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मोदी मन्त्रिमंडल के नये सितारे

नई मोदी सरकार में जिस मन्त्रिपरिषद का गठन हुआ है वह स्वतन्त्र भारत की राजनीति में एक नये अध्याय की शुरूआत माना जायेगा जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की स्वतन्त्र सोच की छाप मुखर है।

नई मोदी सरकार में जिस मन्त्रिपरिषद का गठन हुआ है वह स्वतन्त्र भारत की राजनीति में एक नये अध्याय की शुरूआत माना जायेगा जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की स्वतन्त्र सोच की छाप मुखर है। भाजपा ने जिस चरणबद्ध तरीके से भारतीय राजनीति को पूर्ण रुपेण अपनी विचारधारा में ढाला है, वर्तमान मन्त्रिमंडल उसी का प्रतीक कहा जायेगा। भारत की आजादी के बाद 1951 में जन्मी जनसंघ (भाजपा) की यह अभी तक की सबसे बड़ी ऐसी विजय है जिसका स्वातंत्रता पूर्व भारत की विरासत से कोई विशेष लेना-देना नहीं है। अतः राजनैतिक स्तर पर इसे ‘नये भारत’ की संरचनात्मक पुनर्रचना के तौर पर भी देखा जा सकता है। 
यह पुनर्रचना नये राजनैतिक विमर्श खड़े करके की गई है जिनमें स्वतन्त्रता युद्ध के दौरान चर्चित विसंगतियां केन्द्र में रही हैं। अतः ‘नये भारत’ की मोदी सरकार पर 21वीं सदी में निर्मित युवा भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी भी पूर्णतः उसके ही द्वारा रखे गये विमर्श के दायरे में होगी। जाहिर है यह विमर्श नई आकांक्षों को जन्म देने वाला होगा जिनकी आपूर्ति भी पार्टी को अपनी नीतियों के द्वारा ही करनी होगी। अतः गृह मन्त्रालय का प्रभार पार्टी के अध्यक्ष श्री अमित शाह को दिया जाना सबसे बड़ी घटना है क्योंकि भाजपा देश के आन्तरिक मोर्चे को लेकर ही लगातार अपनी लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ाती रही है। 
1951 में अपने जन्म से लेकर आज तक इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य पखर राष्ट्रवाद की उस धारा के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है जिसमें भारतीयता के मूल अंश की व्याख्या सांस्कृतिक परिवेश के तारों से बन्धी रही है और इसका सिरा धार्मिक मान्यताओं से जाकर जुड़ता रहा है परन्तु समय और काल की नजाकत के अनुसार भाजपा इसमें लगातार परिमार्जन करते हुए इस प्रकार चली है कि वह राजनीति के उदार और कट्टरपंथी तत्वों के बीच अपना अलग रास्ता बना सके। 
यह बेवजह नहीं था कि भाजपा में ‘मोदी युग’ शुरू होने से पहले लम्बे अर्से तक स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जैसे उदार चेहरे को ही आगे रखकर अपनी राष्ट्रवादी राजनीति को धार दी और उसे उदारपंथी कहे जाने वाले दलों से लेकर कट्टरपंथी ताकतों के बीच मध्यमार्गी स्थिति बख्शी। हालांकि 80 के दशक के बाद  से शुरू हुई राजनीति में भाजपा का विस्तार करने की जिम्मेदारी श्री लालकृष्ण अडवानी पर ही रही। श्री अडवानी ने भारत की स्वाभाविक रूप से राज करने वाली पार्टी ‘कांग्रेस’ का रुतबा ही बदल डाला, मगर श्रेय श्री वाजपेयी को ही दिया गया। जबकि कर्नाटक जैसे दक्षिण भारतीय राज्य में भाजपा का धमाकेदार प्रवेश उत्तर भारत में श्री अडवानी को ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ की उपाधि मिलने के बाद ही हुआ परन्तु 2012 के आते-आते परिस्थितियां पूरी तरह भाजपा के कब्जे में आ चुकी थीं जिसमें सबसे बड़ा योगदान केन्द्र में तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस नीत सरकार का ही था। 
