बिना गठबंधन के अकाली-भाजपा का क्या होगा हश्र? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

बिना गठबंधन के अकाली-भाजपा का क्या होगा हश्र?

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी के बीच गठबंधन होने से निश्चित तौर पर हिन्दू सिख एकता को बल मिलता है। लम्बे समय तक गठबंधन रहने के बाद पिछले कुछ समय पहले दोनों पार्टियों में आई खटास के बावजूद सभी को ऐसा लग रहा था कि लोक सभा चुनाव से पहले दोनों पार्टियों में पुनः तालमेल बैठ जाएगा क्योंकि जहां अकाली दल को अपनी खोई हुई जमीन बिना भाजपा के नहीं मिल सकती तो वहीं भाजपा भी बिना अकाली दल के गांवों में अपनी पकड़ नहीं बना सकती। बरगाड़ी में गुरु ग्रन्थ साहिब बेअदबी, बहबल कलां गोली काण्ड, सुमेध सैनी को उच्च पद देना जैसी अनेक ऐसी बातें हुई जिसके चलते सिख वोटर अकाली दल से खफा दिखाई दे रहा था। इसी बीच किसानी आंदोलन ने रही सही कसर पूरी कर दी जिसके चलते पंजाब का किसान भी भाजपा के साथ-साथ अकाली दल के भी खिलाफ खड़ा हो गया जिसके चलते अकाली दल को ना चाहते हुए भी भाजपा से गठजोड़ तोड़ना पड़ा।
दोनों पार्टियों के नेताओं के द्वारा एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी भी की जाती रही मगर दोनों ही पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व चाहता था कि किसी भी तरह से लोकसभा चुनाव से पहले हाथ मिला लिया जाए। शायद इसी के चलते भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ ने प्रकाश सिंह बादल की बरसी पर पहुंचकर उनकी जमकर प्रशंसा की थी। दोनों ही पार्टियां पंजाब में हिन्दू-सिख एकता के लिए, पंजाब की बेहतरी के लिए गठबंधन को जरूरी बताते आ रहे थे पर आज जब दोनों ही पार्टियों ने अकेले अपने दम पर पंजाब की सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया तो ऐसे में इस फैसले को कोई पंजाब तो कोई पंथ के लिए बेहतर बता रहे हैं। असल में देखा जाए तो शुरु से ही गठबंधन का फर्ज अकेले अकाली दल ही निभाता दिख रहा था भाजपा के द्वारा कभी भी अकाली दल को ज्यादा त्वज्जो नहीं दी गई। अकाली दल के मुखिया भी अपने पारिवारिक सदस्यों को मंत्री पद दिलवाकर संतुष्ट हो जाते कभी भी उन्होंने पंथक मुद्दों को हल करवाने के लिए कुछ खास सोच ही नहीं रखी। मगर मौजूदा समय में पंजाब की जनता ने उन्हें हाशिये पर लाकर अहसास करवा दिया कि अकाली दल का गठन क्यांे किया गया था। बीते दिनों अकाली दल की कौर कमेटी मींिटंग में पुराने अकालियों ने सुखबीर सिंह बादल को साफ कह दिया था कि अकाली दल को अगर आने वाले समय में मजबूत करना है तो पंथक मुद्दों को आगे रखकर फैसला लेना होगा। मीटिंग में बन्दी सिखों की रिहाई, अटारी और फिरोजपुर बार्डर के रास्ते व्यापार को मंजूरी, किसानी मसले जैसे पंथक मुद्दों को हल करने की शर्त भाजपा नेतृत्व के आगे रखी गई तभी साफ हो गया था कि अब गठबंधन होने के आसार बहुत कम होंगे। भाजपा अकाली दल की मांगों को पूरा करके समूचे देश में हिन्दू वोटरों को नाराज कभी नही ंकर सकती। सवाल अब यह बनता है कि गठबंधन ना होने का किसे फायदा होगा और किसे नुकसान पर जो नेता अकाली दल छोड़कर भाजपा में गये थे उन्होंने राहत की सांस जरुर ली होगी क्योंकि गठबंधन होने के बाद उन्हें ना चाहते हुए भी उन लोगों के साथ मेलजोल रखना पड़ता जिन्हें वह देखना भी पसंद नहीं करते। वहीं दिल्ली के अकाली नेताओं के मंसूबों पर भी पानी फिर गया जो गठबंधन के बाद दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी पर काबिज होने की सोच रखे हुए थे।
दिल्ली के सिखों की प्रधानमंत्री मोदी के प्रति सोच
