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समरकंद : कूटनीति की शतरंज

उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन का सम्मेलन इस बार कई मायनों में बहुत खास है। समरकंद में कूटनीतिक शतरंज की बिसात बिछी हुई है। देखना यह है कि बाजी किसके हाथ में रहती है।

उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन का सम्मेलन इस बार कई मायनों में बहुत खास है। समरकंद में कूटनीतिक शतरंज की बिसात बिछी हुई है। देखना यह है कि बाजी किसके हाथ में रहती है। तीन साल बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सामना होगा। इसी सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की करीब 34 महीने बाद मुलाकात होगी। भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर यह मुलाकात काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। दोनों के बीच आखिरी मुलाकात 2019 में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान हुई थी। भारत-चीन सीमा विवाद के बाद यह दोनों की पहली मुलाकात होगी। इस मुलाकात से पहले दोनों देशों में 17वीं वार्ता के बाद एलएसी के प्वायंट 15 से चीनी सैनिकों की वापिसी का फैसला हुआ और दोनों देशों की सेनाओं ने तीन दिन में विवादित इलाके से अपनी-अपनी सेना को हटा लिया। विवादित इलाकों से बंकर भी हटा लिए गए। सीमा विवाद को लेकर उठाए गए इस कदम के बाद प्रधानमंत्री मोदी  की शी जिनपिंग से कई और मुद्दों पर बातचीत हो सकती है। भारत यह पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि सीमाओं पर शांति स्थापित किए बिना रिश्तों में सुधार नहीं हो सकता। चीन का नरम रुख इस बैठक को देखते हुए ही अपनाया गया है। दोनों देशों के रिश्ते खराब होने के चलते व्यापार पर काफी प्रभाव पड़ा है। 
जहां तक पाकिस्तान का सवाल है हालांकि भारत ने यह साफ कर दिया है कि सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान से कोई बातचीत नहीं होगी। लेकिन हो सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी और शहबाज शरीफ में बातचीत की सम्भावनाएं बन जाएं क्योंकि पाकिस्तान चाहता है कि उसकी भारत से बातचीत हो। भयंकर बाढ़ ने पाकिस्तान की हालत खस्ता कर दी है और उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। पाकिस्तान के भीतर से ही भारत से व्यापार शुरू करने की मांग जोर पकड़ रही है और इस समय पाकिस्तान को भारत की जरूरत महसूस हो रही है। भारत मानवीय आधार पर पड़ोसी देशों को मदद देने में कभी पीछे नहीं हटा। चाहे वह श्रीलंका हो, म्यांमार हो, बंगलादेश हो या फिर तालिबान शासित अफगानिस्तान। पुलवामा आतंकी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत बंद है। 2016 में हुए पठानकोट हमले के बाद भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। प्रधानमंत्री मोदी शहबाज शरीफ के सामने आतंकवाद का मुद्दा छेड़ सकते हैं, क्योंकि दोनों देशों के संबंधों में सबसे बड़ी बाधा पाक प्रायोजित आतंकवाद ही है।
इस सम्मेलन के दौरान रूसी राष्ट्रपति ब्लादिन मीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात होगी। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद इस बैठक पर दुनिया की नजरें लगी हुई हैं। शंघाई सहयोग संगठन में जितने देश भाग ले रहे हैं उनमें अधिकांश अमेरिका विरोधी हैं। यद्यपि भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के खिलाफ खुलकर कभी नहीं बोला। भारत का स्टैंड यही रहा है कि इस मुद्दे को बातचीत के जरिये ही सुलझाया जाए और युद्ध खत्म हो। भारत द्वारा रूस के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलने पर अमेरिका ने भारत से नाराजगी भी जताई थी। हाल ही में अमेरिका ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के रखरखाव के लिए पैकेज दिया है और उसे बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए सहायता भी दी है। भारत पाकिस्तान को मानवीय आधार पर सहायता दिए जाने का विरोधी नहीं है लेकिन पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों के रखरखाव के लिए दिए गए पैकेज पर भारत ने नाराजगी जताई है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान की सहायता पूरी तरह से बंद कर दी थी, लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन की बिल्ली अब थैले से बाहर आ गई है। सम्भावना इस बात की है कि शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान, आतंकवाद की चुनौतियों, चीन के बेल्ट एंड रोड मेगा प्रोजैक्ट के चलते गरीब देशों पर बढ़ रहे कर्ज के बोझ पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
चीन ऋण जाल की कूटनीति में लगा हुआ है। इस कारण 42 गरीब देशों पर चीन का कर्ज उनके सकल घरेलू उत्पाद के 10 प्रतिशत से अधिक हो चुका है। समरकंद का सम्मेलन कई मुद्दों से निपटने का एक अ​च्छा मौका होगा। सम्मेलन में रूस-यूक्रेन जंग का मसला अहम एजैंडा होगा। इस युद्ध की वजह से पूरी दुनिया में खाद्य संकट गहरा गया है। इस मसले पर प्रधानमंत्री मोदी पुतिन से मिलकर कुछ ठोस पहल कर सकते हैं। भारत पर आक्रमण करने वाले तैमूर लंग का शहर समरकंद कूटनीति का केन्द्र बना हुआ है। शंघाई सहयोग संगठन यानि एससीओ की स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी। रूस, चीन, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान और किर्गिज गणराज्य शंघाई में इसकी स्थापना की थी। यह संगठन मुख्य रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों और विकास पर ध्यान फोकस करता है। भारत 2005 में एसीओ में पर्यवेक्षक बना और 2017 में पाकिस्तान को इसकी सदस्यता मिली। देखना होगा कि सम्मेलन अपने एजैंडे को पूरा करने में कितना सफल रहता है। मध्य एशियाई देशों में व्यापार बढ़ाने को लेकर भी चर्चा होगी, क्योंकि आज के दौर में व्यापार का बढ़ना भी बहुत जरूरी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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