वोट हमारा-राज तुम्हारा! - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

वोट हमारा-राज तुम्हारा!

बहुत पुरानी बात नहीं है जब सत्तर के दशक के शुरू में आज की भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता डा. मुरली मनोहर जोशी ने तत्कालीन जनसंघ के मंच से

बहुत पुरानी बात नहीं है जब सत्तर के दशक के शुरू में आज की भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता डा. मुरली मनोहर जोशी ने तत्कालीन जनसंघ के मंच से श्रीमती इन्दिरा गांधी की “गरीबी हटाओ” की नीति के समानान्तर यह नारा उछाला था कि ‘वोट हमारा-राज तुम्हारा , नहीं चलेगा- नहीं चलेगा।’ उस समय राजनीति में जिस प्रकार उद्योगपति व पूंजीपति सत्ता के प्रतिष्ठानों में अपना प्रवेश सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के दरवाजे से पाने की कोशिशों में लगे हुए थे उसका यह प्रत्युत्तर था क्योंकि 1971 के लोकसभा चुनावों में इन्दिरा जी की कांग्रेस की तूफानी जीत की असली वजह जाति-धर्म तोड़कर समाज के पिछले पायदान पर खड़े लोगों की गोलबन्दी थी। बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने के बाद राजा-महाराजाओं का प्रिविपर्स समाप्त करके इन्दिरा जी ने सन्देश दिया था कि देश की सम्पत्ति पर केवल चुनीन्दा लोगों का अधिकार नहीं हो सकता बल्कि इसका बंटवारा समाज के वंचित लोगों में बराबरी के साथ किया जाना चाहिए। उस समय जनसंघ के सामने चुनौती थी कि वह अपनी हिन्दूवादी राष्ट्रवाद की छवि से किस प्रकार बाहर आये कि कांग्रेस को उसके ही बनाये गये घेरे में घेर सके। 1971 के चुनाव में जब बिड़ला, टाटा से लेकर बड़े-बड़े पूर्व राजा-महाराजा इन्दिरा कांगेस के सामने चुनावी मैदान में ढेर हो गये तो इनमें से अधिसंख्य ने अपनी सुरक्षा इन्दिरा जी के शरणागत होने में ही समझी और इनका रुख बदलने लगा तो डा. जोशी ने इसी को मुद्दा बनाकर कांग्रेस पर हमला करने की तरकीब निकाली और समाज के उन्हीं वर्गों को कांग्रेस सरकार के खिलाफ झंडा उठाने को प्रेरित किया जिनके वोट से इन्दिरा कांग्रेस सत्ता में आयी थी।

वह दौर एेसा था जिसमें जनसंघ का राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व लोगों को पिछड़ा और दकियानूस बनाये रखने का राजनैतिक औजार लगता था और आम लोग चर्चा करते थे कि जनसंघ के पास कोई आर्थिक कार्यक्रम नहीं है परन्तु आज का भारत 2018 का भारत है और इसके विकास करने के आधारभूत मानक तक बदले जा चुके हैं, यहां तक कि विकास कार्यक्रमों का ही ‘आऊट सोर्सिंग’ तक पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) नमूने के तौर पर हो रहा है। हमने पूरे देश को एक बाजार के रूप में विकसित करने के लिए शुल्क प्रणाली में आधारभूत ढांचागत परिवर्तन करके ‘जीएसटी’ कर प्रणाली को लागू कर दिया है और हम हर वर्ष सकल विकास वृद्धि दर के आंकड़े दिखा-दिखा कर आम आदमी को यकीन दिला रहे हैं कि उसका विकास हो रहा है और उसकी आमदनी बढ़ रही है परन्तु इसके विपरीत हकीकत यह है कि इस देश की कुल सम्पत्ति के 73 प्रतिशत पर केवल भारत के एक प्रतिशत लोगों का कब्जा है। इसका मतलब यही निकलता है कि हमने विकास का जो ढांचा खड़ा किया है वह उन्हीं लोगों की सम्पत्ति में बढ़ोत्तरी कर रहा है जो विकास के कामों में लगे हुए हैं। यदि हम विकास इसी तरह से करते रहे तो देश की 99 प्रतिशत आबादी का राष्ट्रीय सम्पत्ति में हिस्सा और ज्यादा कम होने से कोई नहीं रोक सकता और हम फिर वहीं चले जायेंगे जहां से हमने शुरूआत की थी यानि 1947 पर। उस समय राष्ट्रीय सम्प​ित्त पर चन्द बड़े उद्योग घरानों और जमींदारों व राजपरिवारों का अधिकार था।

