राजनाथ सिंह का ‘शीतल पेयजल’ - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

राजनाथ सिंह का ‘शीतल पेयजल’

गृहमन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने आज संसद के उच्च सदन राज्यसभा में असम नागरिक रजिस्टर के बारे में बयान देकर जिस तरह इस मुद्दे पर चल रही राजनीति का

गृहमन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने आज संसद के उच्च सदन राज्यसभा में असम नागरिक रजिस्टर के बारे में बयान देकर जिस तरह इस मुद्दे पर चल रही राजनीति का स्तर अचानक उठा दिया है उससे यही साबित होता है कि भारतीय लोकतन्त्र में वे शक्तियां कभी समाप्त नहीं हो सकतीं जो वैचारिक समतभेदों के बीच से ही मतैक्य को निकाल कर इस देश की विभिन्न समस्याओं का हल ढूंढती रही हैं। वर्तमान में जिस तरह सियासत में बदजुबानी और रंजिशों को मतभेद का जरिया बनाया जा रहा है उसके उबलते लावे में राजनाथ सिंह का आज का बयान एेसी शीतल जल की धारा माना जाएगा जो देशवासियों को यह विश्वास दिलाने में सक्षम है कि लोकतन्त्र का अर्थ दुश्मनी नहीं बल्कि प्र​तिस्पर्धा होता है, यह प्रतिस्पर्धा संसद में तर्कपूर्ण और तथ्यात्मक शब्दावली के माध्यम से ही की जा सकती है।

गृहमन्त्री ने यह कह कर समूचे देशवासियों खास कर असम के नागरिकों को यकीन दिलाया है कि फिलहाल जारी नागरिकता रजिस्टर केवल एक मसौदा है अन्तिम दस्तावेज नहीं, अतः जिन चालीस लाख लोगों के नाम इस रजिस्टर में दर्ज नहीं हो पाए हैं उन्हें अभी से घुसपैठिये मान लेना भारी भूल होगी। श्री राजनाथ सिंह जब आज राज्यसभा में बयान दे रहे थे तो वह भाजपा के नेता नहीं थे बल्कि इस देश के गृहमन्त्री थे उनके बयान का एक–एक शब्द गवाही दे रहा था कि भाजपा के टिकट पर गाजियाबाद संसदीय सीट से जीत कर आया हुआ सांसद नहीं बोल रहा है बल्कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के लोगों की सुरक्षा गारंटी देने वाला वह गृहमन्त्री बोल रहा है जिसके ऊपर असम का नागरिकता रजिस्टर बनाने की अन्तिम जिम्मेदारी है। उनका यह कहना कि एक भी भारतीय इस रजिस्टर से नहीं छूटेगा और न ही उन लोगों के खिलाफ किसी प्रकार की कठोर कार्रवाई होगी जिनके नाम इस रजिस्टर में नहीं आ पाएंगे।

यह काम बिना किसी भेदभाव और पूर्वाग्रह के किया जाएगा। 24 मार्च 1971 की अर्ध रात्रि से पूर्व के असम में रहने वाले हर नागरिक को इस रजिस्टर में अपना नाम दर्ज कराने की इजाजत दी जाएगी और यह कार्य पूरी तरह साफ-सुथरे तरीके से किया जाएगा। बेशक तृणमूल कांग्रेस के इस सदन में संसदीय दल के नेता डेरेक ओब्रायन और विपक्ष के नेता श्री गुलाम नबी आजाद ने उनके बयान पर कुछ एेसे सवाल पूछे हैं जिनका उत्तर मिलना लाजिमी है। श्री ओब्रायन का सवाल असम में रह रहे अन्य राज्यों जैसे पंजाबी, बंगाली, बिहारी व उड़िया आदि की नागरिकता से जुड़ा हुआ था जबकि आजाद का सवाल भारतीय सेना की सेवा से रिटायर हुए अफसरों तक के नाम रजिस्टर में दर्ज न होने के मुत्तलिक था। जाहिर है कि इनका उत्तर गृहमन्त्री जरूर देंगे और स्पष्ट करेंगे कि एेसी गलतियां अन्तिम रजिस्टर बनने पर किसी भी सूरत में न हों। अतः यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब संसद से यह सन्देश जा रहा है कि गृहमन्त्री विदेशी नागरिकता के मामले में भारत के राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय हितों को पूरी तरह संरक्षित रखते हुए वह नीति अपनाने को तैयार हैं जिससे विश्व में यह पैगाम जा सके कि भारत संविधान से चलने वाला एेसा देश है जिसमें हर जायज नागरिक के बराबर के अधिकार हैं तो प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी को यह विचार करना चाहिए कि उनका इस मुद्दे पर आन्दोलकारी रुख उन असम की विविधता पूर्ण सामाजिक समरसता को प्रभावित कर सकता है।

बेशक यह सवाल अपनी जगह वाजिब है कि असम और बंगाल के सदियों पुराने रिश्ते इस तरह रहे हैं कि दोनों भाषा–भाषी नागरिक असमी अस्मिता के भागीदार हैं लेकिन श्री राजनाथ सिंह के बयान के बाद उम्मीद की कि वह किरण जरूर फूटी है जो नागरिकता रजिस्टर में अपना नाम दर्ज न होने वाले लोगों को यह आस दिलायेगी कि केवल वे लोग ही विदेशी माने जाएंगे जो वास्तव में अवैध बंगलादेशी नागरिक हैं और उनके लिए भी विदेशी पंचाट के रास्ते खुले होंगे। क्योंकि गृहमन्त्री ने स्व. प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी का नाम लेकर कहा कि उनकी मंशा भी अनधिकृत लोगों को भारतीय नागरिकों का दर्जा देने की नहीं थी। उन्होंने स्वीकार किया कि नागरिकता रजिस्टर बनाने का काम कांग्रेस की केन्द्रीय सरकार की पहल से ही शुरू हुआ और इसका रास्ता 1985 में असम समौझोते से निकला। भारत की लोकतान्त्रिक राजनीति की यही अजीम ताकत है जो इस देश के लोगों को एक सूत्र में पिरोये रखने की कूव्वत रखती है। इसका सबब यही है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर दलगत हितों से ऊपर उठ कर बात की जानी चाहिए और अटल बिहारी वाजपेयी की तरह संसद के पटल पर ही स्वीकार किया जाना चाहिए कि विपक्ष और सत्ता में रहने पर जो अन्तर किसी राजनीतिक दल की सोच में आता है वह राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी के बोझ से आता है। राजनाथ सिंह के कन्धे पर यह जिम्मेदारी जिस प्रकार आकर पड़ी है उसकी असल तसदीक उनके उस उत्तर से होगी जो वह इस मामले में उठाए गए सवाले के बारे में देंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

1 × two =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।