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IBC के तहत रोक केवल कर्जदार कंपनियों पर लागू, उसके प्रवर्तकों पर नहीं -SC

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिवाला और रिण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के प्रावधानों के तहत लगाई गई रोक केवल देनदार कंपनियों पर लागू है लेकिन यह रोक ऐसी कंपनियों के प्रवर्तकों का बचाव नहीं करती है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिवाला और रिण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के प्रावधानों के तहत लगाई गई रोक केवल देनदार कंपनियों पर लागू है लेकिन यह रोक ऐसी कंपनियों के प्रवर्तकों का बचाव नहीं करती है।
कोरोना काल के दौरान आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगाये जाने के बाद कंपनियों के खिलाफ आईबीसी के तहत नई कार्रवाई शुरू करने अथवा मौजूदा कार्रवाई पर रोक लगाई गई थी।
शीर्ष न्यायालय की ओर से टिप्पणी आवास परियोजना के पूरा नहीं होने पर डेवेलपर और मकान खरीदारों के बीच विवाद से संबंधित एक मामले में आई है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने घर खरीदारों को एक मामले में टुडे होम्स एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लि. के प्रवर्तकों के खिलाफ मामले को आगे बढ़ाने की अनुमति देते हुये यह कहा। हालांकि, आईबीसी की धारा 14 के तहत मामलों में आगे बढ़ाने पर रोक लागू है।
पीठ ने इस साल की शुरुआत में दिये गये एक फैसले का उल्लेख करते हुये कहा कि इस अदालत ने कहा था कि कर्जदार कंपनियों के खिलाफ परक्राम्य लिखत कानून के तहत कार्यवाही को आईबीसी की धारा 14 के तहत लागू किये गये रोक प्रावधान के तहत कवर किया जायेगा।
पीठ ने कहा कि उसके आदेश में, ‘‘उसने स्पष्ट करते हुये कहा कि रोक केवल कर्जदार कंपनियों के मामले में थी, कर्जदार कंपनियों के निदेशकों..प्रबंधन के बारे में नहीं, इनके खिलाफ प्रक्रिया को जारी रखा जा सकता है।’’
पीठ ने कहा कि हम स्पष्ट करते हैं कि याचिकाकर्ताओं (घर खरीदारों) को इस अदालत समक्ष हुई निपटान योजना को पूरा करने के संबंध में कर्जदार कंपनियों के प्रवर्तकों के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने से आईबीसी की धारा 14 के तहत लागू रोक के कारण नहीं रोका जाएगा।
उसने कहा कि क्योंकि कर्जदार कंपनियों के संबंध में आईबीसी की धारा 14 के तहत घोषित स्थगन लागू है, इसलिए कंपनियों के खिलाफ कोई नई कार्यवाही नहीं की जा सकती अथवा लंबित कार्यवाही को जारी रखा जा सकता है।
पीठ ने कहा कि घर खरीदारों ने समाधान योजना में निहित प्रावधानों के मद्देनजर प्रवर्तकों की निजी संपत्तियों को कुर्क करने के निर्देश देने का आग्रह किया है। लेकिन समाधान योजना को अभी आबीसी की धारा 31(1) के प्रावधानों के तहत निर्णय लेने वाले प्राधिकरण (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) द्वारा अनुमोदित किया जाना है।
ऐसे में जब समाधान योजना को मंजूरी की प्रतीक्षा है, इस न्यायालय के लिए उस प्रकृति का निर्देश जारी करना उचित नहीं होगा।
पीठ ने कहा, ‘‘इसलिये हमने एनसीएलटी को पहले ही निर्देश दिया है कि वह 21 अगस्त 2021 को दाखिल मंजूरी आवेदन को इस आदेश की प्रमाणीकृत प्रति मिलने के छह सप्ताह के भीतर निपटान करे।’’

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