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देख तेरे ​इन्सान की हालत क्या हो गई भगवान

समाज में कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जो समूची मानवता को शर्मसार कर देती हैं। हर अपराधी का अपना मनोविज्ञान होता है। जब दादी की उम्र की एक बीमार चल रही वृद्धा को कोई अपनी हवस का निशाना बनाता है

समाज में कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जो समूची मानवता को शर्मसार कर देती हैं। हर अपराधी का अपना मनोविज्ञान होता है। जब दादी की उम्र की एक बीमार चल रही वृद्धा को कोई अपनी हवस का निशाना बनाता है तो स्पष्ट हो जाता है कि बलात्कारी की मानसिकता कितनी घृणित होगी। उसकी यौन कुंठायें कितनी होंगी कि उसे अहसास ही नहीं हुआ कि जिस वृद्धा काे समाज में सम्मान और सहारा मिलना चाहिए, उसके साथ दुष्कर्म कर महापाप किया है। देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गई भगवान, कितना महापापी हो गया है इंसान।
आज से एक दशक पहले जब दिल्ली में निर्भया रेप कांड हुआ था तो हर कोई हैरान परेशान रह गया था। कानून की जद में आये दोषियों को मृत्युदंड दिया जा चुका है। इतना बड़ा कांड और मानवता को झंकझोर कर रख देने वाले इस केस में फैसले तक पहुंचते-पहुंचते एक बड़ा समय लग गया था हालांकि यह फैसला बड़ी देर बाद आया था लेकिन निर्भया की आत्मा को जरूर इंसाफ मिला होगा। निर्भया की माता जी बराबर इंसाफ के लिए लड़ती रही और जूझती रहीं। यहीं से एक और सवाल खड़ा होता है कि रेप के केसों में सुनवाई फास्ट ट्रैक पर हो और फैसला कितने समय में होगा इसका समय तय कर दिया जाना चाहिए। मेडिकल छात्रा से रेप की इस घटना को लोग इसके हैरान-परेशान कर देने वाले स्वरूप से आज भी परेशान हैं कि अब पांच दिन पहले दिल्ली के ही तिलक नगर में 87 साल की एक बुजुर्ग महिला से रेप के बाद अपराधी भाग गया और 16 घंटे बाद पुलिस ने इसे कड़ी मशक्कत के बाद पकड़ लिया।
मैंने निर्भया रेप कांड के बाद कितने ही डिबेट्स में हिस्सा लेते हुए हर बार इसी बात पर जोर दिया था और अब भी यही मेरा स्टेंड है कि रेप के मामलों में ना सिर्फ सुनवाई बल्कि फैसला एक निश्चित समय में होना चाहिए और गुनाहगारों को उनकी असली जगह पहुंचा दिया जाना चाहिए। यद्यपि कानून अपना काम कर रहा है परंतु एक 30 साल का व्यक्ति अपनी दादी की उम्र वाली महिला से बलात्कार करता है तो फिर इतनी गंदी मानसिकता को लेकर सवाल खड़े होना स्वाभाविक ही है। यहां तक कि आज की तारीख में साइकेट्रिक विशेषज्ञ भी हैरान परेशान होंगे कि 30 साल की उम्र में कोई इतना गंदा काम कर सकता है। इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। खैर, पुलिस ने 200 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे खंगाले, 400 लोगों से पूछताछ की, एसआईटी की 20 टीमें बनाई, जगह-जगह छापेमारी हुई और अब वह पुलिस की गिरफ्त में है। मैं खुद कमेंट करते हुए हैरान हूं कि क्या कहूं? लेकिन दो दिन पहले हाईकोर्ट के एक उस फैसले का सम्मान जरूर करना चाहूंगी जिसमें फटे-पुराने कपड़े बटोरने वाली एक युवती से गैंगरेप हुआ था और तीन लोगों को 12-12 साल की कैद की सजा सुनाई गयी। हालांकि तीन लोग सबूतों के अभाव में बरी कर दिये गये। यह गैंगरेप 2012 में हुआ था। जब कोई केस बहुत लंबा चलता है तो गुनाहगारों और उसके मददगारों को बच निकलने का मौका मिल जाता है। एक युवती अगर अपना काम करने के बाद रात को किसी ग्रामीण सेवा में बैठकर घर जा रही हो तो क्या कोई भी उसे अगवा कर लेगा और रेप कर लेगा? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है। 
मैं इस केस में हाईकोर्ट के उस वक्तव्य पर जाना चाहंूगी जिसमें कोर्ट ने यह कहा कि रेपिस्ट को कड़ी सजा का मकसद केवल इसलिए है कि महिलाओं की रक्षा और समाज की अंतर्रात्मा जीवित रहनी चाहिए। अदालत ने यद्यपि इस केस में तीन गुनाहगारों को बारह साल की सजा दी लेकिन ये तीनों पिछले दस साल से जेल में थे और बाद में बाहर आ जायेंगे। बलात्कारियों के लिए सजा के प्रावधान में यह बात आज या कल अंकित करनी ही होगी कि एक निश्चित समय में बलात्कारियों को दंड मिलना चाहिए। बल्कि फांसी को लेकर फैसला हो जाना चाहिए। अगर किसी की मानसिकता इतनी घिनौनी है कि वह मां या दादी जैसी महिला का रेप करे और मोबाइल छीनकर चला जाये, उस घर में क्या माहौल हुआ होगा जहां यह कांड हुआ होगा। परिवार के लोग तुरंत सजा की मांग कर रहे हैं। गुनाहगार की दिमागी हालत ठीक नहीं है लेकिन उसने बुजुर्ग महिला की रहम की अपीलों को नजरंदाज करते हुए कांड किया और उसका दिमाग यकीनन काम कर रहा था जो वह जाते हुए मोबाइल भी चुरा कर ले गया।
देश में रेप के मामले में कई लाख केस पेंडिंग हैं, यही स्थिति यौन शोसन से जुड़े केसों की भी है तुरंत इंसाफ देने की परंपरा स्थापित करनी होगी और रेप के ऐसे चौंकाने वाले वाकयों में जितनी जल्दी हो सके एक निश्चित समय में गुनाहगारों की सजा का प्रावधान कानून में जोड़ना होगा। यह काम कैसे और कब करना है सरकार को अविलंब करना ही होगा। पुराने इतिहास टटौलने की जरूर नहीं यह इतिहास लिखने का समय है। नारी सम्मान की मूरत है और बच्ची हो या बुजुर्ग उसकी असमिता सुरक्षित रखना हर नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य होना चाहिए और सरकार इस पर ठोस नीति लायेगी ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। यह घिनाैना कांड है और इसकी सजा भी ऐसी होनी चाहिए कि कोई सिरफिरा आैर घिनौनी मानसिकता वाला व्यक्ति हो दोबारा ऐसा करने की जुर्रत न कर सके।

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