दीपोत्सव निःसंदेह समृद्धि की कामना का पर्व है। परम्पराओं का निर्वाह करते हुए सभी लक्ष्मी जी की पूजा कर अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करेंगे। यहां समृद्धि अकेले सोने-चांदी के रूप में धन सम्पदा नहीं है, उसमें सुख-शांति है तो सर्वे भद्राणि पश्यंतु भी है। सबसे बड़ी बात उसमें दुख न हो ऐसी कामना है। समूची वसुधा को अपना कुटुम्ब मानकर उसके कल्याण की कामना हमारी पूजा में होती है, लेकिन हम ऐसी पूजा से दूर हट चुके हैं। हम केवल अपनी भौतिक समृद्धि के पीछे भागने लगे हैं। यह सवाल बार-बार खड़ा होता है कि क्या भौतिक समृद्धि ही असली समृद्धि है। आज समाज में नैतिक और चारित्रिक पतन सहज रूप से देखा जा सकता है। जिन लोगों को समाज में आदर्श होना चाहिए था, वे स्वयं विवादों में घिरे हुए हैं। प्रकृति के प्रति हम सभी अपना दायित्व भूल चुके हैं। पर्यावरण को खत्म करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। मानव अस्तित्व के लिए जिम्मेदार जल, जंगल, जमीन और हवा का अस्तित्व मिटाने में ऐसे जुटे हैं जैसे वे हमारे दुश्मन हों। ऐसे में सब कुछ खोकर केवल धन सम्पदा के लिए पूजा-अर्चना कर हम क्या प्राप्त कर सकेंगे?
इस बार कोरोना काल के दौरान यह दीपोत्सव का पर्व धूमोत्सव का नहीं है। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कोरोना वायरस के साथ-साथ घातक प्रदूषण की चपेट में है। दिल्ली में कोरोना से मौतों के आंकड़ों ने खौफ जरूर पैदा किया। सरकारों के लिए मौतों का आंकड़ा महज एक संख्या है लेकिन दुख तो उन्हें है जिनके परिवार का सदस्य महामारी का शिकार हो गया। स्थितियां बहुत विकट हैं। ऐसी स्थिति में समाज के हर नागरिक को अपने दायित्व का निर्वहन करना चाहिए। समय की मांग है कि हम कोई ऐसा काम नहीं करें जिससे दूसरे लोगों को परेशानी खड़ी हो। भारतीय धर्मदर्शन आस्था के साथ प्रकृति के सहचर से भी जुड़ा है। दीपोत्सव अमावस की रात को दीपक के प्रकाश से उज्ज्वल करने का पर्व है लेकिन इस रात को धुएं से स्याह करना अनुचित है। पटाखों की बिक्री पर पाबंदी के बावजूद लोग मानने वाले नहीं। पाबंदी के बावजूद हर वर्ष रात के समय पटाखे बजने शुरू हो जाते हैं। देर रात तक आतिशबाजी शुरू हो जाती है। अनेक लोग धर्म विशेष के त्यौहारों के उल्लास को प्रतिबंध के दायरे में लाने का विरोध करते हैं और अपनी मनमानी करते हैं। चोरी-छिपे पटाखे खरीद कर ले आते हैं। खुशी मनाना एक अलग बात है लेकिन इसका मकसद दूसरों को रोग बांटना नहीं है। पटाखों से होने वाले प्रदूषण से रोगियों को श्वास संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। श्वसन तंत्र और फेफड़ों पर कोरोना वायरस घातक प्रहार करता है। किसी की खुशी किसी की जिन्दगी पर भारी नहीं पड़नी चाहिए। जिन लोगों ने पिछले वर्ष के बचे हुए पटाखे भी सम्भाले हुए हैं उनके लिए तो पटाखे फोड़ने की रात की कोई समय सीमा ही नहीं। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि पटाखों पर प्रतिबंध से कारोबारियों को बहुत नुक्सान होगा लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि पटाखों पर प्रतिबंध से लोगों के जीवन की रक्षा होती है तो इसके आगे किसी भी बड़ी धनराशि की कीमत कुछ भी नहीं है। लॉकडाउन के दौरान हम सभी ने महसूस किया कि स्वच्छ हवा में सांस लेना कितना सुखद होता है।
लक्ष्मी एक संतुलन का प्रतीक है, कर्मठता का प्रतीक है। यह वैभव और यश के साथ शांति भी लाती है, समस्याओं को सुलझाने से आती है। इन्हें सुलझाते जाइये, उनके आने का रास्ता अपने आप खुलता जाएगा।
दीपावली के दिन देशभर में असंख्य दीप इस संकल्प के साथ जलेंगे-मैं स्वयं भले ही जल जाऊं, दानवता इस देश में परिलक्षित न हो।
‘‘ऐ मिट्टी के नन्हे दीप
तू स्वयं जल कर भी
प्रकाश फैलाता है चतुर्दिक
क्या तू जानता है
तेरी नियति क्या है?
तेरा लक्ष्य क्या है?
दीपक बोला
जलना मेरी नियति सही
मगर प्रकाश तुम्हारा प्रारब्ध है
जिस दिन इस प्रकाश के आलोक में
दानवता मिट जाएगी
मानव सचमुच मानव हो जाएगा।’’
भगवान श्रीराम का इस धरा पर अवतार इसलिए हुआ था क्योंकि इस देश को एक बार फिर रामत्व की जरूरत थी। आज भी रामत्व की बहुत जरूरत है।
आप सत्य के मार्ग पर चलें, आपकी सभी कामनाएं और उत्तम संकल्प पूर्ण हो। परस्पर द्वेष की भावना समाप्त हो और आप राष्ट्र चिंतन करें। आइये भगवान राम को स्मरण कर दिलों को रोशन करें। पर्व का मर्म भी यही है कि उजाले की रात को स्याह धुएं से नहीं भरें। भगवान श्रीराम से एक ही प्रार्थना है, जगह-जगह दीप प्रज्ज्वलित कर दो अपने नाम। पंजाब केसरी के पाठकों को दीपावली की शुभकामनाएं।