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निजी डेटा संरक्षण ​विधेयक

एक ओर समाज में जीवन एवं समानता के मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है, वहीं दूसरी तरफ लोगों में निजता यानि प्राइवेसी के अधिकार की अहमियत को भी पहचाना जाने लगा है।

एक ओर समाज में जीवन एवं समानता के मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है, वहीं दूसरी तरफ लोगों में निजता यानि प्राइवेसी के अधिकार की अहमियत को भी पहचाना जाने लगा है। निजता न सिर्फ एक सार्थक और सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जरूरी है बल्कि इसके बिना कई अन्य अधिकार भी प्रभावित होते हैं। आज के इलैक्ट्रॉनिक युग में जैसे-जैसे डाटा और टैक्नोलॉजी का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ रहा है उसके साथ ही हमारी व्यक्तिगत जिन्दगी का दायरा भी सीमित होता जा रहा है। टैक्नोलॉजी जीवन यापन का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुकी है लेकिन इसके इस्तेमाल से हमारे निजी जीवन की जानकारियां भी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चिंता का विषय है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के साथ-साथ साइबर अपराधियों की बढ़ती लूट खसूट और आए दिन डाटा चोरी की खबरों ने हमारी मुश्किलें कई गुणा बढ़ा दी हैं। इस समस्या के निवारण के लिए एक सशक्त कानूनी व्यवस्था जो सरकार को एक मजबूत ढांचा प्रदान कर सकें बहुत जरूरी है। इस कानून के तहत हमारे पर्सनल डाटा की सुरक्षा की जा सके। निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पुट्टास्वामी केस में सरकार को देश में डाटा संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए एक कानून बनाने का भी निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत के निर्देश के बाद सरकार ने डाटा संरक्षण कानून बनाने की ​दिशा में काम करना शुरू किया। सोशल मीडिया प्लेटफार्म गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप अन्य कम्पनियों द्वारा निजी डाटा की चोरी के कई स्कैंडल सामने आने के बाद डाटा संरक्षण की मांग जोर पकड़ती जा रही थी। सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने अपने फायदे के लिए लोगों की विचारधारा को प्रभावित करने का काम शुरू कर दिया था। जहां तक कि कई देशों में सत्ता के खिलाफ भी जनमत को प्रभावित करने का काम किया। टैक्नोलॉजी कम्पनियां उपभोक्ता डाटा को धड़ले से बिना इजाजत इस्तेमाल करती आ रही हैं लेकिन अब केन्द्र सरकार उपभोक्ता डाटा को लेकर सतर्क हो गई है। अमेरिका में जांच के दौरान गूगल ने स्वीकार किया था कि वो उपभोक्ता को गुमराह करके इनको ट्रैक करती थी। इसकी वजह से अमेरिका ने गूगल पर लगभग 392 अमेरिकी मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया था। अमेरिका में अटार्नी जनरल ने पाया कि गूगल ने कम से कम 2014 से अपनी ट्रैकिंग प्रथाओं के बारे में उपभोक्ताओं को गुमराह किया और सरकार के उपभोक्ता संरक्षण कानूनों का उल्लंघन किया। केन्द्र सरकार अब एक नया संरक्षण विधेयक लेकर आ रही है। सरकार नए डेटा सुरक्षा बिल को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश करेगी। सरकार का दावा है कि नया बिल डेटा के दुरुपयोग को रोकने में कारगर साबित होगा। बता दें कि इलेक्ट्राॅनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बताया कि डेटा सुरक्षा बिल ग्राहक डेटा के दुरुपयोग को खत्म कर देगा। क्योंकि नए नियम में डेटा के दुरुपयोग पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी, जो कि पहले के डेटा प्रोटेक्शन बिल में मौजूद नहीं था। नए बिल में डेटा चोरी आैर ऑनलाइन ट्रै​किंग की दोषी कम्पनियों पर 200 करोड़ रुपए जुर्माना और जेल की सजा का प्रावधान किया जा सकता है।
आरोप है कि गूगल टारगेटड विज्ञापन के लिए उपभोक्ता के डाटा को ट्रैक करती है। लोकेशन ट्रै​किंग डाटा सबसे संवेदनशील माना जाता है जिसके गलत इस्तेमाल की शिकायतें भी सामने आई हैं। जब सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने अपनी नीतियां भारत में लागू करना चाहीं तो उस पर काफी बवाल भी मचा था। इन कम्पनियों ने पहले अपनी सेवाएं निःशुल्क देकर अपना गुलाम बनाया, फिर अपने मुनाफे के लिए अनैतिक हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए। सोशल मीडिया प्लेटफार्म कम्पनियों ने अपनी मनमानी शुरू कर दी थी और  इन्होंने अपने दबदबे का गलत इस्तेमाल भी करना शुरू कर दिया था। गूगल के कई सारे प्राइवेट एप काम कर रहे थे जिनके जरिए विज्ञापन और मार्किटिंग का काम किया जाता था। गूगल अपने दबदबे से बाजार में मौजूद बाकी कम्पनियों को ठहरने ही नहीं देता था। इसी कारण कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया की तरफ से गूगल पर दूसरी बार 936 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया जबकि पहली बार 1337.76 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया था। सरकार ने निजी डाटा संरक्षण विधेयक को लोकसभा में 2019 में पेश किया था लेकिन इसे अगस्त माह में वापिस ले लिया था। सरकार की तरफ से यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि एक तो विपक्ष ने इस पर जोरदार सवाल उठाए थे, वहीं इस विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति ने विस्तार से विचार-विमर्श करके डिजिटल ईको सिस्टम पर बड़े कानूनी ढांचे की दिशा में 81 संशोधन प्रस्तावित किए थे और 12 सिफारिशें प्रस्तुत की थीं। विपक्ष ने इस विधेयक में कुछ बिंदुओं पर असहमति जताई थी। संसदीय समिति ने विधेयक में पाया था कि इसमें सरकार की असीमित शक्तियां हो गई थी कि सरकार लोगों के पर्सनल आंकड़ों को किस तरह इस्तेमाल कर सकती है। संसदीय समिति ने इस बात पर आपत्ति जताई कि इससे किसी भी व्यक्ति के आंकड़ों का दुरुपयोग हो सकता है। तब सरकार ने नए डाटा संरक्षण विधेयक पर दुबारा से काम करना शुरू किया। नया विधेयक आने के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि विधेयक में कौन-कौन से सुझाव ​शामिल ​किए गए हैं और इससे किस प्रकार डाटा चोरी पर रोक लगेगी। डाटा संरक्षण कानून एक मंजिल नहीं है, एक सफर है। उम्मीद की जाती है कि इस रास्ते में निजी डाटा संरक्षण के लिए विधेयक का उचित इस्तेमाल किया जाएगा। भारत में काम करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर लगाम लगेगी और राष्ट्रीय हित सुरक्षित होंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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