रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद बदलते हुए भूराजनीतिक वातावरण को देखते हुए रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का महत्व काफी बढ़ चुका है। यूक्रेन युद्ध संकेत देने के लिए पर्याप्त है कि अब भारत के रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण का समय आ गया है। पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान के खतरों और सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए भी भारत के लिए रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता जरूरी है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद ने लगभग 45 हजार करोड़ की लागत से विभिन्न हथियार प्रणालियों और अन्य उपकरणों की खरीद के प्रस्तावों को मंजूरी दी है, जिनमें हवा से सतह पर वार करने वाले कम दूरी की मिसाइल ध्रुवास्त्र और 12 एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमान और डोर्नियर विमानों को अद्यतन करना शामिल है। यह सभी खरीद भारतीय विक्रेताओं से की जाएगी जिससे आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में भारतीय रक्षा उद्योग को पर्याप्त प्रोत्साहन मिलेगा। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारतीय स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित परियोजनाओं के लिए 50 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री की सीमा के बजाय हमें न्यूनतम 7.65 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री का लक्ष्य रखना चाहिए। रक्षा मंत्रालय ने हल्के बख्तरबंद बहुउद्देशीय वाहनों और भारतीय नौसेना के लिए अगली पीढ़ी के सर्वेक्षण पोत की खरीद को भी मंजूरी दी है।
किसी भी देश की सीमा की सुरक्षा करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। चीन और पाकिस्तान पर भारत जरा भी भरोसा नहीं कर सकता। पूर्वी लद्दाख में चार साल पहले हुई झड़प के बाद 3488 किलोमीटर लम्बी एलएसी पर दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति है। ऐसे में सीमा पर बसे इलाकों में बुनियादी ढांचे का विकास बहुत जरूरी होता है। पिछले हफ्ते रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने लद्दाख और अरुणाचल में लगभग 90 परियोजनाओं का उद्घाटन किया है। सीमांत क्षेत्रों में नई सड़कों, पुल, सुरंग, हवाई पट्टी और हैलीपैड बनाए गए हैं। सीमा सुरक्षा के लिए इन परियोजनाओं का मकसद चीन की किसी भी हरकत का मुंहतोड़ जवाब देना है।
कभी हम रक्षा क्षेत्र की हर छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर होते थे लेकिन जैसे-जैसे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है वैसे-वैसे रक्षा के लिए जरूरी सामानों को अब भारत में ही बनाया जाने लगा है। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पिछले कुछ वर्षों से महत्वपूर्ण फैसले ले रही है जिससे हम रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं।
रक्षा क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प को पूरा करने के लिए सबसे जरूरी है देश में रक्षा क्षेत्र से जुड़े घरेलू उद्योग को मजबूत करना और इसके लिए केंद्र सरकार पिछले कुछ सालों से कई तरह के ठोस फैसले ले रही है। घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार उन उपकरणों, पुर्जों और सेवाओं की लगातार पहचान कर रही है जिनसे जुड़ी जरूरतों को देश की कंपनियों से पूरा किया जा सकता है। इसके तहत रक्षा मंत्रालय समय-समय पर ऐसे कल-पुर्जों और कंपोनेंट्स की सूची जारी करती है, जिनको सिर्फ़ घरेलू कंपनियों से ही खरीदा जा सकेगा। इसे सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची कहते हैं। इसी परंपरा को आगे ले जाते हुए रक्षा मंत्रालय ने 14 मई को चौथी ‘सकारात्मक स्वदेशीकरण’ सूची (पीआईएल) को मंजूरी दे दी। इस सूची में 928 पुर्जों और सब सिस्टम शामिल हैं। इसमें लाइन रिप्लेसमेंट यूनिट्स, सब-सिस्टम्स और अलग-अलग सैन्य प्लेटफॉर्म, उपकरण और हथियारों में प्रयोग किए जाने वाले कल-पुर्जे, कंपोनेंट्स, हाई-ऐंड मटीरियल्स शामिल हैं।
रक्षा मंत्रालय की ओर से समय-समय पर इस तरह की जो सूची जारी की जाती है, उन सूचियों में शामिल सामानों या सेवाओं के आयात पर रोक लग जाती है। इस तरह की चौथी सूची में 928 चीजें हैं और जिनका आयात प्रतिस्थापन मूल्य 715 करोड़ रुपये है। यानी इन चीजों पर आयात में इतनी बड़ी राशि सरकार को खर्च करनी पड़ती। रक्षा मंत्रालय ने इन वस्तुओं के आयात प्रतिबंध को लेकर समय सीमा को भी स्पष्ट कर दिया है। चौथी सूची में शामिल चीजों के लिए ये समय सीमा दिसंबर 2023 से लेकर दिसंबर 2028 तक यानी 5 वर्ष है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह कई बार कह चुके हैं कि भारत रणनीतिक कौशल के साथ-साथ कूटनीतिक कर्णप्रियता पर भरोसा रखने वाला देश है लेकिन इसके लिए यह भी जरूरी है कि भारतीय सेनाएं हर परिस्थिति का सामना करने को तैयार हों। भारतीय सेना ने हमेशा रणनीतिक कौशल का परिचय दिया है। मैं यही कहना चाहता हूं-
‘‘जहां शस्त्र बल नहीं
वहां शास्त्र पछताते और रोते हैं
ऋषियों को भी तप में सिद्धि तभी मिलती है,
जब पहरे में स्वयं धर्नुधर राम खड़े होते हैं।’’
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com