तेजस्वी-राहुल की दोस्ती! - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

तेजस्वी-राहुल की दोस्ती!

भारत की राजनीति में बिहार का विशिष्ट स्थान रहा है। यह राज्य समूचे उत्तर भारत की राजनीति को इस प्रकार प्रभावित करता रहा है कि यहां से उठी विचारों की चिंगारी अन्य राज्यों में शोले का रूप लेकर भड़कती रही है। बिहार की यह भी सिफत रही है कि यहां से सत्ता विरोधी विचारों का प्रतिपादन हमेशा यथास्थिति को तोड़ने के लेकर होता रहा है परन्तु हम देख रहे हैं कि वर्तमान में विपक्षी इंडिया गठबन्धन की क्या हालत है और इसके घटक दलों में सीटों के बंटवारे को लेकर लगातार मनमुटाव बना हुआ है। इससे यही आभास हो रहा है कि बारी-बारी से घटक दल इसे छोड़ने की मुद्रा में हैं। एेसे माहौल में यदि बिहार के प्रमुख विपक्षी नेता व पूर्व उप मुख्यमन्त्री श्री तेजस्वी यादव कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हाथ थाम कर इंडिया गठबन्धन की एकता का परिचय देते हैं तो इसे निश्चित रूप से सिद्धान्तवादी राजनीति का परिचायक माना जायेगा। जब कांग्रेस से ही नेता दल बदल कर एक ओर भाजपा में जा रहे हैं तो श्री यादव का राहुल गांधी के साथ खड़ा होना बताता है कि राजनीति पूरी तरह से सिद्धान्तहीन व अवसरवादी नहीं हुई है। तेजस्वी लालू जी के पुत्र हैं और लालू जी ने जब से 80 के दशक से अपनी सत्ता की राजनीति शुरू की है तब से लेकर आज तक उन्होंने कभी भी कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा है और वह भाजपा के विरोध में खड़े रहे हैं। यही स्थिति तेजस्वी की भी फिलहाल लगती है। मगर इसके साथ ही बिहार में नीतीश बाबू जैसे नेता भी हैं जो रात को कांग्रेस का नाम लेकर सोते हैं और सवेरे भाजपा के पहलू में दिखाई पड़ते हैं।
कल तक नीतीश बाबू इंडिया गठबन्धन का संयोजक होने का ख्वाब देख रहे थे मगर आज भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं। एेसा भी केवल बिहार में ही होता है कि नीतीश बाबू जैसा नेता 18 साल में नौ बार मुख्यमन्त्री पद की शपथ लेता है और वह भी गठबन्धन अदल-बदल कर। इस प्रकार के करामाती नेता भी बिहार में ही हो सकते हैं। मगर असली सवाल यह है कि बिहार में राहुल गांधी के साथ उनकी भारत जोड़ोे यात्रा में जिस प्रकार तेजस्वी यादव ने शिरकत की उससे कांग्रेस व तेजस्वी यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के कार्यकर्ताओं में यह सन्देश चला गया कि ये दोनों पार्टियां मिलकर आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा व नीतीश बाबू की पार्टी का मुकाबला करेंगी। इससे एक मायने में इंडिया गठबन्धन को सीटों के बंटवारे को लेकर सुविधा ही होगी क्योंकि राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 17 भाजपा के पास हैं और 16 नीतीश बाबू की पार्टी जनता दल(यू) के पास। नीतीश बाबू यदि इंडिया गठबन्धन में रहते तो कम से कम 25 सीटें मांगते क्योंकि राज्य में लालू जी की पार्टी राजद का कोई भी सांसद पिछले चुनावों में नहीं चुना गया था। जबकि कांग्रेस का केवल एक ही सांसद चुना गया था।
अब विपक्ष में कांग्रेस, राजद व वामपंथी दल रह गये हैं। नीतीश बाबू और भाजपा के एनडीए गठबन्धन में स्व. पासवान की पार्टी लोजपा भी शामिल है। पिछली बार इसके छह सांसद चुने गये थे। अब यह पार्टी चाचा पशुपति पारस व भतीजे चिराग पासवान में बंट चुकी है। इस वजह से सीटों के बंटवारे को लेकर एनडीए में ज्यादा सिरफुटव्वल हो सकता है। एनडीए से विपक्ष का सभी 40 सीटों पर सीधे आमने-सामने मुकाबला होगा। इस लिहाज से राहुल व तेजस्वी की दोस्ती बहुत मायने रखती है। क्योंकि पिछले 2020 के बिहार के विधानसभा चुनावों में विपक्ष ने तेजस्वी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा था। इन चुनावों में नीतीश बाबू भाजपा के साथ गठबन्धन बनाकर चुनाव लड़े थे। तब हालांकि भाजपा गठबन्धन को मामूली बहुमत प्राप्त हो गया था परन्तु पूरे राज्य में एनडीए को तेजस्वी के गठबन्धन से मात्र 12 हजार वोट ही अधिक मिले थे। इसलिए लोकसभा चुनावों में नीतीश बाबू के भाजपा के खेमे में जाने के बावजूद बहुत कड़ा मुकाबला हो सकता है और ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। तेजस्वी और राहुल दोनों ने जिस प्रकार नीतीश बाबू को आड़े हाथों लिया है उससे यही लगता है कि बिहार में वैचारिक स्तर पर लोकसभा में महासंग्राम होगा। मगर एक सवाल यह भी रह-रह कर उठ जाता है कि जिस प्रकार इंडिया गठबन्धन भरभरा सा दिखता है उसमें यह दोस्ती कितनी मजबूत रह सकेगी?
राहुल गांधी की जीप को जिस तरह तेजस्वी ने बिहार के बक्सर में खुद चलाया उससे दोस्ती तो पक्की मालूम पड़ती है मगर यह दोस्ती वैचारिक स्तर पर ज्यादा है। डा. लोहिया की कर्मभूमि भी बिहार रहा है और वह कहा करते थे कि विचारों का रंग खून से गाढ़ा होता है। अब देखना होगा कि क्या तेजस्वी-राहुल की दोस्ती का रंग उत्तर प्रदेश में भी अखिलेश व राहुल गांधी पर चढे़गा? राहुल जी अब उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर चुके हैं। इस राज्य में 2017 के विधानसभा चुनावों में इन दोनों की दोस्ती कोई असर नहीं डाल सकी थी और भाजपा को तीन चौथाई बहुमत मिल गया था। 2024 के लोकसभा चुनाव में यह जोड़ी क्या प्रभाव डालेगी, यह तो वक्त ही बतायेगा।

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