कई लोग सोशल मीडिया की लत की तुलना सिगरेट से करते हैं। वे कहते हैं कि सोशल मीडिया पर कितने लाइक मिले इसे देखने की इच्छा एक नई तरह की ‘धूम्रपान की तलब’ है। अन्य का मानना है कि सोशल मीडिया पर बेचैनी नई प्रौद्योगिकियों के बारे में नैतिक घबराहट का अगला दौर है। हम अनुसंधानकर्ताओं की जोड़ी है जो जिसने जांच की कि सोशल मीडिया युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है। 75 प्रतिशत से अधिक किशोर हर घंटे अपने फोन को देखते हैं और उनमें से लगभग आधे कहते हैं कि उन्हें ऐसा लगता है कि वे अपने उपकरणों के आदी हो गए हैं।
यहां कुछ बातें हैं जो उन्होंने हमें बताई हैं : ‘‘टिकटॉक ने मुझे परेशान कर रखा है।’’ ‘‘मैं 1000 प्रतिशत कहूंगा कि मुझे इसकी लत है।’’ ‘‘मुझे पूरी तरह से अहसास है कि यह मेरे दिमाग पर कब्जा कर रहा है लेकिन मैं इससे दूर नहीं हो पा रहा। इससे मुझे शर्मिंदगी महसूस होती है।’’ हो सकता है कि आपकी अपनी भी ऐसी ही भावनाएं रही हों, चाहे आपकी उम्र कुछ भी हो। हालांकि, यह सच है कि सामाजिक प्रौद्योगिकियां धूम्रपान के विपरीत लाभ प्रदान करती हैं। बहुत से लोग अब भी ऑनलाइन बिताए गए समय को लेकर असहज महसूस करते हैं और अक्सर आश्चर्य करते हैं कि क्या वे आदी हैं। वर्षों के अनुसंधान ने हमारी टीम को इस निष्कर्ष पर पहुंचाया है : शायद एक बेहतर तरीका यह है कि आप मीडिया इस्तेमाल को आहार के रूप में देखें। जिस तरह स्वस्थ आहार लेने के कई तरीके हैं उसी तरह स्वस्थ और वैयक्ति केंद्रित सोशल मीडिया आदतें विकसित करने के भी कई तरीके हैं।
सोशल मीडिया के उपयोग पर 2010 के शुरुआती अनुसंधान शरीर पर प्रभाव, खाने की आदतों में विकार और सामाजिक तुलना कर नकारात्मक प्रभाव दिखाते हैं। इसके विपरीत अन्य अध्ययन सोशल मीडिया के मानसिक स्वास्थ्य लाभों की ओर इशारा करते हैं जिसमें सामाजिक बेहतरी, मजबूत दोस्ती और विविध दृष्टिकोणों का सुलभ होना शामिल है। फिर भी अन्य अध्ययन परस्पर विरोधी परिणाम पेश करते हैं। वास्तव में इस विषय पर अनुसंधान करते समय अनिर्णायक या मिश्रित परिणाम एक आवर्ती परिपाटी प्रतीत होती है।
इन अध्ययनों में विसंगतियां दो जटिल प्रणालियों, सोशल मीडिया प्रौद्योगिकियों और मानव व्यवहार मनोविज्ञान के बीच स्वस्थ संवाद को चिह्नित करने की बहुत कठिन समस्या को उजागर करती हैं।
एक मुद्दा यह है कि उपयोगकर्ताओं द्वारा अनुभव किया जाने वाला तनाव, चिंता और आत्म-सम्मान की चुनौतियां हर पल अलग-अलग इस पर आधारित हो सकती हैं कि वे क्या देख रहे हैं। इस बात पर विचार करें कि सोशल मीडिया पर बिताया गया सारा समय एक समान नहीं होता। उदाहरण के लिए दिन में एक घंटे के लिए दूर के दोस्तों को संदेश भेजने से आपको दिन में 30 मिनट ‘डूमस्क्रॉल’ (ऑनलाइन बड़ी मात्रा में नकारात्मक समाचार पढ़ने में अत्यधिक समय व्यतीत करने की क्रिया) करने में खर्च करने की तुलना में अधिक संतुष्टि महसूस होगी। इसीलिए अनुसंधानकर्ता सोशल मीडिया के सक्रिय और निष्क्रिय उपयोग के बीच अंतर करने की कोशिश कर रहे हैं। ‘सक्रिय उपयोग’ सामाजिक आदान-प्रदान को संदर्भित करता है, जैसे संदेश भेजना या सामग्री पोस्ट करना जबकि ‘निष्क्रिय उपयोग’ दूसरों के साथ भागीदारी, योगदान या जुड़ाव के बिना सोशल मीडिया सामग्री को देखना लेकिन यह अंतर भी बहुत सरल है और जांच के दायरे में आ गया है। कुछ सक्रिय व्यवहार, जैसे रेडिट पर ट्रोलिंग, संभवतः इसमें शामिल सभी लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। कुछ निष्क्रिय व्यवहार, जैसे शिक्षाविदों के वीडियो देखना फायदेमंद होता है।
चार सप्ताह का हस्तक्षेप
हमारे मौजूदा अध्ययन में विभिन्न प्रकार की सोशल मीडिया आदतों वाले 500 से अधिक कॉलेज छात्रों ने हिस्सा लिया। छात्र ने सोशल मीडिया के साथ अपने वर्तमान संबंधों पर विचार करके शुरुआत की और फिर उन परिवर्तनों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया जो वे करना चाहते हैं। इसमें बिना सोचे-समझे ‘स्क्रॉल’ करने में कम समय बिताना, किसी ऐप पर प्रोत्साहित नहीं करना या शयनकक्ष में फोन लेकर न सोना शामिल हो सकता है।
चार सप्ताह तक प्रतिभागी अपने लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश में मिली सफलता की जानकारी देते है। वे ‘जर्नलिंग’ (डायरी लिखने) और मानक मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षणों के माध्यम से अपनी भावनाओं और अनुभवों को बताते हैं जो सोशल मीडिया की लत और अन्य मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को इंगित करते हैं। हमारा प्रारंभिक विश्लेषण संकेत करता है कि चार सप्ताह का हस्तक्षेप उन लोगों में सोशल मीडिया की लत को काफी हद तक कम कर देता है, जिन्होंने सोशल मीडिया की लत के समस्याग्रस्त या नैदानिक स्तरों से शुरुआत की थी।
समस्या वाली सोशल मीडिया की लत कई नकारात्मक प्रभावों से जुड़ी है जिसमें मनोदशा, चिंता और सोशल मीडिया पर व्यय किया गया अत्यधिक समय और ऊर्जा शामिल है। क्लीनिकल सोशल मीडिया लत के स्तर वाले लोग वे हैं जो समस्यायुक्त सोशल मीडिया प्रभावों का ही अनुभव करते हैं लेकिन काफी हद तक सोशल मीडिया के प्रति उनकी लत नशेड़ी जैसी होती है। हस्तक्षेप की शुरुआत में समस्यावाली सोशल मीडिया लत ‘स्कोर’ वाले प्रतिभागियों के ‘स्कोर’ में 26 प्रतिशत की औसत कमी देखी गई जबकि और क्लीनिकल सोशल मीडिया लत ‘स्कोर’ के साथ शुरुआत करने वाले प्रतिभागियों के ‘स्कोर’ में 35 प्रतिशत की कमी आई। इन कमी ने हस्तक्षेप के निष्कर्ष तक दोनों समूहों को सोशल मीडिया के उपयोग की एक स्वस्थ श्रेणी में ला दिया।
– एनी मार्गरेट और निकोलस हंकिन्स