रूस-यूक्रेन युद्ध अब ऐसे मोड़ पर पहुंचता दिखाई दे रहा है जिसमें कूटनीतिक वार्ताओं के द्वार अवरुद्ध लग रहे हैं। परन्तु भारत की यह स्थापित नीति इसकी आजादी के समय से ही रही है कि हर संघर्ष का समाधान वार्तालाप से ही हो सकता है। देश के वर्तमान रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह वर्तमान राजनीतिक पटल के ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिनका नजरिया घरेलू राजनीति से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति तक में सामंजस्य व समन्वय केन्द्रित माना जाता है। अतः यह स्वाभाविक है कि जब रूस के रक्षामन्त्री श्री सर्गेई शोइगू ने उनसे यूक्रेन की बढ़ती आक्रामकता के बारे में बातचीत की तो उन्होंने शोइगू को बातचीत के द्वारा समस्या का हल ढूंढ़ने का सुझाव दिया। श्री शोइगू ने यूक्रेन द्वारा रूस के खिलाफ ‘डर्टी बम’ प्रयोग किए जाने की आशंकाओं के बारे में विचार-विमर्श किया। इससे यह स्पष्ट होना चाहिए कि रूस की नजर में भारत की क्या हैसियत है? श्री शोइगू ने इस सन्दर्भ में चीन, फ्रांस, ब्रिटेन ,तुर्की व अमेरिका के रक्षामन्त्रियों से भी टेलीफोन पर बातचीत की। इसी से स्पष्ट हो जाता है कि रूस भारत को विश्व के अन्य प्रमुख देशों के समकक्ष रख कर ही देखता है। अब यह पूरी दुनिया के सामने प्रकट हो चुका है कि यदि यूक्रेन नाटो या अन्य पश्चिमी देशों के चढ़ावे में आकर रूस के खिलाफ रासायनिक या जैविक बम (डर्टी बम) का उपयोग करता है तो रूसी राष्ट्रपति परमाणु हथियार उपयोग करने के विकल्प पर सोच सकते हैं। यदि एेसा हुआ तो यह पूरी दुनिया के लिए बहुत विनाशकारी होगा और हो सकता है कि दुनिया एक बार फिर से तीसरे विश्व युद्ध की तरफ चल पड़े। अतः श्री राजनाथ सिंह ने रूसी रक्षामन्त्री से स्पष्ट किया कि परमाणु युद्ध का विकल्प बहुत घातक होगा और यूक्रेन के साथ उनके संघर्ष का हल कूटनीतिक रास्तों से ही खोजा जाना चाहिए। दुनिया जानती है कि 1990 तक सोवियत संघ के विघटन से पूर्व यूक्रेन इसी संघ में शामिल था और रूस ने उस समय अपनी भौगोलिक सीमाओं का पुनर्निर्धारण करते हुए साफ कह दिया था कि नाटों को उसके यूरोपीय अंश के देशों में पैर नहीं पसारने चाहिए क्योंकि सोवियत संघ ने नाटो के विरुद्ध खड़ी की गई ‘वारसा सन्धि’ को भी भंग कर दिया है। इन क्षेत्रों के लोगों ने रूस में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की और रूस ने घोषणा कर दी कि ये चारों इलाके उसकी भौगोलिक सीमा के अंग हैं। मगर रूस के इस कदम से यूक्रेन व उसके सहयोगी अमरिका व पश्चिमी देशों ने इसे अतिक्रमण की कार्यवाही माना औऱ रूस के खिलाफ पहले से जारी आर्थिक व सैनिक प्रतिबन्ध और कड़े कर दिये। मगर रूस इन सभी प्रतिबन्धों का करारा जवाब दे रहा है और अपनी ऊर्जा क्षमता के बूते पर पश्चिमी यूरोपीय देशों को नरम बने रहने के लिए मजबूर कर रहा है इसके बावजूद ब्रिटेन व कुछ अन्य यूरोपीय देश रूस के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये जाने के पक्षधर दिखाई पड़ रहे हैं। जहां तक बॅरिटेन का सवाल है तो यह देश 19 वीं शताब्दी से ही रूस को यूरोपीय शक्तियों के लिए इस तरह खतरा मानता है कि बीसवीं सदी में भारत को आजाद करते समय इसके दो टुकड़े करने के पीछे भी रूस से द्वेष भाव ही इसके प्रमुख कारणों मंे से था। पश्चिम में पाकिस्तान का निर्माण अंग्रेजों ने इसी वजह से किया था जिससे सोवियत संघ किसी भी प्रकार से भारत के निकट न आ सके और पाकिस्तान का एक अवरोधी देश के रूप में वे इस्तेमाल कर सकें। यही वजह है कि पाकिस्तान को इसके वजूद में आने के बाद से ही पश्चिमी देशों का पूरा समर्थन मिलता रहा और भारत ने सोवियत संघ या रूस के साथ अपने प्रगाढ़ सम्बन्ध स्थापित किये। वर्तमान समय में भी रूस भारत का परखा हुआ सच्चा दोस्त है जिसने हर संकट के समय भारत का साथ पूरी ताकत के साथ दिया है। अतः बहुत साफ है कि भारत यूक्रेन व रूस के संघर्ष में भी सबसे पहले अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करेगा। श्री राजनाथ सिंह ने ब्रिटेन, फ्रांस व अमेरिका के रक्षा मन्त्रियों की तरह रूसी रक्षा मन्त्री शोइगू की इस आशंका को निर्मूल नहीं बताया है कि यूक्रेन डर्टी बम का इस्तेमाल कर सकता है बल्कि यह कहा है कि किसी भी हालत में परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं होना चाहिए और दोनों देशों के बीच बढ़ती दुश्मनी का हल बातचीत व कूटनीति के द्वारा खोजा जाना चाहिए। जाहिर है कि श्री राजनाथ सिंह ने बहुत ही शाइस्तगी के साथ यह साफ कर दिया है कि भारत को रूस की चिन्ताओं की फिक्र है मगर साथ ही वह यह भी नहीं चाहता कि द्वेष मंे कोई एेसा रास्ता अपनाया जाए जो समूची मानवता के लिए ही खतरनाक हो।