जम्मू-कश्मीर में चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन करने के लिए बने आयोग ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में जिस प्रकार जम्मू व कश्मीर क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव क्षेत्राें का परिसीमन किया है उससे आयोग के नेशनल कान्फ्रेंस पार्टी के सहयोगी सदस्यों ने मतभेद प्रकट किया है और कहा है कि वे इस रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद अपनी राय व्यक्त करेंगे। आयोग की अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश श्रीमती रंजना देसाई हैं और मुख्य चुनाव आयुक्त के अलावा राज्य के प्रमुख चुनाव आयुक्त इसके सदस्य हैं जबकि भाजपा पार्टी के दो व नेशनल कान्फ्रेंस के तीन सांसद इसके सहयोगी सदस्य हैं।
आयोग ने लगभग दो महीने पहले ही चुनाव क्षेत्र परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करते हुए संकेत दिया था कि यह जम्मू क्षेत्र में छह और कश्मीर प्रखंड में एक सीट का इजाफा करेगी। इस इजाफे के साथ जम्मू–कश्मीर विधानसभा की प्रभावी सदस्य संख्या 90 हो जायेगी जबकि 24 स्थान पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों के लिए पहले की तरह ही खाली रहेंगे।
चुनाव परिसीमन का काम इसलिए जरूरी है जिससे राज्य में विधानसभा चुनाव जल्दी कराये जा सकें और 5 अगस्त 2019 को संसद में इस राज्य को जिस तरह दो भागों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर के केन्द्र शासित क्षेत्रों में बांटा गया था उसमें संशोधनात्मक कार्रवाई की जा सके। राज्य को दो भागों में विभाजित करते हुए ही केन्द्रीय गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने राज्यसभा में आश्वासन दिया था कि भविष्य में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने के बारे में आवश्यक कदम उठाये जा सकते हैं मगर अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का जो संवैधानिक फैसला संसद के माध्यम से किया गया है उस पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता।
जम्मू-कश्मीर प्रान्त में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया शुरू करने से पहले वहां पहले से ही लम्बित चुनाव क्षेत्र परिसीमन का काम पूरा कराया जायेगा। अतः परिसीमन आयोग का गठन 2020 में कर दिया गया और बाद में इसे अपना काम पूरा करने के लिए अतिरिक्त अवधि भी दी गई। अब आगामी मार्च महीने तक यह अवधि समाप्त हो जायेगी और परिसीमन आयोग को अपनी अन्तिम रिपोर्ट देनी होगी। शुरू में नेशनल कान्फ्रेंस ने इस आयोग का बहिष्कार किया था परन्तु बाद में इसने सुधार करते हुए इसकी बैठकों में भाग लेना शुरू किया। इसके साथ ही इस पार्टी के नेताओं ने 370 को हटाने के बारे में जो रुख अपनाया वह ज्यादा व्यावहारिक था।
इस पार्टी के नेताओं क्रमशः फारुक अब्दुल्ला व उमर अब्दुल्ला ने सार्वजनिक रूप से कहा कि अनुच्छेद 370 के बारे में अंतिम फैसला देश का सर्वोच्च न्यायालय ही देगा जहां इसे हटाने की प्रक्रिया को चुनौती दी गई है मगर राज्य की राजनैतिक गतिविधियों में वे तब तक भाग नहीं लेंगे जब तक जम्मू-कश्मीर प्रान्त को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दे दिया जाता।
इस दृष्टि से नेशनल कान्फ्रेंस का नजरिया कमोबेश बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार राज्य के लोगों के राजनैतिक अधिकारों के हित में लगा और इस पार्टी ने संभवतः यही सोच कर परिसीमन आयोग की बैठकों में भाग लेना भी शुरू किया परन्तु इस पार्टी का आयोग की मसौदा रिपोर्ट के बारे में विचार है कि इसने कश्मीर क्षेत्र की जम्मू की अपेक्षा ज्यादा आबादी को नजरअन्दाज करते हुए जम्मू क्षेत्र में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है जिससे कश्मीर के साथ पूरा न्याय नहीं हो पायेगा। मगर दूसरी तरफ आयोग ने राज्य की दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों का संज्ञान लेते हुए चुनाव क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण इस प्रकार करने का दावा किया है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को राजनैतिक प्रतिनिधित्व मिल सके।
इस मामले में आयोग ने सभी प्रकार के आग्रहों को ध्यान में रखा है। इसके साथ ही इसने पहली बार राज्य की अनुसूचित जन जातियों व जन जातियों के लिए भी विधानसभा चुनाव क्षेत्रों का आरक्षण करने का काम किया है। पूरे देश में इससे पूर्व जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य था जिसमें भारतीय संविधान के अनुसार अनुसूचित व जनजातियों के लिए किसी प्रकार का चुनावी आरक्षण नहीं था। इसकी वजह अनुच्छेद 370 ही था जिसकी मार्फत जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान लागू करने का प्रावधान था परन्तु इस अनुच्छेद के समाप्त होने के बाद अब राज्य के बकरवाल व गुर्जर अन्य जनजातियों के लिए नौ सीटें आरक्षित रहेंगी व अनुसूचित जातियों के लोगों के लिए सात सीटें रहेंगी। यह काम आयोग को इन 6 जातियों की विभिन्न क्षेत्रों में आनुपातिक आबादी को देख कर ही करना होगा।
अतः राज्य की राजनीति में इस नये संवैधानिक संशोधन के बाद बदलाव देखने को मिलेगा और अभी तक राजनैतिक सत्ता में हाशिये पर पड़े हुए लोगों की आवाज मुखर होगी। परिसीमन आयोग के मामले में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इसके फैसले को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। नेशनल कान्फ्रेंस के इसके विरोध में नरम रुख अपनाने का एक कारण यह भी हो सकता है। भारत के संविधान के अनुसार निश्चित अन्तराल के बाद चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन इसलिए आवश्यक होता है जिससे किसी भी क्षेत्र की आबादी की घटत- बढ़त व अन्य कारणों का संज्ञान लेते हुए लोगों की राजनैतिक सत्ता में भागीदारी का सन्तुलन रखा जा सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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