यह सच है कि एनआरसी अर्थात देश में नागरिकता को लेकर एक पहचान तो होनी ही चाहिए। देश के हर नागरिक को वोट डालने का अधिकार उसका संविधान उसे देता है। किस पार्टी को उसने वोट देना है यह उसका विवेक है लेकिन हमारे देश के लोकतंत्र के बारे में दुनिया क्या सोचती है हम इस बहस में पड़ने की बजाय सीधे इस प्वाइंट पर आ जाते हैं कि आखिरकार नागरिक कानून 1955 के मुताबिक कौन-कौन लोग भारतीय नागरिक कहला सकते हैं। एनआरसी अर्थात नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन का शोर सबसे पहले असम को लेकर मचा।
जब यह बवाल उठ खड़ा हुआ कि देश में बहुसंख्यक लोग पिछड़ रहे है और अवैध घुसपैठियों की बढ़ती आबादी की वजह से हिंदू लोग सीमित हो गए हैं। राजनीतिक दृष्टिकोण से समीकरण इस कदर बदल गए कि कई क्षेत्रों में मुस्लिम अर्थात अवैध घुसपैठिये निर्णायक बन गए यानि उनकी आबादी कुल आबादी का 30 और 40 प्रतिशत तक बन गया। सरकार ने एनआरसी लागू कर दिया। जो कल तक असम में था उसे लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने दूर की सोचते हुए पूरे देश में एनआरसी लाने का ऐलान कर दिया।
जिसे दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हमारी कैबिनेट ने मंजूर करते हुए यहां तक चुनौती दे डाली कि बहुत जल्द इसे संसद में भी पारित करा लिया जायेगा। नई व्यवस्था के मुताबिक पड़ोसी राज्यों से शरण के लिए हमारे यहां आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख और पारसी तथा ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता मिल जायेगी और इस कड़ी में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया। हम इसका स्वागत करते हैं। दुर्भाग्य से कई संगठनों ने इस मामले पर सरकार का विरोध भी शुरू कर दिया है। लोकतंत्र में विरोध होना चाहिए लेकिन विरोध केवल विरोध के कारण नहीं होना चाहिए।
पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, आंध्र प्रदेश को लेकर भी हालात विचित्र हैं क्योंकि वहां कई लाख रोहिंग्या मुसलमानों के आ बसने की बातें कही गई हैं। खबरें तो यहां तक हैं कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लाखों से ज्यादा लोगों ने अपनी नई पहचान बना ली है और कहीं ना कहीं वे लोकतंत्र में वोट का हिस्सा हैं। अब जब राजनीतिक पार्टियां या नेता चाहे वह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हो या सीपीआईएम के नेता सीताराम येचुरी हो एनआरसी को लेकर विरोध भी हो रहा है। हमारा मानना यह है कि अगर देश में जम्मू-कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देकर 370 के तहत ढेरों सुविधाएं उन्हें बाकी देशवासियों का हक काटकर दी जा रही थी और हमारे गृहमंत्री अमित शाह इसे कश्मीर में खत्म कर सकते हैं तो फिर ये चंद घुसपैठिये क्या चीज हैं।
हमारा मानना है कि देश में जो विदेशी मूल के लोग अगर 1955 के एनआरसी कानून के तहत आते हैं और तब से यहीं रह रहे हैं तथा वे मुस्लिम नहीं हैं तो उन्हें नागरिकता देने में कोई बुराई नहीं है। भारत की मिट्टी पर रहते हैं। रोटी-पानी सब यहीं का खाते हैं यदि ये लोग भारत माता की जय नहीं बोलेंगे तो इसका विरोध होगा। हिंदुस्तान में रहना है तो भारत माता की जय बोलनी ही होगी। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हिन्दू, सिख, मुस्लमान, ईसाई जो भी नागरिक किसी भी जाति का हो वह भारतीय पहले है। भारत पहले है मजहब और जात-पात बाद में। इस संदेश को अमित शाह जी ने पूरे देश को बड़े अच्छे से दिया है और हम इसका स्वागत करते हैं।
अपनी जात-पात और मजहब को लेकर हमें बंटना नहीं है बल्कि भारत और भारतीयता को मजबूत बनाना है। एनआरसी के इस तथ्य को समझना होगा कि हम सब एक हैं। एनआरसी का लागू होना जरूरी है। एक देश, एक कानून सबके लिए लागू होना चाहिए इसी का नाम भारतीयता है और हमें इस पर नाज है।