तालिबानी पिंजरे में अफगान महिलाएं - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

तालिबानी पिंजरे में अफगान महिलाएं

अमेरिकी फौजों की वापिसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था और एक उदार शासन का वादा किया था। लेकिन कट्टरपंथियों ने महिलाओं के अधिकारों और देश में उनकी आजादी को वापिस लेना शुरू कर दिया है

अमेरिकी फौजों की वापिसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था और एक उदार शासन का वादा किया था। लेकिन कट्टरपंथियों ने महिलाओं के अधिकारों और देश में उनकी आजादी को वापिस लेना शुरू कर दिया है। तालिबान शासन ने विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान कर दिया है। यह एक ऐसा ऐलान है जो 2001 के बाद मिले कई सामाजिक फायदों को खत्म कर देगा। तालिबान के फरमानों में अफगान स्कूली छात्राओं को कक्षा छह से ऊपर की पढ़ाई पर प्रतिबंध, नौकरी पर प्रतिबंध और जिम, सार्वजनिक पार्कों में महिलाओं पर पाबंदी, पुरुष रिश्तेदारों के बिना यात्रा करने वालों के लिए सार्वजनिक पिटाई शामिल है। हालांकि मार्च में तालिबान ने लड़कियों के​ लिए कुछ हाई स्कूल वापिस खोलने की घोषणा की थी लेकिन  जिस दिन स्कूल खोले जाने थे, उसी दिन उसने यह फैसला रद्द कर दिया। हाल ही के महीनों में महिलाओं के खिलाफ प्रतिबंधों की लहर चली है। महिलाओं को शिक्षा से वंचित कर देने का आदेश अफगानिस्तान को वापिस तालिबान के पहले दौर में ले जाएगा जब लड़कियां औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं कर सकती थीं। संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक देशों ने तालिबानी फरमान की निंदा की है और कहा है कि यह शिक्षा के समान अधिकार का उल्लंघन है और महिलाओं को अफगान समाज से मिटाने की एक आैर कोशिश है।
अफगानिस्तान में जब तालिबान सत्ता में आया था तो वहां की जनता में खौफ को पूरी दुनिया ने देखा था। लोग देश छोड़कर जिस तरह से भाग रहे थे वो खौफनाक मंजर आज भी जीवंत हैं। लोगों को डर था कि तालिबान 2-0 भी महिलाओं को लेकर सख्त रवैया अपनाएगा। लोगों का डर सही साबित हुआ। तालिबान का क्रूरतम चेहरा एक बार ​फिर सामने आ गया है। जिस तरह की अमानवीय घटनाएं सामने आ रही हैं वह बर्बर युग की याद दिला रही है। तालिबान ने समावेशी सरकार की स्थापना सहित दोहा वार्ता के दौरान किए गए तमाम वादों से मुकरते हुए महिलाओं को खून के आंसू बहाने को मजबूर किया है। वह अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने अपनी धौंस जमाने का एक तरीका है।
21वीं सदी के दौर में महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से वंचित करना आदिम सोच का पोषण करना ही है। कोई भी देश तब तक तरक्की का रास्ता नहीं अपना सकता जब तक उसकी आधी आबादी को पिंजरे में डाल दिया हो। सुनहरे भविष्य के सपने देख रही अफगानी युवतियां यदि काबुल में उनकी शिक्षा पर प्रतिबंध के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए सड़क पर उतरी हैं लेकिन तालिबान उन सबको कुचलने के लिए तैयार है। अफगान की महिलाओं को लगता है कि उन्होंने सब कुछ गंवा दिया है और कट्टरपंथी धर्म की अपनी सुविधा के अनुसार व्याख्या करके उनके अधिकारों को छीन रहे हैं। इस्लामिक विद्वानों ने भी महिलाओं की शिक्षा को कभी धर्म से नहीं जोड़ा है। अन्य इस्लामी देशों में भी महिलाओं को शिक्षा के पर्याप्त अधिकार मिले हुए हैं। अब तालिबानी सोच पूरी तरह से बेनकाब हो चुकी है। कट्टरपंथी नहीं चाहते कि आधुनिक शिक्षा के माध्यम से महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना का संचार हो। छात्राओं में घोर निराशा है। उन्हें लगता है कि उनके भविष्य का पुल तालिबान ने बारूद से उड़ा दिया है। दिनों दिन क्रूर और अतार्किक हो रहे तालिबान शासन महिलाओं को सार्वजनिक परिदृश्य से ओझल कर देना चाहता है।
अब सवाल यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को तालिबान शासन के प्रति क्या रुख अपनाना चाहिए। भले ही किसी भी देश ने तालिबान को मान्यता नहीं दी है लेकिन कई देश इस शासन से नेताओं के साथ खुले तौर पर सम्पर्क बनाए हुए हैं। भारतीय मिशनों पर हमलों और हत्याओं के लिए जिम्मेदार सिराजूद्दीन हक्कानी जैसे लोग तालिबान सरकार में मंत्री पद पर बैठे हुए हैं। तालिबान अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का तब तक वैध सदस्य नहीं माना जा सकता जब तक कि वो अफगानिस्तान में सभी के अधिकारों का सम्मान करें। तालिबान के नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा और उनके करीबी लोग आधुनिक शिक्षा के खिलाफ हैं जिनमें महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा खासतौर पर शामिल है। अफगानिस्तान महिलाओं के लिए देश नहीं रह गया, बल्कि एक जेल बन चुका है।
वैश्विक समुदाय आवाज तो उठाता है लेकिन कहीं न कहीं वह अपनी बेबसी भी व्यक्त कर देता है। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय बहुत कुछ कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एवं अन्य राष्ट्रीय मंचों पर कही गई बड़ी-बड़ी बातों में अफगानिस्तान की जनता का कोई भला नहीं हुआ है। जिस तरह से ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर सत्ता को हिला कर रख दिया है। अफगानिस्तान में भी ऐसे ही आंदोलन की जरूरत है। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को अफगानिस्तान के साथ अपनी वर्तमान नीतियों की समीक्षा करनी होगी और तालिबान के साथ अपने सम्पर्क कम करने होंगे। तालिबान सरकार देश को चलाने के लिए विदेशी सहायता पर निर्भर है। अगर उसके खिलाफ कड़े प्रतिबंध लागू किए जाएं तो तालिबान शासन एक न एक दिन घुटनों पर आ खड़ा होगा। बड़ी शक्तियों को गैर तालिबान अफगान नेताओं खासकर अतीत में चुनी गई महिला जनप्रतिनिधियों के लिए अफगानिस्तान के बाहर मंच तैयार करने चाहिए ताकि वह फिर से एकजुट और संगठित होकर उस अंधेरे, जिसकी तरफ देश को धकेलने के लिए तैयार है, के खिलाफ एक दृष्टिकोण को मुखर कर सकें। अफगानिस्तान के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए भारत और अन्य देशों को तीखा रुख अपनाना होगा। आज की दुनिया में तालिबान जैसा दमनकारी शासन किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं हो सकता।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 × 5 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।