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा बीेते समय में जिस तरह से सिखों के लम्बे समय से लटकते मसलों को हल किया गया। गुरु तेग बहादुर जी की शहादत को नमन होते हुए देश की जनता को यह बताने की कोशिश की गई कि आज अगर देश सलामत है तो सिख गुरुओं के बलिदान की बदौलत ही है। देशवासी बाल दिवस को पंडित जवाहर लाल नेहरु के जन्मदिन पर मनाया करते थे, प्रधानमंत्री मोदी ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के साहिबजादों के शहीदी दिन को याद करते हुए मनाया गया। दिल्ली से लेकर कन्याकुमारी तक सभी पैट्रोलपंप पर साहिबजादों के गौरवमई इतिहास की जानकारी देते हुए साईनबोर्ड लगवाए गये। देश के सभी स्कूलों में साहिबजादों का इतिहास पढ़ाया गया जिसका असर यह हुआ कि आज देश का बच्चा बच्चा साहिबजादों के इतिहास से वाकिफ हो गया। जो लोग आज तक सिखों को नफरत की निगाह से देखते आए थे क्योंकि देश की आजादी के बाद से देश की बागडोर जिन हाथों में रही उन्होंने सिखों की बहादुरी के किस्से लोगों को बताने के बजाए उन्हें केवल मजाक का किरदार बताया गया। भाजपा सिख सैल के नेता और पश्चिमी जिले भाजपा के उपाध्यक्ष रविन्दर सिंह रेहन्सी की माने तो समूचे देश के सिखों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच को सलाम करना चाहिए। वह स्वयं को सौभाग्यशाली समझते हैं जो उनका रिश्ता जत्थेदार अवतार सिंह हित से जुड़ा जिनकी सिख समाज में खासी पकड़ रही है। वह भाजपा के टिकट पर पार्षद भी रहे और विधायक का चुनाव भी लड़े और उनके कारण ही आज रविन्दर सिंह रेहन्सी भी भाजपा में अच्छी पकड़ रखते हैं। 1984 सिख कत्लेआम के बाद से पश्चिमी दिल्ली से भाजपा में जो भी व्यक्ति सांसद का चुनाव लड़ता वह जत्थेदार अवतार सिंह हित का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अवश्य पहुंचता। 1984 सिख कत्लेआम के बाद से देखा जाता है कि दिल्ली का ज्यादातर सिख वोटर भाजपा के पक्ष में ही वोट करता आया है। बीते समय में आप पर उन्होंने विश्वास किया मगर आप की नीतियों को सिख विरोधी ही महसूस किया और अब तो कांग्रेस और आप में गठबंधन के चलते शायद सिख वोटर फिर से पूरी तरह भाजपा के पक्ष में जाता दिख रहा है।
शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी सदस्य एवं राजौरी गार्डन गुरुद्वारा के अध्यक्ष हरमनजीत सिंह की मानें तो पंजाब में अकाली दल भाजपा के बीच भले ही गठबंधन ना हुआ हो पर दिल्ली का सिख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिखों के प्रति किये गये कार्यों को ध्यान में रखकर ही वोट करेगा। उनका यह भी मानना है कि विधान सभा चुनाव में सिख वोटरों की वोट की बदौलत ही दिल्ली में दो बार आप की सरकार बनी पर बावजूद इसके किसी एक सिख को भी मंत्री ना बनाया जाना, पंजाबी भाषा को उसका बनता सम्मान ना देना और अब उस कांग्रेस पार्टी से हाथ मिलाना जिसे सिख समाज कभी पंसद नहीं करेगा उसके साथ हाथ मिलाकर आम आदमी पार्टी ने सिखों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है जो आप को भारी पड़ सकता है।
पाकिस्तान भारत के साथ व्यापार का इच्छुक
आर्थिक मन्दी से जूझ रहा पाकिस्तान भारत के साथ व्यापार का इच्छुक दिखाई दे रहा है। इससे पहले भी दोनोें देशों के बीच अटारी, वाघा, फिरोजपुर आदि बार्डरों के रास्ते व्यापार होता आया है मगर बीते समय में जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान ने भारत से जमीनी रास्ते से व्यापार पूरी तरह से बन्द कर लिया था हालांकि समुद्र और हवाई रास्ते से कुछ व्यापार अभी भी जारी था मगर अब एक बार फिर से दोनों देशों में व्यापार शुरू होने की बात सामने आ रही है जिसके बाद पाकिस्तान ही नहीं भारत का पंजाबी व्यापारी भी प्रसन्न दिखाई दे रहा है। बंटवारे से पहले पंजाब के एक शहर से दूसरे शहर में बिना किसी रोक टोक के व्यापार हुआ करता था मगर बंटवारे के बाद व्यापार करने के लिए सरकारों की मंजूरी लेना अनिवार्य हो गया और समय समय पर सरकारों में चलती आपसी खींचतान का असर दोनों देशों के व्यापार पर पड़ा। अब अगर दोनों देशों की सरकारें व्यापारियों को मंजूरी देने की सोच रहे हैं तो यह एक अच्छी पहल तो हो सकती है मगर इसके साथ ही सुरक्षा एजेन्सियों की जिम्मेवारी बड़ जाएगी क्योंकि दोनों देशों के कट्टरपंथी इसकी आड़ लेकर अपने मंसूबों को अन्जाम देने की कोशिशें भी करेंगे जिनसे निपटना सुरक्षा एजेन्सियों का काम होगा। अगर वह इसमें कामयाब होते हैं तो निश्चित तौर पर दोनों देशों में खासकर पंजाब प्रान्त के लोगों रोजगार के साधन भी मिलेंगे और लोगों को एक दूसरे की चीजें आसानी से और सस्ते दामों पर मिल सकेंगी जो कि अभी दूसरे देशों से होकर भारत और पाकिस्तान में पहुंचती हैं।

– सुदीप सिंह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

13 − 9 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।