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कोरोना का मरकज तबलीग ?

तबलीगी मरकज के ‘निजामुद्दीन कोरोना केन्द्र’ के दो आयाम हैं। एक तो वे भारतीय नागरिक जिन्होंने कई दिनों चले तबलीगी जमात के मरकज में हिस्सा लिया और दूसरे वे विदेशी नागरिक जिन्होंने इसमें बतौर मेहमान और वाइज (धर्मोपदेशक) के शिरकत की

तबलीगी मरकज के ‘निजामुद्दीन कोरोना केन्द्र’ के दो आयाम हैं। एक तो वे भारतीय नागरिक जिन्होंने कई दिनों चले तबलीगी जमात के मरकज में हिस्सा लिया और दूसरे वे विदेशी नागरिक जिन्होंने इसमें बतौर मेहमान और वाइज (धर्मोपदेशक) के शिरकत की। ये ‘वाइज’ भारत के विभिन्न शहरों में गये और वहां की मस्जिदों में मुस्लिम नागरिकों व मौलानाओं के सम्पर्क में आये। इन दो वजूहात से तीसरी वजह पैदा हुई जो उन लोगों की थी जो इन लोगों के सम्पर्क में आये। भारत में अभी तक सामुदायिक स्तर पर कोरोना का प्रसार नहीं हो पा रहा था और यह स्थानीय या मुकामी दर्जे पर ही था मगर निजामुद्दीन के धार्मिक समागम की वजह से इसके ‘सामुदायिक’ स्तर पर परावर्तन (रिफ्रेक्शन) का खतरा पैदा हो गया है। अतः ‘लाकडाऊन’ के शेष बचे दिन बहुत ही संकटकालीन हैं इस दौरान जरा सी लापरवाही भी भारी पड़ सकती है। 
अब दिक्कत यह है कि निजामुद्दीन मरकज में शिरकत करने भारत के 21 राज्यों से लोग आये थे। सबसे ज्यादा दक्षिण के राज्यों तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश व तेलंगाना के मुस्लिम नागरिकों की संख्या रही। ये लोग निजामुद्दीन मरकज में शामिल हुए विदेशी कथित वाइजों के सम्पर्क में आये जो थाइलैंड, मलेशिया, फिलीपींस व सऊदी अरब तक से थे। इनमें से बहुत से लोग कोरोना संक्रमण से ग्रस्त पाये गये जिनसे यह बीमारी भारतीय मुस्लिम नागरिकों में फैली और फिर उनके सम्पर्क में जो आये उनमें  इसके फैलने का खतरा पैदा हो गया। तमिलनाडु से एक हजार से ज्यादा लोग मरकज में शामिल होने गये थे और एक दिन में ही इस राज्य में 57 नये मामले कोरोना के पाये गये जिनमें 50 वे लोग थे जो मरकज में हाजिरी देकर आये थे। 
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि 21 राज्यों के उन लोगों की निशानदेही युद्ध स्तर पर की जाये जिन्होंने मरकज में हाजिरी दी थी। इन्हें चिन्हित करने के केन्द्र के कैबिनेट सचिव ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों व पुलिस महानिदेशकों को निर्देश जारी कर दिये हैं। ऐसे हाजरीन को इकबालिया बयान देकर खुद को हुकूमत के सामने पेश कर देना चाहिए क्योंकि इनकी गुमशुदगी से और हजारों लोगों की जान को खतरा बन सकता है। यह उनका इंसानी फर्ज बनता है कि वे यह काम करने में देर न लगायें। अभी तक तमिलनाडु में केवल 500 लोगों की ही निशानदेही हो पायी है। इसी तरह आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना से भी एक हजार से ज्यादा लोगों ने इस समागम में हिस्सा लिया। अकेले हैदराबाद शहर से ही 700 से ज्यादा लोग इसमे शिरकत करने गये। दीगर बात यह है कि विदेशों से आने