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संसद में ये क्या हो रहा है?

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कोई कुछ भी कहे भारत में राजनीति का हिसाब-किताब और जैसे इसका हिसाब-किताब है वो सबसे निराला है। यूं तो हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं परंतु ताज्जुब यह है कि हमारे लोकसेवकों का वर्किंग स्टाइल हैरान कर देने वाला है। हमारे देश में कहा जाता है कि अपनी मांगों के समर्थन में कोई भी नेता या पार्टी सड़क से आंदोलन शुरू करता है और संसद तक पहुंच जाता है। ऐसे बहुत से नेता हैं जिन्होंने सड़क से आमरण शुरू किया और संसद तक की मंजिल पायी लेकिन संसद पहुंचकर वापिस सड़क पर पहुंचना ये कौन सी राजनीति है, कौन सा वर्किंग स्टाइल है, यह बात हमारी समझ में नहीं आई।

माफ करना, लोकसभा में शीतकालीन सत्र में यही सब कुछ नजर आया और शुरू के दो-तीन दिन तो इतना जबर्दस्त हंगामा हुआ जिसके जन्मदाता विपक्ष के लोग थे और सरकार की ओर से हंगामें का विकल्प जो व्यवस्था के तहत खोजा गया वो निलंबन के रूप में सामने आया। स्पीकर महोदय ने हंगामा करने पर 45 से ज्यादा सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया। वो लोकसभा की कार्यवाही में व्यवधान डाल रहे थे और दो दिन बाद यह सत्र भी खत्म होने जा रहा है। मेरा सवाल यह है कि लोकसभा में विपक्ष अगर हंगामा करता है तो वह अपनी बात रखने के लिए अड़ता है।

हंगामा करना हमारी राजनीति का एक हिस्सा बन चुका है और लोकसभा की एक पहचान बन चुका है लेकिन हंगामे का जवाब जिस व्यवस्था से किया जा रहा है वह देशवासियों और बुद्धिजीवियों के बीच सोशल मीडिया पर एक नई बहस के रूप में जन्म ले रहा है। अगर किसी का मकसद हंगामा करना है तो उसका जवाब निलंबन होना चाहिए यह बात हमारी समझ से बाहर है। बात राफेल डील पर बहस की हो या अपना सवाल पूछने के लिए चर्चा में आने के लिए सदन में तख्तियां लटकाकर शोर करना और चीखना-चिल्लाना यह सब इसलिए किया जाता है ताकि सब कुछ टीवी कैमरों में कैद हो जाए। ऐसे में लोग सांसदों के आचरण को किस रूप में लेंगे यह उस समय और भी हैरानी वाली बात हो जाती है जबकि सांसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जा रहा हो। सदन की कार्यवाही ठप्प कर देने का क्या मतलब है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को इस बारे में सोचना होगा।

सांसदों को निलंबित कर देने से क्या सब कुछ ठीक हो जाएगा? लोग सोशल साइट्स पर एक-दूसरे से शेयर करते हुए कह रहे हैं कि अगर सत्ता पक्ष विपक्षी नेताओं के बगैर आगे बढ़ता है तो यह एक बेलगाम अंदाज हो सकता है, जो किसी भी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर सकता है। मुद्दा किसानों का हो या राफेल या फिर श्रीराम मंदिर का सत्ता पक्ष अपनी बात रखने के लिए और विपक्ष हमले के लिए हर वक्त तैयार रहता है लेकिन सब कुछ मर्यादित तरीके से होना चाहिए। संसद के अंदर हंगामा और परिसर के अंदर अगर धरने-प्रदर्शन चलेंगे तो बताइए ये भारत जैसे महान लोकतंत्र की कैसी नजीर है। हंगामे के लिए हंगामा खड़ा करना ये कोई समझदारी की बात नहीं। सोशल साइट्स पर लोग यहां तक सवाल कर रहे हैं कि हो-हल्ला करने वाले सांसदों को पहले आचरण करना सिखाना चाहिए।

राजनीतिक नेतृत्व और नियमावली क्या कर रही है, इस बात पर भी अगर सार्थक बहस कर ली जाए तो अच्छी बात है परंतु डर है वहां भी हंगामे के लिए हंगामा न खड़ा हो जाए। सदन की कार्यवाही पर जितने रुपए खर्च होते हैं, वो पैसे देश के हैं। हर पार्टी को सोचना चाहिए, हर सांसद को सोचना चाहिए कि लोकसभा ज्वलंत मुद्दों की सार्थक बहस का एक सबसे बड़ा केंद्र है। देश के लिए योजनाएं बनाने की नींव इसी लोकसभा में रखी जाती है और इसके बाद सत्ता पक्ष इसे लागू करता है। संसद की गरिमा जीवित रहनी चाहिए। मुझसे किसी ने सर्वदलीय बैठक के बारे में पूछा तो मैंने अपने उस मित्र से यही कहा कि हर लोकसभा सत्र आरंभ होने से पहले सर्वदलीय बैठक की व्यवस्था है जिसमें सहयोग की अपेक्षा की अपील सबसे की जाती है और फिर बैठक खत्म हो जाती है परंतु जब लोकसभा का सत्र आरंभ होता है तो ऐसा लगता है कि लोकतंत्र में सब कुछ अलोकतंत्र चल रहा है और ये काम वो लोग कर रहे हैं जो सांसद लोग हैं। कोई सत्ता पक्ष से हो या विपक्ष से हर किसी को अहसास होना चाहिए कि सबकुछ राजनीतिक नफा-नुकसान के तहत नहीं तौला जाना चाहिए।

देश पहले है। देश है तो हम हैं। सरकार है तो सब कुछ है। इसी तरह सरकारें भी विरोधी विचारधारा को एक ऐसा अवसर दे जिसे वो तर्कों के रूप में अपने साथ जोड़ सके। देश के सर्वप्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू और तात्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के बीच अक्सर लोकसभा में तल्खियां होती थी लेकिन वो बहुत स्वस्थ होती थी। आज दुनियादारी बदल गई है। लोकसभा की कार्यवाही और उच्च सदन राज्यसभा की कार्यवाही न चलने पर सोशल मीडिया पर सत्ता पक्ष और विपक्ष को जिस तरह से कोसा जा रहा है वह हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहा है। ये कैसा लोकतंत्र है, जहां हर कोई अपनी बात कहने के लिए एक-दूसरे से भिड़ रहा है। लोकसभा में कोई कागज के जहाज उड़ा रहा है, कोई परचों पर लिखकर नुमाइश कर रहा है, कोई स्पीकर के आसन के पास जाकर बैठ रहा है और अपना रोष व्यक्त कर रहा है। सोशल मीडिया पर लोग एक-दूसरे से अपनी भावनाएं शेयर करते हुए कह रहे हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जरूरत से ज्यादा आजादी चाहे वो सड़क पर हो या संसद में हो वह नहीं होनी चाहिए। वर्ना लोकतंत्र की मूल आत्मा मर जाएगी। रही बात लोकतंत्र की शर्मशारी की तो वो हर रोज हो रही है जिससे हमें बचना होगा, ऐसी बातें सोशल साइट्स पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए गंभीर संदेश छोड़ रही हैं।

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