आज राजपरिवार समाप्त हो चुके हैं मगर जो नये उद्योग घराने और सत्ता के दलाल पनपे हैं वे लगातार देश के विकास की धनराशियों को अपनी जेबों में डालते जा रहे हैं। हम 1990 तक इसे कम करके 38 प्रतिशत तक ले आये थे जो 2014 में 44 प्रतिशत हो गया था और अब 73 प्रतिशत है। इस जाहिराना बेइंसाफी का तोड़ हम 99 प्रतिशत जनता को धार्मिक उन्माद और मजहबी मसलों में उलझा कर उसी तरह निकालना चाहते हैं जिस प्रकार किसी गांव का महाजन अपनी तिजोरी भरने के लिए गांव के लोगों को आपसी जमीनी विवादों और जातिगत दुश्मनियों में उलझाता है। जब एेसी दुश्मनियां उभार पर आती हैं तो सबसे पहले कोई भी आदमी अपने अहंकार को ऊपर रखने के लिए आर्थिक हितों को ताक पर रखने में देर नहीं लगाता और उसी महाजन के पास कर्ज लेने के लिए पहुंच जाता है जो पर्दे के पीछे से उन्हें लड़ा रहा होता है। राजनीति में एेसी फनकारी का प्रयोग पिछले कई दशकों से हो रहा है और हम किसी शतरंज के मोहरों की तरह आपस में कभी हिन्दू-मुसलमान के नाम पर तो कभी हिन्दी-अंग्रेजी या मन्दिर-मस्जिद या चर्च के नाम पर आपस में तलवारें खींच रहे हैं। गाय तो किसी के भी खूंटे से बन्धने में कोई गुरेज नहीं करती। वह मुसलमान के खूंटे पर अपना दूध कम नहीं करती और हिन्दू के खूंटे पर बन्धते ही उसमें इजाफा नहीं कर देती। दरअसल यह धार्मिक समस्या है ही नहीं बल्कि पूरी तरह राजनैतिक और आर्थिक समस्या है।

आर्थिक समस्या इसलिए है कि उसके दूध देने की उम्र ढलने के बाद गौशाला में उसके रखरखाव का खर्चा कौन उठायेगा? और राजनैतिक इसलिए है कि हिन्दुओं की उसे पूज्य पशु मानने की आस्था को राजनैतिक आकार देने में किसी प्रकार की मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस मूल प्रश्न को कोई लेने को तैयार ही नहीं है कि दूध देना बन्द कर देने पर गाय की सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम किस तरह किये जायेंगे और इसके लिए आस्था के वित्तीय स्रोत किस तरह बनाये जायेंगे। यह प्रश्न आते ही हर गोरक्षक पल्ला झाड़ कर गऊ को माता बता कर आगे चल देता है। जाहिर है कि 99 प्रतिशत लोगों को यह भटकाव इसीलिए दिया जा रहा है जिससे मुल्क का कारोबार जिस तरह चल रहा है वैसे ही चलता रहे और आम आदमी एक-दूसरे को शक की निगाहों से देखता रहे। हम इसी माहौल को और जहरीला बनाने के लिए कभी ताजमहल का नाम बदलने की तकरीरें करते रहे तो कभी वैदिक काल में कम्प्यूटर होने के सबूत देते रहे और मजे में डिजिटल टैक्नोलोजी का उपयोग भी लोगों को आपस में लड़ाने के लिए इस तरह करते हैं कि 99 प्रतिशत जनता यह भूल जाये कि वही इस देश की भाग्य विधाता है क्योंकि उसके वोट से ही सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। डा. लोहिया ने यह नारा दिया था कि हिन्दोस्तान में असली स्वतन्त्रता तभी आयेगी जब राष्ट्रपति का बेटा और चपरासी का बेटा एक ही स्कूल में एक जैसी शिक्षा प्राप्त करेंगे। उनका आशय यही था कि पूंजीपतियों की सरकार नहीं बल्कि गरीबों की सरकार होगी और गरीबों की सरकार तभी आयेगी जब देश की सम्पत्ति पर उद्योगपतियों का नहीं बल्कि गरीबों का हक होगा मगर हम तो उल्टे चल रहे हैं।

हमने देखा कि किस तरह ग्रेटर नोएडा में बने मकान ढह गये और उनमें कई लोग मर गये। ये मकान गरीबों के लिए ही थे मगर गरीब तो इस मुल्क की सियासत में एेसा सिक्का बन गया है जो पूंजीपतियों की तिजोरियों में दौलत भरने का औजार बड़े इत्मीनान से बनाया जा रहा है और उस पर तुर्रा यह कि देखो भारत तुम्हारी कितनी चिन्ता करता है कि हर मन्त्री समाज में भाईचारा बनाये रखने के लिए ‘महसूल’ चुका रहा है, आखिर वोट तो तुम्हीं से लेना है और तुम्हारी ही सरकार बनानी है। राज तो राज होता है और वह राजनीति से चलता है, इसमें जनता का क्या दखल !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

one × four =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।