93000 पाक सैनिकों का सरेंडर और बन गया बांग्लादेश- 93000 Pak Soldiers Surrendered And Bangladesh Became

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जब भारत ने बदल दिया दुनिया का नक्शा, 93000 पाक सैनिकों का सरेंडर और बन गया बांग्लादेश

1971 Indo Pak War

भारत में 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन यानी 16 दिसंबर 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को पटखनी देते हुए सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था। इसके साथ ही एक दक्षिण एशिया में एक नए देश बांग्लादेश ने जन्म लिया था। आइए जानते है पाकिस्तान से अलग हुए बाग्लादेश के उदय की कहानी।

1971 Indo Pak War

1970 से जुड़ी बांग्लादेश की कहानी

पाकिस्तान से बांग्लादेश के अलग होने की जड़ 1970 में हुए पाकिस्तान के आम चुनाव ने जुड़ी है। इन चुनाव के नतीजों ने पाकिस्तान का विघटन तय कर दिया था। दरअसल शेख़ मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग को इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा सीट मिली, लेकिन पश्चिम में ज़ुल्फिक़ार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) को ज़्यादा सीट हासिल हुईं।

313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में पूर्वी पाकिस्तान के मुजीबुर रहमान की पार्टी को 169 में से 167 सीट मिली। उनके पास पूर्ण बहुमत था लेकिन भुट्टो ने चुनाव परिणाम को ही मानने से ही इंकार कर दिया और उनका विरोध करना शुरू कर दिया था।

1971 Indo Pak War

बता दें, पाकिस्तान ने शुरू से ही अपने दूसरे भाग यानी पूर्वी पाकिस्तान पर सामाजिक और राजनैतिक दबाव बनाना शुरू कर दिया था। पूर्वी पाकिस्तान संसाधन में पाकिस्तान से बेहतर था लेकिन राजनीति में उसका प्रतिनिधित्व बेहद कम था। पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश ने आवाज उठाई तो उस पर जुल्म ढ़ाये गए।

भारत पहुंचे करोड़ शराणार्थी

अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान पर अत्याचार करने और लोगों को मौत के घाट उतारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। पाकिस्तानी सेना के लगातार बढ़ते अत्याचार के चलते बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत में शरण लेने पर मजूबर होने लगे। जहां देखते ही देखते भारत में बांग्लादेशी शरणार्थियों की संख्या एक करोड़ तक पहुंच गई। इंदिरा गांधी सरकार ने न सिर्फ इन शरणार्थियों की मदद की बल्कि उनके लिए बिहार, बंगाल, असम, त्रिपुरा में राहत शिविर भी लगवाई।

1971 Indo Pak War

पाकिस्तानी सेना के आतंक से बचने के लिए बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों के भारत आने से शरणार्थी संकट बढ़ने लगा था। इससे भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया। इसे देखते हुए मार्च, 1971 में इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही। जुलाई, 1971 में भारतीय संसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़ाकों की मदद करने की घोषणा की गई। भारतीय सेना ने मुक्ति वाहिनी के सैनिकों को मदद और प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।

3 दिसंबर को पाकिस्तान ने किया भारत पर हमला

पूर्वी पाकिस्तानी नागरिकों को अपने देश में शरण देने और उनकी मदद करने से खफा पाकिस्तान ने सारी हदें तब पार कर दी जब उसने उल्टा भारत को ही युद्ध के लिए धमकी दे दी। दरअसल, 1971 के नवंबर महीने में पाकिस्तानी हेलिकॉप्टर भारतीय सेना में बार-बार दाखिल हो रहे थे जिसके बाद पाकिस्तान को इस पर रोक लगाने की चेतावनी भी दी गई, लेकिन उल्टा तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहया खान ने भारत को ही 10 दिन के अंदर जंग की धमकी दे डाली। पाकिस्तान इस बात से उस वक्त तक अंजान था कि भारत अपनी तैयारी पहले ही कर चुका था।

1971 Indo Pak War

3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के ठिकानों पर हमला बोल दिया। इसके बाद भारत भी पाकिस्तान की इस हरकत के जवाब में सीधे तौर पर इस युद्ध में उतर गई। ये युद्ध 13 दिन तक चला। तेरह दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के बहादुरी और शौर्य के सामने पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए। 16 दिसंबर 1971 को शाम 4.35 बजे पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, इसके साथ ही एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का ये सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था।

विजय दिवस के 52 साल पूरे

इस युद्ध में सैकड़ों सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी, जिसके बाद से 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। ये दिन भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा किए गए बलिदानों को याद करते हुए चिंतन और श्रद्धांजलि का दिन है। यह दिन अत्यधिक सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व रखता है, जो भारत और बांग्लादेश के बीच मजबूत संबंधों पर जोर देता है। भारत युद्ध के दौरान अपने सशस्त्र बलों द्वारा प्रदर्शित बहादुरी और ताकत को श्रद्धांजलि देता है। मालूम हो, बांग्लादेश इस दिवस को थोड़ अंतर वाले उच्चारण के साथ ‘बिजॉय दिबोस’ के नाम से मनाता है।

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