जवाहरलाल नेहरू के बाद नरेन्द्र मोदी? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

जवाहरलाल नेहरू के बाद नरेन्द्र मोदी?

हमारे अद्भुत चुनाव शुरू हो रहे हैं। 96 करोड़ लोग मतदान करेंगे जो अपने 543 प्रतिनिधि चुनेंगे। 10.5 लाख मतदान केन्द्र होंगे, 1.5 करोड़ मतदान स्टाफ़ होगा। 55 लाख ईवीएम होंगी। 7 चरण में उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में हिन्द महासागर, पश्चिम के रेगिस्तान से लेकर पूर्व के जंगलों तक हमारे लोग जोश से मतदान करेंगे, और दुनिया आश्चर्य से देखेगी कि किस तरह से सब कुछ सही हो गया। पांच में से एक वोटर 30 वर्ष की आयु से कम है। 12 प्रदेशों में महिला वोटर पुरुषों से अधिक हैं। युवा और महिला वोटर परिवर्तन के इंजन बनेंगे। महिलाओं के लिए हर दल योजनाओं की घोषणा कर रहे है। युवा नौकरी और मौके की मांग कर रहे है। इन्हें अधिक देर इधर-उधर की बातों में और उलझाया नहीं जा सकता। पर चुनाव लम्बा बहुत है। 81 दिन के लिए आचार संहिता लगेगी जिस दौरान सारा सरकारी कामकाज ठप्प हो जाएगा। ईवीएम और डिजिटल इकॉनिमी के दिनों में इतना लम्बा चुनाव नहीं चलना चाहिए पर यह संतोष की बात है कि मामूली गड़बड़ को छोड़ कर हमारे चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होते हैं। जो जनता चाहती है वहीं परिणाम ईवीएम से निकलता है।
नरेन्द्र मोदी हैट्रिक लगाना चाहते हैं जो सौभाग्य उनसे पहले केवल जवाहरलाल नेहरू को ही मिला था। मोदी दावा कर रहे हैं कि भाजपा 370 पार और एनडीए 400 पार करने में सफल हो जाएंगे। वह ‘मोदी की गारंटी’ की बात कर रहे हैं। अपने तीसरे काल में भारत को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की बात कर रहे हैं और गारंटी दे रहे हैं कि 2047 तक भारत विकसित देश होगा। यह उल्लेखनीय है कि यह नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत गारंटी है, भाजपा की नहीं। भाजपा का सारा दारोमदार नरेन्द्र मोदी पर टिका हुआ है। कांग्रेस युवाओं को सरकारी नौकरी, महिलाओं को भत्ता और कई प्रकार की ‘न्याय गारंटी’ दे रही है। राहुल गांधी जाति जनगणना का मुद्दा देश भर में उठा रहे हैं जबकि इस गठबंधन के लिए बेहतर होगा कि वह महंगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहे। अपनी पहली यात्रा में वह देश जोड़ने की बात कर चुके हैं, जातिजनगणना तो लोगों को और बांट देगी। चुनाव की घोषणा से पहले जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जगह-जगह जा कर नए इंफ्रास्ट्रक्चर का उद्घाटन करते रहे, राहुल गांधी जातिजनगणना का जुमला लिए फिरते रहे।
इन दो बड़े गठबंधनों के अलावा टीएमसी, बीजेडी, जैसी पार्टियां हैं जो अपना-अलग अस्तित्व बनाए हुए हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी जो चुनाव से पहले फिर ‘घायल’ हो गईं हैं, अपना क़िला बचाने के लिए उग्रतापूर्वक लड़ाई लड़ेंगी। पिछले चुनाव में उनकी पार्टी को 22 सीटें मिली थी जबकि ज़बरदस्त मुक़ाबला करते हुए भाजपा 18 सीटें ले गई पर विधानसभा के चुनाव में उन्होंने बढ़िया जीत हासिल की थी। यह दिलचस्प है कि भाजपा के बाद उनकी प्रादेशिक पार्टी तृणमूल कांग्रेस को सबसे अधिक इलेक्टोरल बॉड मिले हैं। जहां तक महाराष्ट्र का सवाल है उसकी 48 सीटों के लिए छह पार्टियां मैदान में हंै। भाजपा और कांग्रेस के अतिरिक्त दो शिव सेना और दो एनसीपी हंै। राहुल गांधी की न्याय यात्रा के अंत में मुम्बई के शिवाजी पार्क में ‘इंडिया’ की जो विशाल रैली हुई है वह भाजपा के नेतृत्व के लिए चिन्ता की बात होनी चाहिए। जो दल बदल करते हैं या प्रलोभन के लिए पार्टी तोड़ते हैं उन्हें चुनावों में सजा मिलनी ही चाहिए। बिहार जहां एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीती थीं, नीतीश कुमार की कलाबाज़ी ने अनिश्चितता पैदा कर दी है। यहां भाजपा नरेन्द्र मोदी के सहारे है क्योंकि नीतीश कुमार की विश्वसनीयता ज़मीन तक गिर चुकी है।
