अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय कार्रवाई के लिए बने कार्यदल ( एफ ए टी एफ ) द्वारा पाकिस्तान को अपनी संदिग्ध श्रेणी (ग्रे एरिया) में डाल देने से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत के इस पड़ौसी देश पर आतंकवाद को पनपाने के मामले में दुनिया को पक्का सन्देह है। दुनिया के देश यह समझते हैं कि पाकिस्तान में दहशतगर्द तंजीमों को बाकायदा वित्तीय मदद मिलती है जिससे वे फलते–फूलते हैं। वैसे भारत लगातार यह बात अब से नहीं बल्कि पिछले एक दशक से कह रहा है। इस मामले में भारत ने ही सबसे पहले अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाई थी और कहा था कि विश्व की बैंकिंग प्रणाली में गोपनीयता के प्रावधान को हटाने का समय आ गया है क्योंकि आतंकवादी संगठनों के वित्तीय पोषण के स्रोतों की जानकारी लेने के लिए यह बहुत जरूरी है। इसकी मांग सबसे पहले विदेश मन्त्री के रूप में पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने उठाई थी और जी-20 देशों के विदेश मन्त्रियों के सम्मेलन में उन्होंने 2007-08 में इस खतरे की तरफ इशारा करते हुए विश्व के औद्योगिक देशों का ध्यान खींचते हुए कहा था कि बैंकिंग प्रणाली की गोपनीय शुचिता की आड़ में एेसे अपराध को फलने–फूलने नहीं दिया जा सकता जिसके लपेटे में आने से दुनिया का कोई भी देश सुरक्षित न हो।
उस समय यह गंभीर चेतावनी थी जिसे भारत ने देने की पहल की थी मगर अब यह हकीकत हो चुकी है। हालांकि एफएटीएफ की अब की गई कार्रवाई का असर पाकिस्तान पर यह हुआ है कि वह अगले 15 महीनों के भीतर 26 सूत्री कार्य योजना पर अमल करेगा और अपने यहां की दहशतगर्द तंजीमों के वित्तीय पोषण पर नकेल डालने की कोशिश करेगा। इनमें जमात-उद-दावा से लेकर लश्कर-ए-तैयबा, हक्कानी आतंकतन्त्र, फलाहे-इंसानियत, जैश-ए-मोहम्मद व अफगानिस्तानी तालिबान जैसे संगठन शामिल हैं। ये सभी संगठन पाकिस्तान की सरहदों में जमकर फलफूल रहे हैं और इनमें से कुछ को तो यहां सामाजिक संस्थाओं जैसा तक रूतबा प्राप्त है।
समाज सेवा के नाम पर ये संगठन नागरिकों को दहशतगर्द बनाने का काम करते हैं और इसके लिए शिक्षा के क्षेत्र तक में सक्रिय रहने का ढोंग रचते हैं। इन सभी संस्थाओं ने पाकिस्तान में आतंकवाद की एेसी फैक्टरियां खोली हुई हैं जो नागरिकों में छात्र स्तर से ही मजहबी जुनून पैदा कर उन्हें आतंकवादी बनाती हैं। इसके लिए इन संगठनों को वित्तीय पोषण किन स्रोतों से प्राप्त होता है? यह खोज का विषय रहा है। कोई भी आतंकवादी संगठन बिना वित्तीय मदद के अपना विस्तार नहीं कर सकता।
पाकिस्तान के सन्दर्भ में यह ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि इस देश की फौज स्वयं आतंकवादियों को पालती–पोसती रही है। इस बारे में पाक के जनरल व राष्ट्रपति रहे परवेज मुशर्रफ का यह बयान बहुत महत्वपूर्ण है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन पाकिस्तानियों के लिए ‘हीरो’ जैसे रहे हैं। इसका मतलब यही निकलता है कि पाकिस्तान इन आतंकवादी संगठनों को अपनी ‘सुरक्षा गारद’ का एक अंग मानता है। पाकिस्तान को दहशतगर्द मुल्क घोषित करने के लिए इसके पूर्व राष्ट्रपति का यही बयान काफी था मगर पश्चिमी देश व अमेरिका शुरू से ही पाकिस्तान को भारत के खिलाफ ‘ढाल’ के रूप में प्रयोग करने के आदी रहे हैं। अब इसका उपयोग वे भारत को अपने साथ रखने के लिए करते हैं क्योंकि चीन ने पूरी तरह पाकिस्तान को अपने कन्धे पर बिठा रखा है। यही वजह है कि इस मुल्क में अभी तक लोकतन्त्र मर–मर कर जिन्दा होता रहा है और अधमरी हालत में पड़ा हुआ है। यहां की फौज के सीधे तार प्रभावशाली मुल्कों से जुड़े हुए हैं जिनमें चीन व अमेरिका दोनों ही शामिल हैं।
अमेरिका ने तो इसकी वित्तीय मदद इस हकीकत के बावजूद बन्द नहीं की है कि इसकी आईएसआई और फौज दोनों मिल कर ही आतंकवादियों के वित्तीय पोषण में हिस्सेदारी करते रहे हैं। मगर इसी महीने पाकिस्तान की राष्ट्रीय एसेम्बली के चुनाव हो रहे हैं जिनमें इस देश की लोकतान्त्रिक पार्टियों को नागरिक अपने मत से सत्ता पर बिठाने का काम करेंगे। दुनिया जानती है कि इस मुल्क में फौज चुनावों में अपने बनाये हुए राजनीतिक दलों की मार्फत परोक्ष रूप से लड़ती है। इन चुनावों में फौज उन दलों को पर्दे के पीछे से मदद करने की कोशिश करेगी जो आतंकवादी संगठनों के लिए नरम रुख रखते हैं। वैसे इस देश में भी एेसे लोगों की कमी नहीं है जो भारत से दोस्ताना ताल्लुकात चाहते हैं और ‘हिन्द-पाक’ के रिश्ते ‘अमेरिका– कनाडा’ की तरह देखना चाहते हैं।
मगर यहां की फौज एेसे ही लोगों को अपना निशाना बनाती रही है और उनके सरपरस्तों को किसी न किसी मामले में फंसाती रही है। इसकी वजह साफ है कि पाकिस्तानी फौज का वजूद भारत से दुश्मनी पर ही कायम है। यही वजह है कि यहां की आवाम को भारत के खिलाफ बरगलाये रखने के लिए फौज ने अपनी सियासी तंजीमें खड़ी की हुई हैं। दूसरी तरफ दहशतगर्द तंजीमों का मकसद तो सिर्फ भारत में बदअमनी और कत्लोगारत का बाजार गर्म करना है ही। इसके लिए कश्मीर को इन्होंने अपने निशाने पर ले रखा है लेकिन सिर्फ उम्मीद ही की जा सकती है कि पाकिस्तान में हालात बदलेंगे और दहशतगर्द तंजीमों की हरकतों पर अन्तर्राष्ट्रीय जगत का चंगुल कसा जायेगा क्योंकि पाकिस्तान के तार यूरोपीय देशों में हुई आतंकवादी घटनाओं से भी जुड़े हुए मिल रहे हैं।