-सुपर पावर अमेरिका पलभर में किसी भी मुल्क को तबाह कर सकता है।
-सबसे ताकतवर सेना और 686 अरब का रक्षा बजट और अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा।
-सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था।
-9/11 के आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान समेत कई देशों में विध्वंस का खेल खेला। वहां की सरकारें गिराईं और बनाईं।
-अमेरिका की प्रगति देखकर समूचा विश्व वाह-वाह करता रहा है।
आज अमेरिका कोरोना वायरस के आगे घुटने टेकने को मजबूर हो चुका है। न्यूयार्क कोरोना का सबसे बड़ा एपिक सैन्टर बन चुका है। उसकी चमक-दमक पर मरघट सी खामाेशी छाई हुई है। महाशक्ति त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है। जिस ढंग से कोरोना के संक्रमण ने बुलेट ट्रेन की रफ्तार को पीछे छोड़ा है, अगर यह गति बनी रही तो अमेरिका में दो लाख से अधिक मौतें होने की आशंका व्यक्त की जाने लगी है। एक दिन में सबसे अधिक 1169 मौतों के आंकड़े ने इटली और स्पेन को भी पीछे छोड़ दिया है। अब तक 5 हजार से ज्यादा लोगों की मौतें हो चुकी हैं और एक लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हफ्तों तक कोरोना वायरस को गम्भीरता से नहीं लिया और इसे छोटी-मोटी बीमारी कह कर खारिज कर दिया। ट्रंप लगातार लॉकडाउन से इंकार करते रहे। उन्होंने तो खुद के आइसोलेशन में जाने का मजाक उड़ाया था। राष्ट्रपति चुनावों के लिए लगातार प्रचार कर रहे ट्रंप ने कोरोना वायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। चीन को निशाना बनाकर वह अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाहते थे लेकिन अब उन्हें भी अहसास हो चुका है कि यह राष्ट्रीय आपातकाल है, इस चुनौती को केवल ट्वीट करके हल नहीं किया जा सकता।
दुनिया भर के देशों की तरह अमेरिका में भी लोग घरों में सामान स्टॉक करने लगे हैं। हैरानी तो इस बात की है कि जरूरी सामान के अतिरिक्त अमेरिकी बंदूकें भी खरीद रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर हालात बिगड़े तो उन्हें बंदूकों की जरूरत पड़ सकती है। वेंटिलेटर और मास्क खत्म हो चुके हैं। अमेरिका के अस्पतालों में सिर्फ दस लाख बैड हैं जिसका मतलब यह हुआ कि एक हजार लोगों पर सिर्फ 2.8 बैड उपलब्ध हैं जबकि दक्षिण कोरिया में यह औसत 12.3 बैड, चीन में 4.3 बैड और इटली में 3.2 बैड उपलब्ध हैं।
ट्रंप ने पहले कदम उठा लिए होते तो ऐसे हालात नहीं होते। शुरूआत में ही एयरपोर्ट पर लोगों की जांच आसानी से हो सकती थी। अमेरिका के प्राइवेट और सरकारी अस्पताल भरने लगे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया के अध्ययन के मुताबिक आने वाले दिनों में दस लाख वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है। अमेरिका और इटली की स्वास्थ्य व्यवस्था काफी शानदार मानी जाती रही है। अमेरिका में हैल्थ सैक्टर करीब-करीब पूरी तरह से प्राइवेट है। तूफानों के बीच अमेरिका अपने नागरिकों के जान-माल का नुक्सान कम से कम होने देता है लेकिन लापरवाही और अति आत्मविश्वास ने अमेरिका को बड़े संकट में डाल दिया है। अब उसके पास दो ही रास्ते बचे हैं या अर्थव्यवस्था बचा ले या फिर आदमी।
अमेरिकी प्रशासन ने कठोर नियम लागू करने में काफी देर कर दी। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की बिगड़ रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दो ट्रिलियन डॉलर के राहत पैकेज का ऐलान किया है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था के आधुनिक इतिहास में यह सबसे बड़ा राहत पैकेज है। घातक हथियारों के बल पर दुनिया भर में धौंस जमाने वाला अमेरिका एक सूक्ष्म वायरस से सहम उठा है। दरअसल परमाणु ऊर्जा के नाम पर जितना मौत का सामान अमेरिका ने इकट्ठा कर रखा है उतना अन्य ने नहीं कर रखा। परमाणु अस्त्र, मिसाइलें, युद्धक विमान और अति आधुनिक उपकरण आदि अमेरिका बनाता आ रहा है, उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उसे एक दिन कोरोना वायरस से भी लड़ना होगा। यह वही अमेरिका है जिसने 1945 में परमाणु बम का इस्तेमाल जापान के हीरोशिमा और नागासाकी पर किया था। तब मानवता हार गई थी। उसके बाद से परमाणु ऊर्जा बढ़ती चली गई और संधियों की संख्या भी बढ़ती रही। सांप-सीढ़ी का खेल तब भी चल रहा था और आज भी चल रहा है। हथियारों की खरीद-फरोख्त बड़ा व्यापार बन चुका है। मुझे लगता है कि कोरोना के वायरस ने परमाणु बम के महत्व को ही कमतर करके रख दिया है। वैश्विक शक्तियां सत्य को पहचानें। मानव जाति के विध्वंस का सामान बनाने वाली शक्तियां खुद संकट में हैं।
काश! अमेरिका ने बंदूकों, बमों और मिसाइलों की तरह वेंटिलेंटर बनाए होते, काश! उसने मानव को बचाने के लिए बड़े सरकारी अस्पताल बनाए होते, काश! उसने मानव को सहज जीवन उपलब्ध कराने के उपाय किए होते तो आज वह दुनिया का सबसे अधिक संक्रमित देश न होता।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com