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चांद के बारे में 10 ख़ास बातें, जिन्हें जान कर आप हो जाएंगे हैरान, बड़ी रहस्यमयी हैं वो जगह

चंद्रयान 3 ने चाँद की सतह पर लैंडिंग करके भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र तक पहुंचने वाला पहला देश बनाया और इसी के साथ अपने नाम एक और ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी दर्ज कराया हैं।

चंद्रयान 3 ने चाँद की सतह पर लैंडिंग करके भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र तक पहुंचने वाला पहला देश बनाया और इसी के साथ अपने नाम एक और ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी दर्ज कराया हैं। 23 अगस्त को चंद्रयान 3, 6 बज कर 04 मिनट पर चाँद की सतह पर था। इसरो के सभी वैज्ञानिकों के साथ साथ सभी भारतवासी और दुनिया के लोगों की नज़रें इस सुनहरे पल पर टिकी हुई थीं। तो आइये अब इसी ख़ास पल को और ख़ास बनाने के लिए आपको चाँद के बारे में कुछ ऐसी अनोखी बातें बताते हैं जो शायद ही आपको पता होंगी।  
चंद्रमा का आकर गोल हैं या नहीं?
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पूर्णिमा के दिन आपने गोल चंद्रमा देखा होगा। लेकिन आपको बता दें कि चंद्रमा, एक उपग्रह की तरह गोल नहीं है बल्कि ये अंडाकार है। इसलिए चांद को देखते हुए आपको इसका सिर्फ कुछ ही हिस्सा दिखाई देता है। चांद भी अपने ज्यामितीय केंद्र से 1.2 मील दूर है।
चाँद पूरा दिखाई देता हैं या नहीं?
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जब आप चांद को देखते हैं, तो आपको उसका केवल 59% हिस्सा ही दिखता है। माना जाता है कि अगर आप अंतरिक्ष में जाकर इसी 41% पर खड़े हो जाएंगे, तो आपको धरती भी नहीं दिखाई देगी। धरती से देखने लायक हिस्सा केवल 59% ही हैं। 
ब्लू मून शब्द के पीछे का रहस्य  
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साल 1883 में इंडोनेशियाई द्वीप क्राकातोआ में हुए एक ज्वालामुखी विस्फोट ने ब्लू मून नाम के शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया था, जो चंद्रमा से संबंधित था। ये ज्वालामुखी विस्फोट पृथ्वी के इतिहास में सबसे खतरनाक था। विस्फोट की आवाज पूरे पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में सुनी गई। राख आसमान में फैल गई। राख इतनी बढ़ गई थी कि चांद नीला दिखने लगा।
कौन से सीक्रेट प्रोजेक्ट पर हुआ काम?
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दुनिया ने एक समय ये भी देखा, जब अमेरिका चंद्रमा पर परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने पर विचार कर रहा था। अमेरिका ऐसा करके सोवियत संघ को अपनी शक्ति दिखाना चाहता था। इस गुप्त कार्य को ‘A Study of Lunar Research Flights’ और ‘A119’ नाम दिया गया था।
चाँद पर क्यों हैं गड्डे?
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हाल ही में इसरो ने चांद की कुछ फोटो पोस्ट की हैं। जिसमें लोगों को चांद पर काफी गड्ढे दिखाई दिए थे। यहां करीब चार अरब साल पहले आकाशीय पिंडों ने ये गड्ढे बनाए। इन छिद्रों को इंपैक्ट क्रेटर भी कहते हैं।
पृथ्वी की रफ़्तार कम क्यों होती हैं?
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पृथ्वी की रफ्तार चांद से कम हो रही है। पृथ्वी के बेहद करीब होने पर उसे पेरिग्री कहा जाता है। तब सामान्य से बहुत अधिक ज्वार-भाटा होता है। इस दौरान पृथ्वी की घूमने की क्षमता चंद्रमा से प्रेरित होती है। इसलिए पृथ्वी हर सौ वर्ष में 1.5 मिलि सेकंड धीमी होती है।
चाँद की रोशनी के पीछे का राज़ 
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पूर्णिमा का चांद प्रकाश से भरा हुआ दिखता है। मानो इससे बढ़कर कोई और चीज नहीं बनी है। सूर्य पूर्णिमा पर इस चांद की चमक चौबीस गुना अधिक है।
चाँद न फैलता हैं, न सिकुड़ता हैं 
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लियोनार्डो डा विंसी इतिहास में पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने पता लगाया कि चांद सिकुड़ नहीं रहा है या फैल नहीं रहा है। हमारी निगाहों से उसका छोटा सा हिस्सा ओझल हो जाता है।
आखिर क्रेटर का नाम रखते कैसे हैं?
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चंद्रमा के गड्ढों और दूसरी खगोलीय चीजों को नाम देना अंतर्राष्ट्रीय एस्ट्रॉनॉमिकल यूनियन का काम है। महान वैज्ञानिकों, कलाकारों और खोजकर्ताओं के नाम पर ये गड्ढे, यानी क्रेटर्स, नामित हैं

दक्षिणी ध्रुव क्यों हैं आखिर इतना ख़ास?
माना जाता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुवीय भाग पर चंद्रयान-3 उतरेगा जो कि बहुत रहस्यमय है। नासा ने बताया कि यहां बहुत से गहरे गड्ढे और पहाड़ हैं, जिनकी छांव वाली सतह अरबों वर्षों से सूर्य की रोशनी से बच गई है। चांद का दक्षिणी ध्रुव करीब ढाई हजार किलोमीटर चौड़ा है। इसके अलावा, ये आठ किलोमीटर गहरे गड्ढे के किनारे हैं।
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इस गहरे गड्ढे को सोलर प्रणाली का सबसे पुराना इंपैक्ट क्रेटर भी कहा जाता है। इंपैक्ट क्रेटर किसी ग्रह या उपग्रह में बड़े उल्का पिंड या ग्रहों की टक्कर से बनने वाले गड्ढों को कहते हैं। नासा के अनुसार, सूर्य चंद्रमा के इस हिस्से में क्षितिज से हल्का ऊपर या नीचे रहता है। इसलिए दिन में यहां कुछ रोशनी आती है। तापमान 54 तक रहता है।

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