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क्रिकेट में नस्लवाद!

क्रिकेट को जेंटलमैन खेल माना जाता है लेकिन कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जो इसे शर्मसार कर देती है। वैसे तो मैच फिक्सिंग, स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के चलते क्रिकेट पहले से ही बदनामी ओढ़ चुका है।

क्रिकेट को जेंटलमैन खेल माना जाता है लेकिन कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जो इसे शर्मसार कर देती है। वैसे तो मैच फिक्सिंग, स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के चलते क्रिकेट पहले से ही बदनामी ओढ़ चुका है। क्रिकेट में रंगभेद या नस्लवाद की घटना एक बार फिर आस्ट्रेलिया के सिडनी में देखने को मिली है।
इससे पता चलता है कि नस्ल, धर्म और रंग के नाम पर भेदभाव की अवधारणा अभी लोगों के दिमाग में मौजूद है। सिडनी टेस्ट में दूसरे और तीसरे दिन के खेल के दौरान नशे में धुत्त दर्शकों के ​एक समूह ने जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज पर फील्डिंग के दौरान नस्ली टिप्पणियां करने के साथ-साथ अपशब्द भी कहे।
यद्यपि भारतीय क्रिकेट बोर्ड द्वारा शिकायत करने के बाद 6 दर्शकों को न्यू साउथ वेल्स पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया लेकिन रविवार को फिर आस्ट्रेलियाई दर्शकों के एक समूह ने भारतीय गेंदबाज सिराज को ब्राउन डॉग, बिग मंकी आदि कहा। भारतीय खिलाडि़यों ने इसके खिलाफ कड़ा रुख अपनाया और दस मिनट तक खेल रुका रहा।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मेजबान होने के नाते आस्ट्रेलिया ने भारतीय क्रिकेट टीम से माफी मांगी है और दोहराया है कि हर तरह के भेदभाव को लेकर हमारी नीति स्पष्ट है और हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। दोषियों की पहचान होती है तो क्रिकेट आस्ट्रेलिया उत्पीड़न विरोधी कोड के तहत बड़ा कदम उठाएगा। इसमें लम्बा प्रतिबंध और एनएसडब्ल्यू पुलिस को रैफर करना शामिल है।
इस घटना ने 13 वर्ष पहले इसी मैदान पर हुई नस्ली टिप्पणी की एक घटना की यादों को तरोंताजा कर दिया है। उस दौरान एंड्रयू सायमंड्स ने टेस्ट के दौरान आरोप-लगाया था कि भारतीय खिलाड़ी हरभजन सिंह ने उन्हें मंकी कहकर नस्ली टिप्पणी की है। इसके बाद मैच के रेफरी माइक प्रोक्टर ने हरभजन सिंह पर तीन मैच का बैन लगा दिया था। यहां तक कि भारत का दौरा रद्द तक करने के हालात बन गए थे लेकिन बीसीसीआई ने इस फैसले के खिलाफ अपील की जिस पर आईसीसी अपील कमिश्नर ने फैसला पलट दिया था। नस्ली टिप्पणियां कोई नई बात नहीं हैं।
क्रिकेट एक माइंड गेम है। हर देशवासी अपने देश से जीत की उम्मीद लगाए रहते हैं। ऐसी टिप्पणियां दूसरे देश के खिलाड़ियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए किया जाता है। इसी क्रम में की गई टिप्पणियां नस्ली रूप ले लेती हैं। आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी डेरेन लीमेन ने 2002-03 में श्रीलंका के साथ वन-डे सीरीज के दौरान नस्ली टिप्पणी कर दी थी। इस पर श्रीलंका टीम की शिकायत पर उन पर पांच मैचों का प्रतिबंध लगा दिया गया था।
पाकिस्तान कप्तान सरफराज ने एक दलित अफ्रीकी क्रिकेटर पर अपनी भाषा में रंगभेदी टिप्पणी की थी। उतनी बात स्टंप माइक में कैद हो गई ​थी। इस पर मैच रेफरी ने उनके ऊपर चार मैच की पाबंदी लगा दी थी। ऐसी टिप्पणियां भारत में भी होती रही हैं। 1980 के मास्को ओलिंपिक में आखरी हाकी स्वर्ण पदक दिलाने वाले कप्तान वासुदेवन भास्करन को भी अपने ही देश के दर्शक चिल्लाते थे कि ‘कालिया पास दे’ खेल ही क्यों पूर्वोत्तर राज्य के लोगों को चिंकी या मोमो कहा जाता है। फिल्म ​अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी भी सिडनी से मेलबर्न जाते वक्त चेक इन काउंटर पर रंगभेद का शिकार हुईं। कई अन्य फिल्मी सितारे भी विदेशाें में ऐसा व्यवहार होने की शिकायत करते रहे हैं।
दरअसल आस्ट्रेलिया अनेक देशों से आकर बसे हुए लोगों का देश है। आस्ट्रेलिया के प्रथम निवासी थे एबोरीजनन और टोरेस स्ट्रेंट आपलैडर्स, जो यहां अनुमानतः 40 हजार वर्ष पहले आकर बस गए थे। आस्ट्रेलिया में पहले यूरोपियन यहां आए तब से अब तक 50 देशों से भी अधिक देशों के लोग यहां बस चुके हैं। यहां की संस्कृति बहुसांस्कृतिक है। अनेक समुदाय के लोगों के आ जाने से जीवनशैली में विविधता है।
हर देश का खाना उपलब्ध है। सरकारी प्राथमिक पाठशालाओं में ईसाई, हिंदू धर्म और इस्लाम की कलाओं की सुविधा है। अब तो इफ्तार और दीवाली की दावतें संसद भवन में होने लगी हैं। हर व्यक्ति को अपना त्याैहार मनाने की अनुमति है। यहां विभेदीकरण को लेकर सख्त नियम बने हुए हैं। फिर भी नस्लभेद से जुड़ी घटनाएं देखने को मिल जाती हैं। पिछले दिनों अमेरिका में अश्वेत जार्ज फलायड की पुलिस के हाथों हत्या के बाद दुनियाभर में नस्ली हिंसा के खिलाफ माहौल बना था। दुनियाभर में लोगों की कमजोरियों को निशाना बनाना आम बात है।
इस तरह की नस्लीय घटनाओं को समाज को शिक्षित करके ही रोका जा सकता है। इसके पीछे कभी-कभी घृणा की भावना काम करती है तो कभी त्वरित जोश। सिडनी की घटना से आहत पूर्व क्रिकेट कप्तान सचिन तेंदुलकर ने ट्वीट किया है “खेल हमें जोड़ता है, तोड़ता नहीं है। क्रिकेट कभी भेदभाव नहीं करता, बल्ला और गेंद उसे थामने वाले व्यक्ति की प्रतिभा को जानता है। उनके नस्ल, रंग, धर्म या राष्ट्रीयता को नहीं, जो लोग इसे नहीं समझते उनका इस खेल के मैदान में कोई स्थान नहीं।”

-आदित्य नारायण चोपड़ा

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