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चीन को उसी की भाषा में जवाब

चीन की भारत विरोधी कूटनीति न तो कभी बदली है और न ही भविष्य में बदलेगी, इसलिए इस समय जरूरी है कि चीन को भी कूटनीतिक स्तर पर मुंह तोड़ जवाब दिया जाए।

चीन की भारत विरोधी कूटनीति न तो कभी बदली है और न ही भविष्य में बदलेगी, इसलिए  इस समय जरूरी है कि चीन को भी कूटनीतिक स्तर पर मुंह तोड़ जवाब दिया जाए। गलवान झड़प के मामले में भारत ने चीन को उसी की भाषा में जवाब देने का फैसला किया है, जो भाषा उसे समझ में आती है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने बीजिंग में होने वाले शीतकालीन ओलिम्पिक के राजनयिक बहिष्कार का फैसला लेकर चीन को एक बार फिर कड़ा संदेश दे दिया है। फैसले के तहत खेलों के उद्घाटन और समापन समारोह में कोई भी भारतीय राजनयिक भाग नहीं लेगा और दूरदर्शन का स्पोर्ट्स चैनल भी इसकी कवरेज नहीं करेगा। पूर्वी लद्दाख में सैन्य तनातनी के बावजूद भारत ने संबंध सुधारने के लिए बीजिंग में शीतकालीन खेलों में अपने राजनयिक को भेजने का ऐलान किया था लेकिन चीन की उकसावेपूर्ण कार्रवाई ने अब भारत का मूड बिगाड़ दिया। भारत ने चीन के ​खिलाफ पलटवार करते हुए यह कदम उठाया, जिसमें दुनिया में उसकी भद्द पिटना तय है। विभिन्न देशों में घूमकर आई मिशाल 2 फरवरी को बीजिंग पहुंची थी। चीन ने वहां पर मशाल थामने के लिए पीएलए के कमांडर का फबाओ को चुना, जो पूर्वी लद्दाख में तैनात था और 15 जून को गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के साथ झड़प में शामिल था। झड़प में घायल फबाओ को भारतीय सैनिकों ने पकड़ लिया था, जिसे बाद में सद्भावनापूर्ण ढंग से चीन के हवाले कर दिया  गया था। चीन ने पीएलए कमांडर फबाओ को दुष्प्रचार के लिए अपना ‘ब्रैंड एम्बैसडर’ बना दिया। सरकार द्वारा प्रायोजित  ढंग से उसके इंटरव्यू दिखाए गए। जिसमें उसने भारत के खिलाफ आग उगली। चीन ने ऐसा गलवान घाटी की झड़प के सच पर पर्दा डालने की कोशिश की। अब गलवान की झड़प का सच सामने आ चुका है। ऑस्ट्रेलियाई वेबसाइट ने दावा किया है कि गलवान की झड़प में चीन के 38 सैनिक  मारे गए थे, जबकि चीन ने केवल चार जवानों की शहादत को स्वीकार  ​ किया । चीन ने झड़प को लेकर तस्वीरों से छेड़छाड़ की और सच को दबाने का प्रयास ​किया।
चीन का झूठ एक्सपोज होने पर पूर्व राजनयिक विष्णु प्रकाश ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि चीन में सत्य वही है, तथ्य वही है जो कि कम्युनिस्ट सरकार चाहती है। झूठ क्या है, सच क्या है, उसमें कोई फर्क नहीं है क्योंकि जो ढांचा है वो इस तरह से बनाया गया है कि उसमें ​सिर्फ शौर्य गाथा होती है, सिर्फ सफलता होती है। और यही एक कारण है कि जब चीन में कोई गलती होती है तो उसको ठीक करना बड़ा मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही गलवान झड़प को लेकर हो रहा है। 
खेलों के राजनयिक बायकाट का भारत का फैसला इसलिए भी सराहनीय है कि क्योंकि खेलों के उद्घाटन समारोह में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन , मिस्र के राष्ट्रपति, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान मौजूद रहेंगे। इन सभी को चीन के झूठ का पता चलेगा। यह तथ्य है कि दोनों देशों के बीच हिंसक संघर्ष की स्थिति  इसलिए बनी थी क्योंकि चीन की सेना ने दो प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया था। पहला उसने सीमा पर स्थित बफर जोन में अवैध टैंट लगाने की कोशिश की थी और दूसरा उसने सीमा समझौते के खिलाफ इस इलाके में अवैध निर्माण किया और भारतीय सेना को जानबूझ कर उकसाया। झड़प में भारत के बहादुर जवानों ने अपनी शहादत देने से पहले चीन के कायर जवानों की गर्दनें मरोड़ दी थीं।
शीतकालीन ओलिम्पिक के लिए गलवान घाटी की झड़प में शामिल चीनी सेना के कमांडर के हाथ में मिशाल थमाये जाने पर अमेरिका ने भी आपत्ति जताई है। उसने चीन के अपने पड़ोसियों को डराने-धमकाने के प्रयासों के पैटर्न पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि अमेरिका हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में साझा समृद्धि, सुरक्षा और मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए भागीदारों और सहयोगियों के साथ खड़ा है। अमेरिका सहित कई देशों ने इन ओलिम्पिक के डिप्लोमेटिक बहिष्कार का ऐलान पहले ही कर दिया था। यह विरोध केवल कूटनीतिक स्तर पर ही नहीं है बल्कि 13 आधिकारिक कार्पोरेट पार्टनर्स के लिए  भी सिरदर्द बन चुका है। ओलिम्पिक जैसे खेल आयोजन ब्रांड प्रमोशन के लिए  मार्केटिंग के​ लिहाज से काफी मायने रखते हैं। तनातनी के बीच प्रायोजक भी चुप्पी साधे बैठे हैं।
इन सब परिस्थितियों में सेना अध्यक्ष जनरल एमएस नरवणे का यह कहना है कि भारत भविष्य में होने वाले संघर्षों की झलकियां देख रहा है, इसके अर्थ बहुत गम्भीर हैं। उन्होंने कहा ​​कि भारत कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है, हमें उत्तरी सीमाओं पर आधुनिक तकनीक से लैस सक्षम बलों को तैनात करने की जरूरत है।
भारत सरकार ने भी चीन का मुकाबला करने के लिए कमर कस ली है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सीमाओं पर सेना की मजबूती के ​लिए काम कर रहे हैं। बजट में इस बार घोषित  वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम का लक्ष्य एलएसी के साथ लगते इलाकों में अवसंरचना का​ विस्तार करना है। चीन जिस तरह से सीमांत क्षेत्रों में नई बस्तियों का निमार्ण  कर रहा है, उसी को देखते हुए यह फैसला किया गया है। चीन की सीमा से लगे अरुणाचल में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तवांग में सेना सुरंग का निमार्ण किया जा रहा है। अरुणाचल में एक किशोर के अपहरण के बाद स्थानीय लोगों में भय का माहौल है। अब भारतीय सेना को आधुनिक और नवीनतम हथियार  से लैस करना हमारी प्राथमिकता है, वहीं चीन को कूटनीतिक स्तर पर जवाब देना भी प्राथमिकता है।

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