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द्रोपदी मुर्मू : एक कर्मयोगी महिला की पहचान…

यह भारत ही है जहां महिलाओं को देवियों के रूप में देखा जाता है और संस्कारों की जननी का महत्व भी महिलाओं के नाम है। संभवत: इसीलिए भारतीय नारी को शक्तिपुंज के रूप में देखा जाता है।

यह भारत ही है जहां महिलाओं को देवियों के रूप में देखा जाता है और संस्कारों की जननी का महत्व भी महिलाओं के नाम है। संभवत: इसीलिए भारतीय नारी को शक्तिपुंज के रूप में देखा जाता है। अध्यात्म जगत में नारी अनेक रूपों में शक्ति की पहचान के तहत भगवान के नाम से पूजी गई है। यह सिक्के का एक पहलू हो सकता है। लेकिन अगर व्यावहारिक जगत में या जमीनी स्तर पर अथवा आज के लोकतंत्र की बात की जाये और भारत की नारी देश की राष्ट्रपति बनती है तो यह समूची नारी जाति के लिए और भारत के लिए एक गौरव की बात होगी। संभावनाओं के मुताबिक अगर कोई बड़ा चमत्कार नहीं हुआ तो निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगी दलों की उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू देश की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। सब जानते हैं कि देश में  राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार एक आदिवासी महिला देश को  राष्ट्रपति बनने जा रही है। इस महिला श्रीमती द्रोपदी मुर्मू  का जीवन किसी भारतीय कथाकार की उस कथा को दर्शाता है जिसमें एक नारी के दो पुत्रों और पति का कत्ल कर दिया जाता है परंतु फिर भी वह हिम्मत नहीं हारती। अपना सामाजिक ताना-बाना बुनकर लोगों के काम कराती है और देश के आदिवासी लोगों के प्रशासनिक कामकाज करवाना यह काम द्रोपदी मुर्मू ही कर सकती थी। 
उड़ीसा की जमीन से जुड़ीं मुर्मू झारखंड की राज्यपाल बनकर इतिहास रच चुकी हैं। सच्चाई यह है कि इस समय एक वो बेटी, जो एक बड़ी उम्र तक घर के बाहर शौच जाने के लिए अभिशप्त थी.. अब भारत की ‘राष्ट्रपति’ बनने जा रही हैं। एक यह लड़की जो पढ़ना सिर्फ इसलिए चाहती थी कि परिवार के लिए रोटी कमा सके.. वो अब भारत की ‘राष्ट्रपति’ बनने जा रही हैं। कल तक यही मुर्मू, जो बिना वेतन के शिक्षक के तौर पर काम कर रही थीं, वो अब भारत की ‘राष्ट्रपति’ बनने जा रही हैं।  वो महिला, जिसे जब ये लगा कि पढ़ने-लिखने के बाद आदिवासी महिलाएं उससे थोड़ा दूर हो गई हैं तो वो खुद सबके घर जा कर ‘खाने को दे’ कह के बैठने लगीं.. वो अब भारत की ‘राष्ट्रपति’ बनने जा रही हैं। जिस गांव में कहा जाता था राजनीति बहुत खराब चीज है और महिलाओं को तो इससे बहुत दूर रहना चाहिए, उसी गांव की द्रौपदी नया इतिहास लिखेंगी। मुर्मू ने राजनीति में सेवा भाव से उतरकर इसे एक उदाहरण बनाया। वह 2009 में चुनाव हारी, पर हिम्मत नहीं हारीं और वह वापिस गांव लौट गईं तथा नेत्र दान की घोषणा की। वह मानती हैं कि जीवन कठिनाइयों के बीच ही रहेगा, हमें ही आगे बढ़ना होगा। कोई पुश करके कभी हमें आगे नहीं बढ़ा पायेगा।  मुर्मू के प्रयासों से उनके गांव से जुड़े अधिकतर गांवों में आज लड़कियों के स्कूल जाने का प्रतिशत लड़कों से ज्यादा हो गया है। ‘राष्ट्रपति भवन’ अब एक नया ​इतिहास लिख रहा है। 
 मोदी सरकार ने यह काम बहुत अच्छा किया है कि अब सुदूर और पिछड़े हुए और विशेष रूप से आदिवासी इलाकों से महिलाओं को आगे लाया जा रहा है और वह भी देश के  राष्ट्रपति के रूप में तो इससे बड़ा उदाहरण लोकतंत्र के इतिहास में कोई और स्थापित नहीं कर सका। निश्चित रूप से इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा जी, एनएसए अजीत डोभाल या हर महकमे में जितने भी मोदी जी के समर्पित और विश्वसनीय टीम के सदस्य हैं वे सब बधाई के पात्र हैं। मैंने विशेष रूप से द्रोपदी मुर्मू के बारे में जब जानकारी एकत्र की तो पता लगता है कि उन्होंने जीवन भर कितना संघर्ष सामाजिक रूप से ही नहीं बल्कि राजनीति की जमीन पर भी अपने आपको तपाया है तब कहीं जाकर वह कुंदन बनकर उभरी हैं। 1997 में पहली बार वह उड़ीसा में नगर पंचायत का चुनाव जीती। बस फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसी रायरंगपुर की वह उपाध्यक्ष बनी और ठीक तीन साल के बाद यानि कि 2000 में वह इसी सीट से एमएलए बन चुकी थी। यह वह दौर था जब भाजपा और बीजू जनतादल की सरकार बनी तो वह मछली पालन और पशु विभाग की मंत्री बनाई गई। 
मेरी स्टडी मुझे बताती है कि आज की तारीख में द्रोपदी मुर्मू 64 वर्ष की हैं और जब वह  राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी तो देश की सबसे कम उम्र वाली  राष्ट्रपति होंगी। उनका जन्म 20 जून 1958 को हुआ था। उन्होंने उड़ीसा के आदिवासी परिवार में जन्म लिया, ग्रेजुएशन की और कमाल देखिए उड़ीसा के ही राज्य सचिवालय में एक क्लर्क के तौर पर नौकरी शुरू की और अब वह  राष्ट्रपति भवन में सुशोभित होकर देश का गौरव बढ़ायेंगी। महिला को अबला कहकर अपनी रचनाएं लिखने वाले कवियों को आज समझ लेना चाहिए कि हमारी महिला अब सबला है अर्थात बहुत शक्तिशाली है। वे न केवल साइकिल, स्कूटर, कार या टैंक या लड़ाकू विमान, मैट्रो ही नहीं चला सकती बल्कि अंतरिक्ष में भी अपनी पहचान बना चुकी हैं। कॉरपोरेट सेक्टर को शानदार ढंग से संचालित करने वाली महिलाएं आज  राष्ट्रपति बनकर देश के सामने एक उदाहरण बन सकती है। ऐसी द्रोपदी मुर्मू और उनके संघर्ष को सौ-सौ बार सलाम और इंतजार इस दिन का कि जब वह  राष्ट्रपति बनकर देश के नाम एक इतिहास लिखेंगी। 

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