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ज्ञानवापी का ‘बोलता सच’

कांशी के ज्ञानवापी परिक्षेत्र का वाराणसी अदालत में चल रहा मामला आगे 11 अक्टूबर तक टल गया है मगर इतना निश्चित है कि यह क्षेत्र हिन्दू धर्मशास्त्रों में भगवान शिव के आदिविश्वेश्वर रूप में वर्णित है। #

हालांकि कांशी के ज्ञानवापी परिक्षेत्र का वाराणसी अदालत में चल रहा मामला आगे 11 अक्टूबर तक टल गया है मगर इतना निश्चित है कि यह क्षेत्र हिन्दू धर्मशास्त्रों में भगवान शिव के आदिविश्वेश्वर रूप में वर्णित है। स्कन्द पुराण में तो ज्ञानवापी क्षेत्र की महिमा का अद्भुत वर्णन है। इसके बावजूद यदि इस क्षेत्र को इतिहास के मुस्लिम शासकों द्वारा मस्जिद में परिवर्तित किया गया तो स्वतन्त्र भारत में इसमें तुरन्त सुधार कर लिया जाना चाहिए था। परन्तु ऐसा नहीं हो सका। इसके पीछे की वजह भी समझी जा सकती है कि केवल इस्लाम मजहब के आधार पर मुस्लिम जनता के लिए पृथक पाकिस्तान के निर्माण के बाद भारत में साम्प्रदायिक सौहार्द की सख्त अवश्यकता थी परन्तु इसका मतलब यह भी नहीं हो सकता कि भारत और इसकी संस्कृति की अस्मिता को नजरअन्दाज कर दिया जाये। कांशी को केवल हिन्दू अस्मिता से जोड़ना अन्याय होगा, यह स्थान पूरे भारत की अस्मिता से जुड़ा हुआ है और इसकी संस्कृति का सचित्र वर्णन है। अतः सर्वप्रथम भारतीय मुसलमानों का ही यह दायित्व बनता है कि वे स्वयं ही ज्ञानवापी क्षेत्र को अपने हिन्दुओं भाइयों को सौप दें जिससे इतिहास में हुए अन्याय को मिटाया जा सके। क्योंकि यह तो लिखित प्रमाण है कि 1669 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी ​विश्वनाथ मन्दिर और मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मन्दिर को खंडित करने का फरमान जारी किया था। बेशक उसने ऐसा भारत की बहुसंख्या हिन्दू रियाया पर अपने मजहब का रुआब गालिब करने और अपने बादशाह होने के गरूर को सुर्खरू करने के लिए किया होगा परन्तु उसका यह कृत्य उस भारत की आत्मा की हत्या करने वाला था जिसका वह आसन बना बैठा था। 
औरंगजेब की क्रूरता के किस्से इतिहास में भरे पड़े हैं, उन्हें यहां दोहराने का कोई लाभ नहीं है मगर इतना समझना जरूरी है कि केवल अकबर व जहांगीर को छोड़ कर शेष सभी प्रमुख मुगल शासकों ने हिन्दू रियाया की धार्मिक भावनाओं पर आघात करने से कोई गुरेज नहीं किया। औरंगजेब का बाप शाहजहां तो इतना तास्सुबी था कि उसने अपने पिता जहांगीर व दादा कभर के शासन के दौरान बनवाये गये सभी हिन्दू मन्दिरों को तोड़ने का हुक्म जारी कर दिया था और किसी भी नये मन्दिर के निर्माण पर पाबन्दी लगा दी थी। काशी में ज्ञानवापी क्षेत्र को भ्रष्ट करके जिस तरह वहां पर लगभग साढे़ तीन सौ साल पहले आदि विश्वेश्वर महादेव के पूजा स्थल को मुस्लिम मस्जिद में बदलने का प्रयास किया गया वह भी स्वयं में सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति का अपमान था और इस देश की अस्मिता को पैरों तले रौंदने से कम नहीं था क्योंकि हिन्दुओं के लिए काशी का अर्थ वही होता है जो मुसलमानों के लिए काबे का। आदि विश्वेश्वर महादेव के लिंग को बाद में फव्वारा बताने की धृष्टता से केवल हिन्दू ही आहत नहीं हुए हैं बल्कि वे सच्चे मुसलमान वे भी जरूर आहत हुए होंगे जिन्हें ‘अल्लाह वाले’ कहा जाता है।
 ज्ञानवापी मस्जिद के पूरे ढांचे को देख कर कोई भी मुसलमान स्वयं ही कह सकता है कि यह किसी मन्दिर के ऊपर तामीर की गई मस्जिद है क्योंकि मस्जिद की दीवारों से लेकर उसकी चारदीवारी पर हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं व चित्र अंकित हैं। मस्जिद की पूरी बनावट और स्थापत्य हिन्दू शैली के मन्दिर का है। किन्तु मुस्लिम पक्ष के कुछ लोग जिद पर अड़े हुए हैं कि आदि विश्वेश्वर लिंग एक फव्वारा है और पूरा भवन मस्जिद है। वाराणसी की अदालत में यह मुकदमा चल रहा है और हिन्दू पक्ष मांग कर रहा है कि शिवलिंग की (कार्बन डेटिंग) पुरातत्विक तिथि का आंकलन वैज्ञानिक पद्धति से कराया जाये जिससे फव्वारे का विवाद समाप्त हो सके। मुस्लिम पक्ष इसका विरोध कर रहा है परन्तु हिन्दू में एक पक्ष की याचिकाकर्ता राखी सिंह ने मांग की है कि कार्बन डेटिंग न करायी जाये क्योंकि इसमें शिवलिंग के खंडित होने का खतरा पैदा हो जायेगा। परन्तु यह भी तथ्य है कि शिवलिंग को फव्वारा सिद्ध करने के लिए मुस्लिम पक्ष ने शिवलिंग के ऊपरी भाग में छतरी गाड़ने का असफल प्रयास किया। फिर  भी राखी सिंह के तर्क में वजन हो सकता है जिसकी वजह से शिवलिंग की पौराणिक स्थिति जानने के लिए किसी दूसरी वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जा सकता है जिसमें शिवलिंग को कोई नुकसान न हो सके और कथित फव्वारे का सच भी सामने आ सके। मगर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि भारतीय संस्कृति के संरक्षण में मुस्लिम नागरिकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि उनकी रगों में भी भारतीय पूर्वजों का रक्त ही बहता है। यहां तक कि शाहजहां की माता भी जहांगीर की हिन्दू पत्नी थी और जहांगीर भी हिन्दू मां जोधाबाई का पुत्र था। 21वीं सदी में आकर हमें स्वीकार करना चाहिए कि भारत के 98 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम हिन्दू धर्म से धार्मान्तरित ही हैं। पूजा पद्धति या मजहब अलग होने से खून का रिश्ता नहीं मिट सकता। आखिरकार भारत की धरती ही हर हिन्दू-मुसलमान का पेट पालती है। 

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