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भारत की बड़ी डील

आज की दुनिया में बिना व्यापार के कोई भी देश अपनी जरूरतें पूरी नहीं कर सकता। देशों को अर्थव्यवस्था मजबूत बनाने के लिए व्यापार समझौते करने पड़ते हैं। इन समझौतों के जरिए निवेश को बढ़ावा दिया जाता है जिससे रोजगार के अवसर सृजत होते हैं। वित्तीय गतिविधियां तेज होती हैं जिससे देशों को काफी फायदा होता है। मुक्त व्यापार समझौता दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात की बाधाओं को कम करने के लिए एक समझौता है। मुक्त व्यापार नीति के तहत वस्तुओं और सेवाओं को अंतर्राष्ट्रीय सेवाओं के पार बहुत कम या बिना किसी सरकारी टैरिफ, कोटा, सब्सिडी या उनके विनियम को रोकने के निषेध के साथ खरीदा और बेचा जा सकता है। मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद या आ​िर्थक अलगाववाद के बिल्कुल विपरीत है। यद्यपि मुक्त व्यापार नीतियों या समझौते वाली सरकारें जरूरी नहीं है कि आयात और निर्यात की सभी नियंत्रणवादी नीतियों को खत्म कर दें। आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कुछ मुक्त व्यापार समझौतों के परिणामस्वरूप पूरी तरह से मुक्त व्यापार होता है।
भारत और यूरोपीय फ्री ट्रेड एसोसिएशन के चार देशों स्विट्जरलैंड, नार्वे, आईसलैंड और लीशंटेस्टीन से एफटीए समझौता हुआ है। इस फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को मोदी सरकार की बड़ी जीत माना जा रहा है। भारत की कूटनीतिक जीत का यह कोई पहला उदाहरण नहीं है। भारत की कूटनीति का लोहा पूरी दुनिया मान रही है। इस समझौते के तहत चारों देश अगले 15 सालों में भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करेंगे जिससे 10 लाख रोजगार अवसरों का सृजन होगा। इस समझौते के तहत ईएफटीए देशों में भारत के औद्योगिक सामान की शुल्क रहित एंट्री सुनिश्चित की गई है। इसकी एवज में भारत में फार्मास्यूटिकल्स, मेडिकल उपकरण और प्रोसेस्ड फूड पर लगने वाले शुल्क से रियायत मिलेगी। इस एग्रीमेंट के दायरे में सर्विस सैक्टर भी हैं जहां भारत ने 105 सब सैक्टर खोले हैं। आईटी, बिजनैस सर्विसज, एजुकेशन और हैल्थ केयर जैसे सहयोग का वादा किया गया है। इस ट्रेड समझौते के लिए 2008 में बातचीत शुरू की गई थी और नवम्बर 2016 में यह बातचीत रुक गई थी। उसके बाद 2018 में भी बातचीत शुरू हुई लेकिन 5 साल बाद 2023 में बातचीत आगे बढ़ी। यह समझौता लम्बी प्रक्रिया के बाद सम्पन्न हुआ है। भारत इस समय उभरता हुआ बाजार है और यूरोप के कई देश अब भारत के बाजार में एंट्री चाहते हैं।
भारत भी विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और क्षेत्रीय संगठनों के साथ एफटीए चाहता है। इसमें व्यापार रियायत के मामले भी शामिल हैं। भारत ने वित्त वर्ष 22-23 में अपने निर्यात लक्ष्य को पूरा करने के लिए एफटीए को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है। भारत ने आस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात के साथ भी अंतरिम व्यापार समझौते किए हुए हैं। ब्रिटेन से भी एफटीए के लिए बातचीत चल रही है।
जिन चार देशों के साथ समझौते हुए हैं उसमें से स्विट्जरलैंड भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है। साल 2022-23 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 17.14 अरब डॉलर का रहा जबकि इन चारों देशों के साथ मिलाकर व्यापार 18.66 अरब डॉलर का था। स्विस सरकार ने समझौते को “मील का पत्थर” कहा है। इस समझौते के बाद भारत कुछ समय के लिए उच्च गुणवत्ता वाले स्विस उत्पादों जैसे स्विस घड़ी, चॉकलेट, बिस्कुट जैसी चीजों पर कस्टम ड्यूटी हटा देगा। डील के अनुसार, भारत सोने को छोड़कर, स्विट्जरलैंड से लगभग 95 प्रतिशत औद्योगिक आयात पर कस्टम ड्यूटी तुरंत या समय के साथ हटा देगा। इससे सीफूड जैसे टूना, सॉलमन, कॉफी, तरह-तरह के तेल, कई तरह की मिठाइयां और प्रोसेस्ड फूड की कीमत भारत में कम होगी। इसके अलावा स्मार्टफोन, साइकिल के सामान, मेडिकल के उपकरण, डाई, कपड़ा, स्टील के सामान और मशीनरी भी सस्ते होंगे।
इस समझौते के तहत टैरिफ तय करना भी एक लम्बी प्रक्रिया है। अब हर देश अपनी संसद में इस पर मोहर लगाएगा और उम्मीद है कि इस साल के अंत तक इसे लागू कर दिया जाएगा। इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद अन्य देशों की भी भारत में रुचि बढ़ गई है और अन्य कई देश भी भारत के साथ ऐसे समझौते चाहते हैं लेकिन इसके लिए जरूरी है सबसे पहले अपने हितों को देखना। जब तक शुल्क से जुड़ी समस्याओं का समाधान नहीं होता तब तक इन पर आगे नहीं बढ़ा जा सकता। ब्रिटेन के ब्रैग्जिट (यूरोपीय संघ को छोड़) के बाद उसे एक मजबूत व्यापारिक साझीदार की जरूरत है इसलिए उसने भारत को चुना है। ब्रिटेन के निर्माताओं और उत्पादकों के लिए नए बाजार की जरूरत है जिसमें खाद्य और पेय क्षेत्र के अलावा नवीकरणीय तकनीक ऑटो मोबाइल और सेवा क्षेत्र भी शामिल हैं। भारतीय कम्पनियां पहले ही ब्रिटेन में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान कर रही है। अगर ब्रिटेन से एफटीए होता है तो दोनों देशों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। मुक्त व्यापार समझौते के लिए भारत की अलग से यूरोपीय संघ से बातचीत जारी है। ऐसे व्यापारिक समझौतों से भारत का उद्योग जगत काफी प्रसन्न है क्योंकि निवेश बढ़ेगा तो इसका फायदा उद्योग जगत को होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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