झारखंड की सियासत में नौवें दिन भी सस्पेंस कायम रहा। राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने पर चुनाव आयोग का मंतव्य बीते गुरुवार को ही राजभवन पहुंच गया था, लेकिन इसपर राज्यपाल के फैसले का खुलासा अब तक नहीं हुआ है। इस बीच संकेत हैं कि आने वाले तीन दिन राज्य की सरकार और सियासत के लिए भारी उथल-पुथल वाले हो सकते हैं।
5 सितंबर को विधानसभा की विशेष बैठक में विश्वास मत साबित करने की तैयारी
एक तरफ झारखंड सरकार ने आगामी 5 सितंबर को विधानसभा की विशेष बैठक में विश्वास मत साबित करने की तैयारी की है, तो दूसरी तरफ राज्यपाल रमेश बैस शुक्रवार को अचानक नई दिल्ली रवाना हो गये। संभावना जताई जा रही है कि हेमंत सोरेन की विधायकी से जुड़े मसले पर नई दिल्ली में वह केंद्र सरकार की शीर्षस्थ शख्सियतों के साथ विमर्श के बाद अपना फैसला सार्वजनिक कर सकते हैं। विधानसभा के विशेष सत्र के ठीक पहले राज्यपाल का फैसला सार्वजनिक होने से राज्य में संवैधानिक ऊहापोह की स्थिति बन जायेगी। यह तय माना जा रहा है कि राज्यपाल का फैसला हेमंत सोरेन के लिए प्रतिकूल होने वाला है। विशेष सत्र के ठीक पहले उनकी विधायकी चली जाती है तो सवाल यह उठेगा कि जब सदन का कोई नेता ही नहीं, तो सत्र का औचित्य क्या होगा?
क्या चली जाएगी हेमंत सोरेन की सदस्यता ?
झारखंड विधानसभा के पहले अध्यक्ष और संसदीय विषयों के गहरे जानकार इंदर सिंह नामधारी का कहना है कि हेमंत सोरेन की सदस्यता पर राज्यपाल का क्या फैसला आता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन अगर ऐसी स्थिति बन जाती है कि सत्र के पहले उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म हो जाये तो एक संवैधानिक जटिलता का प्रश्न खड़ा हो जायेगा। नियम यह कहता है कि सत्र आहूत हो गया है और स्पीकर द्वारा इसे लेकर समन जारी हो गया है तो उसे स्थगित करने का अधिकार स्पीकर को ही है, लेकिन यह फैसला भी वह सदन के अंदर ही कर सकते हैं। सदन का कोई नेता न होने की सत्र की कार्यवाही का औचित्य क्या होगा ? यह अपने आप में एक ऐसा सवाल है, जिससे अभूतपूर्व संवैधानिक दुविधा की स्थिति बन सकती है।
सरकारी खजाने से 2.6 करोड़ से ज्यादा की रकम मंजूर करने के फैसले पर भी कई तरह की हो रही है चर्चा
इधर, राज्य के सत्ताधारी गठबंधन ने हॉर्सट्रेडिंग की आशंकाओं के मद्देनजर अपने 33 विधायकों को पिछले चार दिनों से रायपुर के एक रिसॉर्ट में ठहरा रखा है। इस बीच झारखंड कैबिनेट की ओर से वीआईपी और वीवीआईपी मूवमेंट के उद्देश्य से एक माह के लिए चार्टर्ड विमान किराये पर लेने और इसके लिए सरकारी खजाने से 2.6 करोड़ से ज्यादा की रकम मंजूर करने के फैसले पर भी कई तरह की चर्चा हो रही है। यह आम चर्चा है कि सरकार ने मौजूदा राजनीतिक संकट को देखते हुए यह विमान विधायकों को एक जगह से दूसरी जगह आसानी से लाने-ले जाने के उद्देश्य से किराये पर लिया है।