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गुजरातः मतदान का पहला दौर

गुजरात विधानसभा के जारी चुनाव इस बार कई मायनों में विलक्षण हैं।

 गुजरात विधानसभा के जारी चुनाव इस बार कई मायनों में विलक्षण हैं। सर्वप्रथम यहां पिछले 27 वर्षों से सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा अपने चुनाव प्रचार के सभी पिछले रिकार्ड तोड़ने की दिशा में आगे बढ़ती हुई दिखाई पड़ रही है जबकि इसकी मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी अभी तक का सबसे सुस्त प्रचार करने का रिकार्ड बनाती हुई दिखाई पड़ रही है मगर इस बार इस पार्टी ने अपनी चुनाव प्रचार रणनीति को इस तरह बदला है कि वह सीधे मतदाता के सम्पर्क में आ सके। यह विरोधाभास चुनाव परिणाम किस तरफ ले जायेगा कोई विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता मगर इतना निश्चित जान पड़ता है कि गुजराती मतदाता अपनी आदत के अनुसार जिस भी पार्टी को बहुमत देंगे पूर्णता के साथ देंगे क्योंकि पिछले तीन चुनावों से वे ऐसा ही करते आ रहे हैं। आज गुरुवार को राज्य की कुल 182 सीटों में से 89 के लिए प्रथम चरण का मतदान था और इसमें मतदाताओं ने 60 प्रतिशत से अधिक मतदान किया है जो कि लोकतन्त्र के लिए अच्छा ही कहा जायेगा। मतदान प्रतिशत के आधार पर नतीजों का कयास लगाना बुद्धिमत्ता नहीं कही जाती है क्योंकि इस बार राज्य में दिल्ली की आम आदमी पार्टी भी चुनावी लड़ाई को त्रिकोणात्मक बनाने के प्रयास कर रही है। कुछ चुनावी विशेषज्ञ इसे कांग्रेस व भाजपा व दोनों को ही नुकसान पहुंचाने वाली पार्टी बता रहे हैं। मगर जमीनी धरातल पर कुछ विशेष अंचलों में इस पार्टी ने अपनी जगह बनाने में सफलता इसलिए प्राप्त कर ली है क्योंकि सूरत जैसे वाणिज्यिक व औद्योगिक शहर की नगर निकाय में यह पार्टी अपने 27 पार्षद भेजने में सफल रही थी। 
आम आदमी पार्टी ठीक भाजपा की तरह ही नगर निकाय चुनावों से विधानसभा की तरफ बढ़ती है। भाजपा ने भी 1967 में दिल्ली नगर निगम में अपनी जीत दर्ज करने के बाद ऐसा ही किया था मगर भाजपा अपने जनसंघ अवतार के रूप में तब भी राष्ट्रीय पार्टी थी और 1967 के चुनावों में इसने दिल्ली की केवल एक लोकसभा सीट छोड़ कर शेष सभी पर विजय प्राप्त करने में भी सफलता प्राप्त कर ली थी। आम आदमी पार्टी का ग्राफ इस मायने में भाजपा से अलग कहा जा सकता है। इसके बावजूद गुजरात में आम आदमी पार्टी की उपस्थिति को एक ‘वाइल्ड कार्ड एंट्री’ के तौर पर देखा जा रहा है जो भाजपा व कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचा सकती है। ये चुनाव इस मायने में अलग हैं कि इनमें भाजपा की ओर से कोई प्रादेशिक चेहरा प्रमुख नहीं बनाया गया है और स्वयं प्रधानमन्त्री के चेहरे पर ही पूरी पार्टी चुनाव लड़ रही है। श्री मोदी यदि अपनी लोकप्रियता के बूते पर भाजपा को जिता देते हैं और इस पार्टी की सरकार पुनः बन जाती है तो यह भी एक रिकार्ड होगा। 
किसी प्रदेश के चुनावों में प्रधानमन्त्री के नाम पर वोट मिलना भारतीय लोकतन्त्र में ही इसलिए संभव माना जाता है क्योंकि यहां के लोग नेतृत्व क्षमता को बहुत ऊंचे पायदान पर रखते हैं। ऐसा ही कांग्रेस की नेता श्रीमती इन्दिरा गांधी के बारे में भी था। परन्तु जहां तक गुजरात का सवाल है तो यह राज्य राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाला रहा है। 1972 में यहां चले नवनिर्माण छात्र आन्दोलन ने ही बिहार में जाकर जय प्रकाश नारायण आन्दोलन का स्वरूप 1974 में लिया था। छात्रों का यह आंदोलन नागरिकों की समस्याओं को लेकर था और मुख्य रूप से महंगाई के खिलाफ था। बाद में इसने राष्ट्रीय स्वरूप ले लिया और जेपी जैसे समाजवादी विचारक नेता भी इससे जुड़ गये। इस राज्य के लोग शुरू से ही वाणिज्य बुद्धि के रहे हैं। इसका सूरत बन्दरगाह विदेश व्यापार का केन्द्र मुगलकाल के दौर से पहले से भी रहा। गुजरात चुनावों के परिणाम 8 दिसम्बर को ही आयेंगे और इस बीच 5 दिसम्बर को शेष सीटों के लिए मतदान होगा। मतदान पूरी तरह सुरक्षित और बिना खतरे के हो इसके लिए चुनाव आयोग पूरा प्रबन्ध कर रहा है और ईवीएम मशीनों की सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम उसे करने होंगे जिससे किसी भी प्रकार के शक की कोई गुंजाइस मतदाताओं के मन में न रह पाये। चुनाव आचार संहिता लागू होने तक चुनाव आयोग ही राज्य प्रशासन का संरक्षक है अतः उसकी गुजरात में मतदान देखरेख में ही सारी प्रशासनिक प्रणाली रहेगी। भारत की परंपरा है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष व निर्भीक चुनाव कराता रहा है। संविधान बनाने वाले हमारे पुरखे इस बात का पक्का इन्तजाम करके गये हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि लोकतन्त्र का जो जश्न गुजरात में मनाया जा रहा है वह बिना किसी विघ्न-बाधा के खुशी-खुशी सम्पन्न होगा।

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