अतः यह समय भाजपा की पखर विचारधारा के प्रकट होने का था और पार्टी के रणनीतिकारों ने इसके लिए श्री नरेन्द्र मोदी से बेहतर किसी अन्य को नहीं पाया क्योंकि गुजरात के मुख्यमन्त्री के रूप में उन्होंने शासन का वह नमूना पेश कर दिया था जिसमें राष्ट्रवाद के साये में आर्थिक मोर्चे पर सफलता प्राप्त की जा सकती थी। इसे ‘गुजरात माडल’ का नाम दिया गया और पूरी भाजपा ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में एड़ी-चोटी का जोर लगा डाला। यह राष्ट्रवादी विकास माडल 2014 में मतदाताओं को पसन्द आया और उन्होंने भाजपा को पूर्ण बहुमत दे डाला।
इस रणनीति को तैयार करने में श्री अमित शाह की भूमिका केन्द्र  में रही जिसकी वजह से श्री नरेन्द्र मोदी स्वतन्त्र भारत में एक नये नायक के रूप में उभरे और इसी वर्ष श्री शाह भाजपा के अध्यक्ष बन गये परन्तु 2019 के आते-आते श्री मोदी पर ही यह जिम्मेदारी थी कि वह अपने इस रुतबे की रक्षा प्रधानमन्त्री रहते हुए किस प्रकार करते जबकि उनके विरुद्ध देशभर की ताकतवर विरोधी पार्टियां भारत के हर राज्य में गंभीर चुनौती पेश कर रही थीं और पांच वर्ष के शासन के दौरान विभिन्न मोर्चों पर उपजे रोष को भुनाना चाहती थीं। यह भाजपा के लिए नहीं बल्कि श्री मोदी के लिए अग्निपरीक्षा का समय था। उनके समक्ष विकल्प अधिक नहीं थे। 
भाजपा एक राजनैतिक दल के रूप में रक्षात्मक हो रही थी। बेशक सत्ता के सभी प्रतिष्ठानों पर भाजपा का नियन्त्रण था परन्तु जन अवधारणा तय करने  में इनकी भूमिका हा​ि​शये पर ही थी। चुनावों के सिर पर आते-आते विकट परिस्थिति थी। बिखरा हुआ विपक्ष भी विभिन्न राज्यों से कूच करते हुए दिल्ली आता हुआ दिखाई पड़ रहा था। इन विकट परिस्थितियों में श्री मोदी ने वह ‘ब्रह्मास्त्र’ चला जिसके वार से विपक्ष की युद्ध क्षमता अपने-अपने स्थान पर ही खत्म होती चली गई, यह नायकत्व बरकरार रखने का वह जोखिम था जिसमें भारत के मतदाताओं की ‘सहनशक्ति’ को ललकारा गया था। श्री मोदी की यह ललकार राष्ट्रवाद की वही धारा थी जिस पर भाजपा का पूरा अस्तित्व टिका हुआ है। यह अपमान का करारा जवाब देने का नीति सूत्र है। 
अतः श्री मोदी द्वारा दिया गया यह सूत्र की ‘दुश्मन को घर में घुस कर मारेंगे’ प्रत्येक भारतीय की भुजाओं को फड़का गया। समस्त भारत (केवल तमिलनाडु, केरल, आन्ध्रपदेश व पंजाब को छोड़कर) में श्री मोदी का स्वरूप वह विराटता पा गया जिसे लोकतन्त्र में गण नायक कहा जाता है। अतः मतदाता किसी पार्टी को नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी को वोट दे रहे थे। बिना शक उनके विरुद्ध विपक्ष का कोई सशक्त सर्वसम्मत प्रत्याशी नहीं था। मगर होता तो भी क्या वह उस विमर्श के सामने ठहर सकता था जो श्री मोदी ने अपने बूते पर ही पैदा किया था? अतः उनके नये मन्त्रिमंडल में हम जो गुणात्मक परिवर्तन देख रहे हैं वह राष्ट्रवाद के नये स्वरूप को ही परिलक्षित करता है।
जिसमें श्री राजनाथ सिंह को रक्षा मन्त्रालय का प्रभार देकर कहा गया है कि सीमाओं की सुरक्षा से वह देश को निश्चिन्त करें मगर श्री सिंह ‘राष्ट्रीय केबिनेट रक्षा समिति’ के अंग रहेंगे जिससे उनके अनुभव का लाभ देश को हर मोर्चे पर मिलता रहेगा। इसी प्रकार विदेश मन्त्रालय का प्रभार पूर्व विदेश सचिव श्री एस. जयशंकर को देकर सन्देश दिया गया है कि भारत, रूस व चीन त्रिकोणात्मक चक्र के साथ ही ‘ब्रिक्स’ देशों के साथ आर्थिक सन्तुलन में भारत की क्षमताओं के अनुरूप व्यूह रचना की जाये। वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन के सामने गंभीर आर्थिक चुनौतियां हैं।

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