हजारों कोरियाई भी आएंगे अयोध्या, लाहौर में लोहड़ी - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

हजारों कोरियाई भी आएंगे अयोध्या, लाहौर में लोहड़ी

भारतीय संस्कृति की व्यापकता एवं साझेदारी को इस बार भी याद किया जाएगा। आयोध्या में सरयू नदी के किनारे भी इस बार यहां की राजकुमारी को याद किया जाएगा, जो इसी धरती की बेटी थी और कालांतर में दक्षिणी कोरिया की महारानी बनी। अब भी हर वर्ष बड़ी संख्या में वहां से उस महारानी के वंशज यहां अपनी ‘ननिहाल’ में आते हैं। इस राजकुमारी सुरीरत्ना के सरयू स्थित स्मारक पर अब भी फरवरी-मार्च में कोरियाई पर्यटक आते हैं। महारानी का नाम है हियो ह्वांग ओक जो प्राचीन कोरियाई राज्य कारक के संस्थापक राजा किम सू रो की भारतीय पत्नी थीं।
दक्षिण कोरिया और भारत की दोस्ती 2000 साल पहले से शुरू होती है। यह बात हम जानते हैं कि श्रीराम को राजा दशरथ ने 14 साल के लिए वनवास पर भेज दिया था। वनवास पूरा होते ही राम वापस अयोध्या आ गए थे लेकिन उसी नगरी की एक राजकुमारी थीं सुरीरत्ना जो 2000 साल पहले दक्षिण कोरिया गईं और वहीं बस गईं थीं। कोरिया में उन्होंने उस समय के राजा किम सोरो से शादी की। इसके बाद भारत-कोरिया की दोस्ती और मजबूत हो गई। इतनी मजबूत कि कोरिया ने अयोध्या में सरयू नदी के तट पर ‘रानी हो’ का स्मारक बनवाया और हर साल फरवरी-मार्च के बीच कोरियन लोग अयोध्या आकर रानी हो को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
अयोध्या की इस राजकुमारी को सुरीरत्ना के नाम से भी जाना जाता है। कोरिया के इतिहास के मुताबिक महारानी हियो ह्वांग ओक यानी राजकुमारी सुरीरत्ना भारत से दक्षिण कोरिया के ग्योंगसांग प्रांत के किमहये शहर गई थीं और वहीं की होकर रह गईं। चीनी भाषा में दर्ज दस्तावेज सामगुक युसा के मुताबिक ईश्वर ने अयोध्या की राजकुमारी के पिता को स्वप्न में आकर ये निर्देश दिया था कि वो अपनी बेटी को राजा किम सू रो से विवाह करने के लिए किमहये शहर भेजें। इसके बाद उनके पिता ने उन्हें राजा सू रो के पास जाने को कहा। लगभग दो महीने की समुद्री यात्रा के बाद राजकुमारी कोरिया के राजा के पास पहुंच गईं। सामगुक युसा में कहा गया है कि उस समय राजकुमारी की उम्र 16 वर्ष थी, जब उनकी शादी राजा किम सू रो से हुई थी और उसके बाद वो कोरिया की महारानी बन गईं। कहा जाता है कि महारानी हियो ह्वांग ओक और राजा किम सू रो के कुल 12 बच्चे थे। आज कोरिया में कारक गोत्र के तकरीबन 60 लाख लोग खुद को राजा किम सू रो और अयोध्या की राजकुमारी के वंश का बताते हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति किम डेई जंग और पूर्व प्रधानमंत्री हियो जियोंग और जोंग पिल किम भी कारक वंश से ही आते थे। इस वंश के लोगों ने उन पत्थरों को आजतक संभाल कर रखा है, जिनके बारे में माना जाता है कि अयोध्या की राजकुमारी अपनी समुद्री यात्रा के दौरान नाव को संतुलित रखने के लिए साथ लाई थीं। किमहये शहर में उनकी एक बड़ी प्रतिमा भी है।
इसी संदर्भ में यह जानना भी कम दिलचस्प होगा कि इस बार लोहड़ी के अवसर पर पाक पंजाब व भारतीय पंजाब में ‘दुल्ला भट्टी वाला’ को भी जमकर याद किया गया। लाहौर स्थित पंजाब इंस्टीच्यूट आफ लेंग्वेजज में इस अवसर पर विशेष समारोह आयोजित किए गए हैं। वहां पर जि़या-उल-हक के जमाने में इस पर्व पर प्रतिबंध लग गया था। मगर अब इसे भंगड़े-गिद्धे से जुड़ी बोलियों व दुल्ला भट्टीवाला को महिमामंडित करते लोकगीतों से याद किया गया। लोहड़ी स्थान पर जली। विशेष रूप से लाहौर, कसूर, रावलपिंड, ननकाना साहब, फैसलाबाद, गुजरात पाकिस्तान में जश्न मनाए गए।