कांग्रेस कोशिश तो बहुत कर रही है पर पिछले चुनाव में वह जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश जैसे बड़े प्रदेशों में शून्य भी नहीं तोड़ सकी थी। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, मध्यप्रदेश, उड़ीशा, झारखंड और कर्नाटक में केवल एक-एक सीट ही मिली थी। बेहतरी कहां से और कैसे होगी? कर्नाटक में अवश्य अपनी सरकार है सो प्रदर्शन बेहतर रह सकता है, पर बाक़ी जगह? विशेष तौर पर हिन्दी भाषी क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किए बिना उद्धार कैसे होगा? न ही कांग्रेस का सीट-शेयरिंग प्रयास ही पूरा सफल हुआ है। ममता बनर्जी ने तो सम्बंध विच्छेद की घोषणा कर ही दी और पंजाब में कांग्रेस और आप के नेता एक दूसरे को गालियां निकाल रहे हैं। देश भर में भाजपा के विरुद्ध विपक्ष का एक उम्मीदवार खड़ा करने का प्रयास आंशिक तौर पर ही सफल रहा है। पर दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में गठबंधन की सफलता से कुछ फ़ायदा होगा। राहुल गांधी की छवि बेहतर हुई है पर अभी लोकप्रियता में वह नरेन्द्र मोदी से कोसों दूर हैं। अगर गांधी परिवार अमेठी और राय बरेली से चुनाव लड़ने से हट जाता है तो बहुत ग़लत प्रभाव जाएगा।
बड़ी समस्या है कि मुक़ाबला ब्रैंड नरेन्द्र मोदी से है। एक तरफ़ बिखरा विपक्ष है जो अपना घर सही नहीं कर सका तो दूसरी तरफ़ ‘विकसित भारत’ की बात कर रहे नरेन्द्र मोदी हैं जिनके पीछे उनकी पार्टी एकजुट खड़ी है। भाजपा अपना नवीनीकरण भी करती जा रही है। प्रज्ञा ठाकुर और दूसरे नेता जो नफ़रत फैलाते हैं के नामों पर कैंची चल चुकी है। चुनाव से पहले हरियाणा में मुख्यमंत्री बदल कर भी पार्टी ने दिखा दिया कि उसमें दिशा सही करने की क्षमता है जो किसी भी और पार्टी में नहीं है। कांग्रेस तो मुश्किल से अपनी हिमाचल प्रदेश की सरकार बचा सकी है। जवाहरलाल नेहरू के समय के बाद भाजपा पहली पार्टी है जो इस तरह विश्वस्त है और दोबारा सत्ता में आने के लिए तैयार है। चर्चा इस बात पर नहीं है कि कौन जीतेगा, चर्चा इस बात पर है कि कितने से जीतेंगे लेकिन इसके बावजूद 370/400 सीटों का भाजपा का लक्ष्य ज़रूरत से अधिक आशावान है।
2014 में भाजपा को 31 प्रतिशत वोट मिले थे और 282 सीटें मिली थीं। 2019 में 6 प्रतिशत वोट बढ़ गया और 303 सीटें मिली थीं। अगर पार्टी ने 370 सीटें जीतनी हैं तो 8-10 प्रतिशत वोट बढ़ना चाहिए। यह कहां से होगा? 2014 के चुनाव में यूपीए के घपलों का मुद्दा था, 2019 के चुनाव में पुलवामा आतंकी हमला और बालाकोट पर कार्रवाई हावी रहे। इस बार ऐसा कुछ नहीं है इसलिए ‘विकसित भारत’ की बात की जा रही है। अगर वर्तमान संख्या बरकरार रखनी है तो कर्नाटक, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में पिछले जैसा प्रदर्शन दोहराना होगा। यह मुश्किल लग रहा है। कर्नाटक में वरिष्ठ नेता येदियुरप्पा पर बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ पोक्सो कानून के अंतर्गत जो केस दर्ज हुआ है उससे मुश्किलें बढ़ीं है। 