप्रवासी दिवस समारोह में इस बार बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी मुख्य अतिथि थे।
उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि आज ही के दिन जो पहला जत्था मारीशस लाया गया था, उसमें बिहार के 36 शर्तबंद मजदूर थे। अंग्रेजों ने उन्हें पत्थर के नीचे सोना मिलने का झांसा देकर लाया था। 70 साल में बिहार के साढ़े चार लाख गिरमिटिया मजदूरों को मारीशस लाया गया।
संयुक्त राष्ट्र ने मारीशस के कुलीघाट को विश्व धरोहर घोषित किया है। अब इसे आप्रवासी घाट कहा जाता है और यहां के संग्रहालय में वे सामान सुरक्षित हैं, जो बिहार के मजदूर अपने साथ लेकर पहुंचे थे।