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नग्नता और अश्लीलता

देश में खजुराहों और कई अन्य स्थलों पर नग्न महिला और पुरुषों की मूर्तियों को आर्ट और पवित्र माना जाता है।

देश में खजुराहों और कई अन्य स्थलों पर नग्न महिला  और पुरुषों की मूर्तियों को आर्ट और पवित्र माना जाता है। हमारे यहां ​भी चित्रों, मूर्तियों में अनेक कलाएं प्रदर्शित हैं। लोग उन्हें यौन भावना की बजाय कला की दृष्टि से देखते हैं। नग्नता और अश्लीलता में अंतर है। इसे परिभाषित करते हुए केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट में सैमीन्यूड बॉडी पेंट करवाने के केस में महिला कार्यकर्ता रेहाना फातिमा को बरी कर दिया है। रेहाना फातिमा सबरीमाला मंदिर में प्रवेश को लेकर भी चर्चा में रहीं और वह मॉडल भी हैं। जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि नग्नता को अश्लीलता या अनैतिकता में बांटना गलत है। नग्नता को सैक्स से नहीं जोड़ना चाहिए। महिला की न्यूड बॉडी का वर्णन या​ चित्रण भी हमेशा कामुक या अश्लील नहीं होता। रेहाना ने नाबालिग बच्चों से बॉडी पेंट कराने का वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किया था जो काफी चर्चित हुआ। लाखों लोगोें ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रियाएं दीं। काफी हंगामा होने के बाद केरल स्टेट कमीशन फॉर प्रोटैक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स पाक्सो एक्ट के तहत रेहाना के विरुद्ध दो केस दर्ज किए। 2020 में केरल हाईकोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी लेकिन अब केरल हाईकोर्ट ने रेहाना फातिमा के वीडियो को महिला शरीर के वस्तुकरण के खिलाफ संदेश देने वाला बताया। हाईकोर्ट ने कहा कि महिलाओं को अपने शरीर पर स्वायत्तता के अधिकार को अक्सर वंचित किया जाता है और उन्हें धमकाया जाता, भेदभाव किया जाता है, अलग-थलग किया जाता है और उनके शरीर और जीवन के बारे चुनाव करने के लिए सताया जाता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पुरुषों की स्वायत्तता पर कभी सवाल नहीं उठाया जाता। फैसले में पुरुष और महिला निकायों के बारे में समाज में दोहरे मानकों के बारे में भी टिप्पणी की है। 
अदालत ने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है ​कि अगर एक मां अपने बच्चों को अपने शरीर को कैनवास के रूप में पेंट करने की अनुमति देती है ताकि उन्हें नग्न शरीर को सामान्य रूप से देखने के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके। रेहाना फातिमा के खिलाफ किया गया मुकद्दमा कोई नया नहीं है। इससे पहले भी कुछ फिल्म अभिनेता ऐसे मामलों में फंस चुके हैं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि एक महिला को अपने शरीर का इस्तेमाल करने की आजादी है जो समानता का मौलिक अधिकार है और  उसकी निजता का एक पहलू है। शरीर की आजादी संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत आती है। पाठकों को याद होगा कि दो दशक पहले मणिपुर में मनोरमा नामक युवती की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी, तब मणिपुर की मध्यम आयु की माओं ने सुरक्षा बलों को शर्मसार करने के लिए नग्न होकर प्रदर्शन किया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक समय था जब केरल की निचली जाति की महिलाओं को अपने सिर को कपड़े से ढकने के लिए संघर्ष करना पड़ता  था। वहां केवल ऊंची जाति के लोगों को ही कपड़े पहनने का अधिकार था। इससे पहले साल 2020 में बॉलीवड एक्टर और मॉडल मिलिंद सोमन और पूनम पांडे पर इस तरह के मामले में कार्रवाई हो चुकी है। न्यूड फोटोग्राफी को लेकर कुछ लोगों कहना है कि यह कला को रचनात्मक ढंग से पेश करने का तरीका है। वहीं कुछ लोग इसे कला के नाम पर नग्नता परोसना और अश्लीलता करार देते हैं। कानून के अलावा इसे सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर भी गलत ठहराते हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक के बाद इंटरनेट और सोशल मीडिया के आ जाने से अश्लीलता की परिभाषा, उसके दायरे और कानून को लेकर बहस और तेज हो गई है।
ऑक्सफोड डिक्शनरी के मुताबिक स्वीकार्य नैतिकता और शालीनता के मानदंडों के लिहाज से अप्रिय, अपमानजनक या घृणित की श्रेणी में आने वाला सबकुछ अश्लीलता के दायरे में आता है। हालांकि कानून में इसे स्पष्ट तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है और इसका दायरा भी नहीं बताया गया है. आईपीसी धारा 292 और आईटी एक्ट 67 में उन सामग्री को अश्लील बताया गया है जो कामुक  हो या कामुकता पैदा करती हो या फिर इसे देखने, पढ़ने और सुनने से कामुकता पैदा होती हो। कानून में कामुक और कामुकता किसे माना जाए इसको लेकर स्पष्ट नहीं किया गया है। इसकी व्याख्या करने का अधिकार कोर्ट पर छोड़ दिया गया है। जिस तरह से सामुदायिक मानदंडों में बदलाव होते हैं उसी तरह अश्लीलता की परिभाषा भी बदलती रहती है। केरल हाईकोर्ट का फैसला एक नजीर है, क्योंकि कार्ट ने मां-बच्चे का रिश्ता पृथ्वी का सबसे पवित्र रिश्ता माना है। मातृत्व का सार शुद्ध और निर्मल प्रेम है।

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