सरकार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की निगरानी के लिये प्रस्तावित न्यास (ट्रस्ट) का गठन इस मुद्दे पर आए उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुरूप करेगी। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने इस उद्देश्य के लिये संसद में एक विधेयक लाये जाने की अटकलों को बृहस्पतिवार को खारिज करते हुए यह बात कही।
अधिकारी ने बताया कि पिछले शनिवार को आए उच्चतम न्यायालय के आदेश में कहा गया था कि ‘अयोध्या में कतिपय क्षेत्र अधिग्रहण अधिनियम,1993’ की धारा-‘छह’ केंद्र सरकार को एक न्यास या प्राधिकार गठित करने का अधिकार देती है जिसे जमीन सौंपी जाएगी।
उन्होंने कहा कि न्यास गठित करने के लिये अलग से कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि शीर्ष न्यायालय का आदेश कानून जितना ही अच्छा है और यह विधायिका पर भी बाध्यकारी है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा था, ‘‘ हमारा यह मानना है कि धारा छह और सात में प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार को एक योजना बनाने का निर्देश देना जरूरी होगा,ताकि एक न्यास या अन्य उपयुक्त तंत्र गठित किया जा सके, जिसे मुकदमा पांच (रामलला विराजमान की ओर से दायर वाद) में डिक्री की शर्तों के अनुसार जमीन सौंपी जाए।’’
न्यायालय ने कहा था, ‘‘जमीन के लिये चुने गये न्यास या संस्था के प्रबंधन के संबंध में शक्तियां एवं अधिकार निहित करने के लिये सभी आवश्यक प्रावधान इस योजना में शामिल होंगे।’’
इससे पहले, दिन में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संवाददाताओं से कहा कि न्यायालय ने उसे (सरकार को) जो कुछ कहा है, वह केंद्र सरकार करेगी। हालांकि, उन्होंने इस बारे में विस्तार से कुछ कहने से इनकार कर दिया।