वाले कथित वाइज पर्यटक वीजा पर भारत आये थे। मगर उन्होंने धार्मिक काम किया। इसकी इजाजत उन्हें नहीं थी। जिन देशों से विदेशी नागरिक आये थे उन सभी के साथ भारत के दोस्ताना ताल्लुकात हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं होता कि वीजा का गलत फायदा उठाया जाये। उनकी जरा सी चूक का खामियाजा भारत के बेकसूर लोगों को उठाना पड़ रहा है। क्या कयामत हुई कि तबलीगी मरकज ने निजामुद्दीन को ही ‘कोरोना का मरकज’ बना डाला।  मगर एक सवाल यह भी है कि इन विदेशी नागरिकों के भारत प्रवेश के समय कोरोना की बाकायदा जांच हुई थी या नहीं ? यदि ये लोग बहुत पहले भारत आ गये थे और बाद में इनमें कोरोना होने के संकेत मिले तो तबलीगी जमात के आयोजकों को इस बारे में सरकार को सूचित करना चाहिए था। यह बहुत बड़ी चूक हुई है जिसकी जांच किये जाने की जरूरत है परन्तु फिलहाल मुद्दा यह है कि इनकी वजह से भारत में कोरोना को फैलने से कैसे रोका जाये और उन सभी लोगों को पूरी तरह अलग-थलग किया जाये जिन्होंने मरकज मे शिरकत की थी ? भारत की आबादी 133 करोड़ के आसपास है और इनमें मुसलमानों की संख्या 33 करोड़ से कम नहीं है। मुस्लिम समाज अपेक्षाकृत आपस में गुथा हुआ समाज है। अतः सरकार की पहली जिम्मेदारी इस समाज की विशेष सुरक्षा हो जाती है। यही वजह है कि केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें विदेशी वाइजों के सम्पर्क में आने वाले लोगों की खोज मे लग गई हैं और अपील कर रही हैं कि मरकज में शिरकत करने वाले लोग अपनी निशानदेही खुद करा दें। इसके साथ हकीकत यह भी है कि भारत का समाज बहुत खुला और उदार समाज है जिसमें धर्म की पहचान से व्यक्ति की पहचान करना सामान्य लोग इंसानियत की तौहीन समझते हैं। यहां का साधू व सन्त समाज तो मन्दिर-मस्जिद में भेदभाव नहीं करता रहा है  इसका प्रमाण हमारी गंगा-जमुनी विरासत है जिसका नजारा गोस्वामी तुलसी दास ने ही  एक सोरठे में तब पेश किया था जब कट्टरपंथी ब्राह्मण उनके विरुद्ध अनर्गल प्रचार किया करते थे। 
  ‘‘धूत कहो अवधूत कहो , जुलाहा कहो कोऊ
   काहू की बेटी से न ब्याहब,काहू की जाति बिगारे न सोऊ
  तुलसी सरनाम है गुलाम है राम को, 
जाको रुचै सो कहौ कछु सोऊ 
   मांग के खाइबो, ‘मसीत’ मे सोइबो , लेइबै को 
एक न देइबै को दोऊ।’’
अतः भारत जैसे मुल्क में कोरोना का एक जमात के जरिये एक समुदाय मे फैलना खतरनाक ही नहीं विनाशकारी हो सकता है। इसलिए हर राज्य के उस मुस्लिम नागरिक का कर्त्तव्य है जिसने मरकज में शिरकत ही कि, वह अपनी पहचान खुद आगे बढ़ कर कराये। कोरोना हिन्दू-मुसलमान में किसी प्रकार का भेद नहीं करता है। अभी तक के आंकड़ों को देख कर यह कहा जा सकता था कि भारत में कोरोना फैलने की संभावनाएं कम हैं मगर पिछले दो दिन में जिस तरह संक्रमणग्रस्त लोगों की संख्या में 200 प्रतिदिन के हिसाब से वृद्धि हुई है उससे  चिन्ता बढ़ गई है। अतः आने वाले दिनों मे कहीं भी कोई कोताही नहीं होनी चाहिए।
 

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