150 सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा कभी विजयी नहीं हुई। देश में भाजपा के प्रभुत्व के बावजूद आज भी कन्याकुमारी से कोलकाता बिना किसी भाजपा शासित प्रदेश से गुज़रे पहुँचा जा सकता है। उड़ीसा का बीजू जनता दल अवश्य समर्थन देगा पर उससे भाजपा की अपनी सीटें नही बढ़ेंगी। असली चुनौती दक्षिण भारत की 130 सीटों पर है जहां आक्रामक हिन्दुत्व नहीं चलता। पिछली बार इनमें से 29 भाजपा ने जीती थीं, जिनमें से 25 कर्नाटक से थीं। इस बार ऐसी सफलता मिलने की सम्भावना नहीं है क्योंकि वहां कांग्रेस की मज़बूत सरकार है।
तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और केरल की भाषा, राजनीतिक विचारधारा और मान्यताऐं अलग हैं। लोग भाजपा को उत्तर भारत की पार्टी समझते हैं। नरेन्द्र मोदी वहां मेहनत बहुत कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी और पवन कल्याण की पार्टी से गठबंधन किया गया है। वह तमिलनाडु पर भी बहुत ज़ोर लगा रहे हैं पर स्थानीय नेतृत्व का अभाव परेशान कर रहा है जबकि प्रादेशिक पार्टियों के पास अपना अच्छा नेतृत्व है जो ज़मीन से जुड़ा है। 2014 और 2019 के बीच भाजपा का दक्षिण में वोट शेयर5.5 प्रतिशत से 3.60 प्रतिशत गिरा है। देश में केवल एक बार 400 का आंकड़ा पार हुआ है, जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। वहाँ तक पहुँचने के लिए दक्षिण भारत को ‘स्वीप’ करना ज़रूरी है। इसके बिना भी बहुमत आजाएगा पर अगर उन्होंने कांग्रेस को और कमजोर करना है और अपनी संख्या बढ़ानी है तो दक्षिण में बेहतर प्रदर्शन करना होगा।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉड की योजना को रद्द कर इस लोकतंत्र की बहुत सेवा की है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूंड़ को इसके लिए याद रखा जाएगा। इससे भाजपा की चमक भी कम हुई है। जिस तरह तथ्य बताने से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया आनाकानी करता रहा है उससे यह प्रभाव मिलता है कि कुछ छिपाने की कोशिश हो रही है। चुनावी फ़ंडिंग बहुत जटिल समस्या हैकोई भी सही तरीक़ा नहीं। पहले बैग और थैलों में ब्लैक लिया जाता था। इससे छुटकारा पाने के लिए चुनावी बॉन्ड जारी किए गएलेकिन बड़ी गलती यह की गई कि योजना अपारदर्शी रखी गई। जनता जो देश की मालिक है से छिपाया गया कि किसने किसे चुनावी बॉन्ड दिए हैं और बदले में क्या मिला? अमित शाह का कहना है कि स्कीम में सुधार होना चाहिए था, इसे रद्द नहीं करना चाहिए था पर सवाल तो उठता है कि पिछले पांच वर्ष में सुधार क्यों नहीं किया गया? अगर यह स्कीम पारदर्शी होती तो विवाद ही न होता। अब आरोप है कि संदिग्ध लोगों या कम्पनियोंसे बॉन्ड लिए गए जिसके बाद उन पर मेहरबानी की गई। सबसे अधिक चंदा एक गेमिंग कम्पनी ने दिया। यह भी आरोप लग रहे हैं कि कई कम्पनियों और लोगों ने छापों के बाद या छापों से बचने के लिए चंदा दिया। अभी और रहस्योद्घाटन होने हैं। अगर हमारे लोकतंत्र ने मज़बूत होना है तो सब कुछ पारदर्शी होना चाहिए पर अब आशंका है कि कहीं हम वापिस कैश से भरे बैग और हवाला के रास्ते पैसे के युग में वापिस न लौट आऐं।

– चंद्रमोहन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 − two =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।