लाहौर के इतिहास का एक पृष्ठ यह भी
यह एक सुखद आश्चार्य ही है कि इस बार भी लाहौर के गली-कूचों में लोहड़ी के पर्व पर ‘दुल्ला-भट्टी वाला’ को जमकर याद किया गया। लाहौर की मियानी साहब-कब्रगाह में एक कब्र ऐसी भी है जिस पर उनकी पहचान किसी शिलालेख के रूप में तो दर्ज नहीं है मगर उसकी पहचान का एक ‘बोर्ड’ कब्र से तीन फीट की दूरी पर अवश्य लगा है जो बयान करता है कि वह कब्र ‘दुल्ला भट्टीवाला’ की है। जिस दिन लाहौर के ‘दिल्ली-दरवाजे’ पर मुगल शहंशाह अकबर के हुक्म से शहर के कोतवाल ने ‘दुल्ला-भट्टीवाला’ का सिर धड़ से अलग किया था उस समय मौजूद लोगों की भीड़ में प्रख्यात सूफी फकीर शाह हुसैन भी मौजूद थे। तब हुसैन गा उठे थे -कहे हुसैन फकीर साईं दा तख्त न मिलदे मंगिया’ अर्थात् तख्त या सत्ता सिर्फ मांगने से नहीं मिलती। उन्होंने उस वक्त कोतवाल अली मलिक को सार्वजनिक रूप से बद्दुआ दी थी कि अल्लाह तुम्हें जहन्नुम में सख्त से सख्त सज़ा देगा।
उस काल के दर्ज इतिहास में इस तथ्य का भी उल्लेख है कि अगले ही दिन जब कोतवाल अली मलिक ‘शाबासी’ के लिए शहंशाह अकबर के दरबार में हाजि़र हुआ तो उससे किसी दरबारी ने पूछ लिया कि क्या ‘दुल्ला भट्टीवाला’ ने आखिरी लम्हों में रहम की भीख नहीं मांगी तो कोलवाल ने भरे दरबार में बताया कि नहीं हुज़ूर! उसने तो बादशाह सलामत की शान में अपने आखिरी लम्हे में भी गुस्ताखी की और शहंशाह को ‘जालिम’ भी कह डाला। उसके चेहरे पर पछतावा था न दहशत।
कोतवाल के इस बयान से ‘बादशाह सलामत’ भी खुश नहीं हुए और उनकी राय में कोतवाल इस तरह से ‘दुल्ला भट्टीवाला’ की शान में कसीदा पढ़ रहा था। हुक्म दिया गया कि कोतवाल को भी सजा-ए-मौत दे दी जाए। बस तब से यानि पिछले लगभग पांच सौ बरस से इस उपमहाद्वीप के लोग गाते चले आ रहे हैं : ‘सुन्दर मुन्दरियो हो…
तेरा कौन विचारा हो…
दुल्ला भट्टी वाला हो…
दुल्ले ने धी ब्याही हो…
सेर शक्कर पाई हो…
असां चूरी कुट्टी हो…
जि़मींदारां लुट्टी हो..
सुन्दर मुन्दरियो हो…
इस दिन अब भी करोड़ों लोग घरों के बाहर गोबर के उपले या सूखी लकड़ी जलाकर उसमें गुड़ की रेवड़ी या भुनी हुई मकई का प्रसाद चढ़ाते हैं। भंगड़ा, गिद्धा चलता है, ढोल बजते हैं। यानि वह ‘दुल्ला भट्टी वाला’ अभी भी कहीं ज़ेहन में बसा है, जो शोषितों का मददगार था। कईयों के लिए लोहड़ी का सम्बन्ध होलिका की बहन लोहड़ी से है। किंवदंती के अनुसार होलिका तो जल गई थी मगर उसकी बहन लोहड़ी, आग में भी जीवित रही थी। कुछ अन्य लोग इसे संत कबीर की पत्नी माई लोई से जोड़ते हैं और कुछ इसे मकर संक्रांति की पूर्व संध्या का पर्व मानते हैं।
और जाते-जाते कुछ शब्द मकर संक्रान्ति के बारे में इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। ऐसा इसलिए होता है कि पृथ्वी का झुकाव हर 6-6 माह तक निरंतर उत्तर की और 6 माह दक्षिण की ओर बदलता रहता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया है जो इसी दिन होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अतः इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

– डॉ. चन्द त्रिखा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

18 + four =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।