प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के दूसरी बार प्रधानमंत्री बने शहबाज शरीफ को बधाई दी है। हालांकि प्रधानमंत्री की शपथ लेने से पहले ही शहबाज ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। उन्होंने पुरानी रिवायत की ही तरह कश्मीर का राग अलापा और उसकी तुलना फिलीस्तीन से की। शहबाज ने फिलीस्तीनियों की आजादी की वकालत करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करने की अपील भी की। यह स्पष्ट है कि शहबाज शरीफ को आगे कर नवाज शरीफ ही पाकिस्तान की सरकार चलाएंगे। शरीफ भाइयों के पास पाकिस्तान की कमान ऐसे वक्त में आई है जब पाकिस्तान की आर्थिक हालत कंगाली के दौर में है और दूसरी तरफ पाकिस्तान के साथ रिश्ते काफी तलख चल रहे हैं। भारत ने हमेशा अपने पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश की है। भारत ने हमेशा यही चाहा है कि उसके पड़ोस में स्थिर, मजबूत और लोकतांत्रिक सरकारें हों लेकिन दुर्भाग्य से पाकिस्तान हमारा ऐसा पड़ोसी रहा जिससे हमने मधुर संबंध कायम करने की लाख कोशिशें कीं लेकिन उसने भारत को बड़े-बड़े जख्म ही दिये।
भारत स्वतंत्रता प्राप्ति से आज तक पाक प्रायोजित आतंकवाद का सामना कर रहा है। अब एक बार फिर यह चर्चा चल पड़ी है कि शहबाज शरीफ की सरकार भारत के लिए शरीफ साबित होगी या पहले की ही तरह वह बदमाशी करती रहेगी। जहां तक पाकिस्तान से संंबंध सुधारने की बात है पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने शासनकाल में बस से लाहौर गए थे। तब अटल जी और नवाज शरीफ ने संबंधों को सुधारने के लिए लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन अटल जी के भारत लौटते ही पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ की साजिश के चलते हमें अपनी ही भूमि पर कारगिल युद्ध लड़ना पड़ा। उसके बाद घटनाक्रम ऐसा हुआ कि अटल सरकार को पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा स्टैंड लेना पड़ा। 2014 में नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत ने संबंधों को सामान्य बनाने के लिए बड़ी पहल की लेकिन संबंध सामान्य न हो सके। 23 दिसम्बर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अफगानिस्तान और रूस की 3 दिवसीय यात्रा के बाद लौटते समय अचानक लाहौर में रुकने का फैसला किया तब तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज भी उनके साथ थी।
लाहौर के अल्लामा इकबाल अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने गर्मजोशी से पीएम मोदी को गले लगाकार उनका स्वागत किया था। लाहौर हवाई अड्डे से दोनों हैलीकाप्टर से लाहौर के बाहरी इलाके में नवाज शरीफ के महलनुमा ‘जातिउमरा’ आवास तक पहुंचे थे।
मौका शरीफ का 66वां जन्मदिन था और उनकी पोती मेहरून निसा की शादी के लिए परिवार के घर को रोशनी से सजाया गया था। स्वदेश लौटने से पहले मोदी और शरीफ ने लगभग 90 मिनट तक बातचीत की और शाम का भोजन साझा किया। पहली बार की शृंखला में यह मोदी की पाकिस्तान की पहली यात्रा थी जो कि एक अनिर्धारित यात्रा थी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के निजी आवास की पहली यात्रा थी। किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान की आखिरी यात्रा 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा की गई थी, जिनका 91वां जन्मदिन भी लाहौर प्रवास के साथ ही आया था और जिन्हें इस्लामाबाद के साथ संबंधों में नरमी लाने का श्रेय दिया जाता है। अवसर की प्रकृति को देखते हुए राजनीतिक नतीजे मामूली लेकिन उत्साहवर्धक थे। लिए गए निर्णयों में यह भी शामिल था कि दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत किया जाएगा, लोगों के बीच संपर्क भी बढ़ाया जाएगा और 15 जनवरी, 2016 को दोनों देशों के विदेश सचिवों की बैठक होगी।
तब लगा था कि दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों को पटरी पर लाने के लिए प्रक्रिया की नरम शुरूआत हुई है लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला। पाकिस्तान ने पुलवामा नरसंहार समेत बड़े आतंकवादी हमले जारी रखे। तब से ही भारत सरकार का यह स्टैंड रहा है कि आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते। भारत द्वारा 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, जम्मू-कश्मीर का िवशेष दर्जा हटाए जाने और राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद दोनों देेशों के संबंधों में तनाव बढ़ गया। पाकिस्तान ने अपनी घरेलू सियासत को देखते हुए भारत के साथ व्यापार सहित सारे संबंध तोड़ लिए।
अब सवाल यह है कि क्या दोनों देश फिर से वार्ता की तरफ बढ़ सकते हैं। हालांकि पाकिस्तान द्वारा व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध तोड़े जाने का सबसे ज्यादा नुक्सान उसे ही भुगतना पड़ा है। शहबाज शरीफ क्या भारत के साथ किसी सुलह समझौते के लिए बढ़ पाएंगे। पाकिस्तान इस समय बहुत कमजोर है और वह बातचीत के लिए कोई पूर्व शर्त रखने की स्थिति में भी नहीं है। शहबाज शरीफ की पहली प्राथमिकता अपनी सरकार को स्थिर करने और पाकिस्तान के लिए पैसों का इंतजाम करना है। सम्भव है कि व्यापार और पानी की कमी जैसे मुद्दों पर बातचीत के लिए शहबाज कोई पहल करे। नवाज शरीफ के शासन में दोनों देशों के संबंध एक ही समय में अच्छे और बुरे रहे हैं। वैसे शरीफ बंधुओं का रिकार्ड भी अच्छा और बुरा यानि मिश्रित रहा है। भारत से संबंध सुधारने के लिए शहबाज शरीफ को सेना की छाया से निकल कर साहसिक कदम उठाना होगा। भले ही चुनावी घोषणा पत्र में शरीफ भाइयों ने भारत से रिश्ते सुधारने के संकेत दिए हों लेकिन इसकी उम्मीद कम है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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