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बढ़ती अर्थव्यवस्था और बढ़ती उम्मीदें

वर्ष 2024 में देश की अर्थव्यवस्था कैसी रहेगी इसके बड़े सुखद संकेत मिले। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था के विस्तार पाने की खबरें मिल रही हैं त्यौं-त्यौं देशवासियों की उम्मीदें भी बढ़ती जा रही हैं। पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह सम्भावना जताई गई कि भारत में घरेलु मांग मजबूत होने से वर्ष 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। भारत दुनिया में बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में टॉप पर रहेगा लेकिन उसे चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है। पिछले वर्ष जी-20 सम्मेलन की सफलता भारत के लिए बेहद खास रही थी। भारत ब्रिटेन को पछाड़ कर पांचवीं अर्थव्यवस्था भी बना। अब इस बात पर नजर रहेगी कि भारत एक और सीढ़ी कब चढ़ता है।
इससे पहले वर्ल्ड बैंक और आईएनएफ ने अनुमान जताया था कि भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से भागेगी। अब एनएफओ ने मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस सैक्टर में शानदार प्रदर्शन के दम पर भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। इन खबरों को सुनकर चीन परेशान जरूर है। चीन की आर्थिक स्थिति ​​बिगड़ने और निवेश में आने का फायदा भारत को मिल रहा है। अलग-अलग रिपोर्टें बताती हैं कि भारत दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर काम कर रहा है। सितम्बर 2023 में बेरोजगारी दर 7.1 प्रतिशत पर आ गई यह पिछले साल का सबसे न्यूतम स्तर है। मानसून की स्थिति खराब होने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर घटी है जबकि एशिया के दूसरे देशों में बेरोजगारी दर के आंकड़े संतोषजनक नहीं हैं। भारत के केन्द्रीय बैंक आरबीआई के अग्रिम अनुमानों में कहा गया है कि लगातार आर्थिक सुधारों से जीडीपी में ​वृद्धि की दर 7.3 प्रतिशत रहेगी। चीन की अर्थव्यवस्था ​दिन प्रति दिन खराब हो रही है और निवेश घटने से बढ़ती बेरोजगारी चीन के लिए बहुत मुश्किल पैदा कर रहा है। ​जिस तरह चीन में प्रोपर्टी की कीमतें बढ़ रही हैं उससे भारत में निवेश बढ़ रहा है। मोदी सरकार ने पूंजीगत व्यय में 43 प्रतिशत का इजाफा किया है। इससे भी देश में निवेश का माहौल बनाने में सहायता मिली है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अब भारत में ज्यादा रुचि ले रही हैं और यह कम्पनियां अब मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने पर ज्यादा जोर दे रही हैं। कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था अपने पड़ाैसियों से बेहतर प्रदर्शन कर रही है।
आर्थिक विशेषज्ञों ने कुछ चुनौतियों का उल्लेख भी किया है। इस साल की पहली छिमाही का बड़ा हिस्सा लोकसभा चुनावों की गहमा गहमी से भरा रहेगा। हालांकि इस वर्ष के बजट में कोई बड़े ऐलान होने के आसार नहीं हैं। इसलिए जुलाई में पेश होने वाले पूर्ण बजट तक सभी सैक्टरों को बड़ी घोषणाओं का इंतजार करना पड़ेगा। देखना होगा कि जुलाई में बजट आने के बाद निजी निवेश में कितनी वृद्धि होती है ताकि सरकार राजकोष के घाटे को कम करने पर ज्यादा ध्यान दे सके। ग्लोबल आर्थिक माहौल को भी देखना बहुत जरूरी है। वैश्विक स्तर पर अनिश्चितताएं बनी रहने का अनुमान है। इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध पिछले साल से छिड़ा हुआ है जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध अभी भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। इन दोनों युद्धों से कोई भी भू राजनीतिक संकट बदतर हो सकता है। यमन के हूती विद्रोहियों और लेबनान स्थित हिज्बुल्लाह आतंकवादी समूह आक्रामक हो रहा है। हूती विद्रोही लाल सागर में नौसैनिक परिवहन पर हमला कर रहे हैं। मालवाहक जहाजों पर लगातार हमले किए जा रहे हैं। लाल सागर स्वेज़ नहर का उपयोग करने वाले जहाजों के लिए प्रवेश बिंदु है जो वैश्विक व्यापार का लगभग 12 प्रतिशत संभालता है और एशिया और यूरोप के बीच माल की आवाजाही के लिए महत्वपूर्ण है। महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण हुए व्यवधानों के बाद क्षेत्र में छिड़ने वाला व्यापक युद्ध एक बार फिर आपूर्ति शृंखलाओं को खतरे में डाल देगा जिससे तेल सहित कमोडिटी की कीमतें बढ़ जाएंगी।
यह भारत की वित्तीय स्थिरता के लिए बुरा होगा क्योंकि देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है। व्यापक युद्ध से खाद्य आपूर्ति पर भी दबाव बनेगा। तेल और खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें भारत की मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती हैं जो अब शांत होती दिख रही है। मुख्य रूप से मुद्रास्फीति कम होने के कारण आरबीआई द्वारा वर्ष की दूसरी छमाही में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद है लेकिन भड़का हुआ युद्ध उसे दरों में बढ़ाैतरी के लिए मजबूर कर सकता है। इसने पिछले साल अप्रैल में अपने दर-वृद्धि चक्र को रोक दिया था। ऊंची दरें आर्थिक विकास में बाधा बनेंगी।
भारत को इस साल भी अनियमित मौसम की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। खाद्यान्न उत्पादन के झटकों से उभरने के लिए भारत को अधिक संवेदनशील बने रहना पड़ेगा। मौसम के झटकों का असर कीमतों पर पड़ता है। इससे मुद्रास्फीति बढ़ जाती है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी उम्मीद जताई है कि महंगाई को काबू रखने के उपाय कारगर रहेंगे और देश के नागरिकों की क्रय शक्ति लगातार बढ़ेगी। माना जा रहा है कि सरकार की नीतियों से जनता के पास रोजगार उपलब्ध होगा और उनके हाथों में उपलब्ध पैसा आर्थिक गतिविधियों को गति देगा। सरकार को उम्मीद है कि देश की आर्थिक ताकत लगातार बढ़ेगी और विकसित भारत बनाने का सपना फलीभूत होगा।

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