कोई वक्त था जब ग्रुप हाऊसिंग सोसायटियों का गठन किया जाता था, इनमें जनता की सीधी भागीदारी होती थी। सरकार इन्हें भूमि अलॉट करती थी तब जनता की निगरानी में ही निर्माण कार्य होता था। जब से आवासीय सोसायटियों ने उद्योग का रूप लिया तब से इसमें भ्रष्टाचार फैल गया और लोग लुटते चले आ रहे हैं। पिछले दो दशकों से राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में बिल्डर कम्पनियों ने अपना जाल फैलाया हुआ है। खरीदारों को सपनों की दुनिया में ऐसा फंसाया कि लोग फंसते ही चले गए। न तो उन्होंने नियमों का पालन किया और न ही कानून का। नोएडा और ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम या फरीदाबाद जाएं या एनसीआर में कहीं और, आपको गगनचुम्बी इमारतें दिखाई देंगी। इन इमारतों में आपको कहीं बने हुए फ्लैट नजर आएंगे या कहीं आधे बने फ्लैट। इन्हें बने कई वर्ष हो गए हैं लेकिन बिल्डर द्वारा खरीदारों को इनका आवंटन नहीं किया जा रहा क्योंकि बिल्डर सम्बन्धित प्राधिकरण के नियमों और कानूनों का पालन नहीं कर रहे। फ्लैट खरीदारों को भी कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी जा रही।
सेवानिवृत्त हुए नौकरीपेशा लोग परेशान हैं। एक ओर तो वह अपनी भविष्यनिधि का पैसा इन्हें दे चुके हैं, दूसरा इन्हें किराये के मकानों में रहना पड़ रहा है। 10-10 वर्ष की इंतजार के बाद भी इन्हें फ्लैट नहीं मिले। कंक्रीट का जंगल खड़े करने से कोई फायदा नहीं, जब तक इनमें इन्सानों का बसेरा न हो। वीरान पड़े ये फ्लैट जर्जर होते जाएंगे। इतनी बड़ी धोखाधड़ी बिल्डर लॉबी आैर राजनीतिज्ञों की सांठगांठ और अफसरशाही की मिलीभगत के बिना हो ही नहीं सकती। राज्य सरकारों ने कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण कर बिल्डरों को महंगे दामों पर बेच दी। जब भूमि अधिग्रहण के विरोध में टप्पल गांव के लोगों ने आंदोलन किया तब जाकर काफी बहस और मशक्कत के बाद भूमि अधिग्रहण कानून को सख्त बनाया गया। बिल्डरों ने जमकर खेल खेला। पिरयोजना शुरू होने से पहले ही फ्लैटों की बुकिंग कर खरीदारों से धन इकट्ठा किया आैर उस परियोजना का पैसा दूसरी परियोजना में लगा दिया। एक के बाद एक पिरयोजनाएं शुरू होती गईं। बिल्डर कम्पनियों के निदेशक अपनी सम्पत्ति बनाते रहे और खरीदार दर-दर सर पटकने को मजबूर हुआ। महानगरों आैर आसपास के क्षेत्रों में घर खरीदना आम आदमी का सपना रहता है। वह पाई-पाई जोड़कर घर खरीदने के लिए बचत करता है और उसका धन अगर कोई बिल्डर कम्पनी हड़प ले तो उसका दुःख ही उसके लिए सबसे बड़े संकट का रूप धारण कर लेता है।
बिल्डर कम्पनियों ने न केवल लोगों से छल किया बल्कि लोगों की जिन्दगियों से खिलवाड़ भी किया। बिल्डरों को कानून के दायरे में लाने के लिए रेरा का गठन किया गया। फ्लैट खरीदारों को राहत दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक, सुपरटेक, डीएलएफ, लोढा समूह, जेपी समूह जैसे बड़े समूहों और गुरुग्राम, फरीदाबाद की कुछ बिल्डर कम्पनियों पर शिकंजा तो कसा ही था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब आम्रपाली ग्रुप के निदेशकों को पुलिस हिरासत में रखने के आदेश देकर फ्लैट खरीदारों को मानसिक रूप से राहत पहुंचाई है। सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली ग्रुप की सम्पत्तियों को सील कर उनकी चाबी कोर्ट के रजिस्ट्रार के पास जमा कराने को कहा है। जो सम्पत्तियां सील की गई हैं उनमें ही ग्रुप की 46 कम्पनियों के दस्तावेज रखे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक पूरे दस्तावेज जांच अधिकारियों के पास जमा नहीं कराए जाते तब तक कम्पनी के निदेशक पुलिस थाने में रहेंगे। आम्रपाली ग्रुप सुप्रीम कोर्ट को गम्भीरता से नहीं ले रहा था। शीर्ष अदालत खरीदारों की याचिका पर सुनवाई के दौरान कम्पनी के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां भी कर चुकी थी लेकिन कम्पनी अपने वकीलों के माध्यम से मामले को लटकाने का ही प्रयास कर रही थी। अन्ततः सुप्रीम कोर्ट ने कम्पनी के निदेशकों को कानून के दायरे में बांधकर रख दिया। अगर खरीदार इंसाफ पाने के लिए अदालत का द्वार नहीं खटखटाते तो शायद कम्पनी के निदेशक कब के विदेशों में भाग जाते। इनके विदेश भागने की आशंका को देखते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी के पासपोर्ट जब्त कर लिए थे। सत्ताएं बदलती रहीं लेकिन बिल्डरों की प्रभावशाली लॉबी बेधड़क लोगों को लूटती रही।
बिल्डर कम्पनियों के कई निदेशक राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रहे हैं और राजनीतिज्ञों से उनकी सांठगांठ जगजाहिर है। सुप्रीम कोर्ट की आम्रपाली के खिलाफ कड़ी कार्रवाई फ्लैट की इंतजार में बैठे खरीदारों के संघर्ष की बड़ी जीत है। शीर्ष अदालत के रुख से यह स्पष्ट हो गया है कि अब बिल्डर धोखाधड़ी करके भाग नहीं सकेंगे। आम्रपाली निदेशकों को पुलिस हिरासत में रखने का फैसला दूसरे बिल्डरों के लिए नजीर बनेगा। सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली की अधूरी परियोजनाआें को पूरा करने का काम एनबीसीसी के सुपुर्द किया है और पिरयोजना पूरी करने का खर्च कम्पनी की सम्पत्तियां बेचकर जुटाया जाएगा। प्रक्रिया लम्बी जरूर है लेकिन फ्लैट खरीदारों के संघर्ष की पूर्ण जीत तब होगी जब उनका अपने घर का सपना पूरा होगा और एनबीसीसी उन्हें छत मुहैया करा देगी इसलिए तमाम बड़ी कम्पनियों, जिन्होंने लोगों को लूटने के अलावा कोई काम नहीं किया, उन पर शिकंजा कसना जरूरी हो गया है। फ्लैट खरीदारों को न्याय का इंतजार है।