ग्वालियर (मध्यप्रदेश) : मीसाबंदियों की पेंशन रोके जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर पांच फरवरी तक जबाव मांगा है। याचिका लोकतंत्र सेनानी संघ की ओर से मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ में दायर की गई है।
जस्टिस एस. अरविंद धर्माधिकारी ने मंगलवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए नाटिस जारी किया। याचिका में कहा गया है कि यह पेंशन आपातकाल में जेल गए राजनीतिक कार्यकर्ताओं को दी जा रही है। मध्यप्रदेश में 2,286 लोगों 25,000 रुपये प्रतिमाह का पेंशन दिया जाता है। वर्तमान सरकार ने दुर्भावना के आधार पर यह पेंशन बंद कर दी, जबकि इसके लिए विधानसभा में विधेयक पारित किया गया था।
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सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी ने कहा कि सरकार ने मीसाबंदियों की पेंशन बंद नहीं की है, बल्कि रोकी है। सरकार जांच कर रही है कि जिन लोगों को यह पेंशन मिल रही है, वे पात्र हैं भी या नहीं। सरकार को शिकायतें मिली थीं कि कई लोगों को केवल सिफारशी पत्र के आधार पर ही पेंशन दी गई। इसलिए जांच कराई जा रही है।
मालूम हो कि मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार ने मीसाबंदियों का पेंशन इस महीने से अस्थाई तौर पर बंद कर दिया, जिससे विवाद शुरू हो गया है। मीसाबंदी पेंशन को लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि के नाम से भी जाना जाता है।
इस संबंध में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने गत 29 दिसंबर को सर्कुलर जारी कर मीसाबंदी पेंशन योजना की जांच के आदेश दिए। सरकार ने बैंकों को भी मीसाबंदी के तहत दी जाने वाली पेंशन जनवरी 2019 से रोकने के निर्देश जारी किए हैं।
सर्कुलर के मुताबिक लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि भुगतान की वर्तमान प्रक्रिया को और अधिक सटीक एवं पारदर्शी बनाया जाना आवश्यक है। साथ ही लोकतंत्र सैनिकों का भौतिक सत्यापन कराया जाना भी आवश्यक है। अत: आगामी माह से लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि राशि का वितरण उपरोक्तानुसार कार्यवाही होने के पश्चात किया जाये।