दक्षिणी दिल्ली : दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट पर ‘बिल्ली खाएगी नहीं तो बिखेर देगी’ कहावत चरितार्थ करने के प्रयास हो रहे हैं। दरअसल वर्तमान सांसद का टिकट कटवाने को लेकर भाजपा में गुटबाजी चल रही है। इस गुट में पूर्व विधायकों से लेकर पूर्व पार्षद और कई धुरंधर जुटे हुए हैं। इन सभी की प्रबल इच्छा है कि किसी तरह बस रमेश बिधूड़ी का टिकट कटना चाहिए। इस सबसे बेपरवाह रमेश बिधूड़ी अपने काम में लगे हुए हैं। यह देखकर लगता है कि टिकट की तो कोई समस्या ही नहीं है।
अब देखना यह होगा कि विरोधी गुट हावी रहता है या रमेश फिर से सबको चकमा देकर बाजी मार ले जाएंगे। सांसद बिधूड़ी का टिकट मिलेगा या नहीं, यह तो पार्टी हाईकमान ही तय करेगी, लेकिन दिल्ली देहात में रमेश बिधूड़ी का नाम प्रमुखता से चर्चा में बना रहता है। उन्हें जमीन से जुड़ा नेता माना जाता है। रमेश बिधूड़ी ने 2003 में पहली बार विधायक बने और उसके बाद 2014 में लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पुहंचे। इस बार भी वह दक्षिणी दिल्ली सीट से प्रबल दावेदार हैं, लेकिन इस बार खेमेबाजी कुछ ज्यादा है।
पूरे लगभग पांच साल बिधूड़ी में जमकर काम किए। काम ऐसे जो अब तक नही हुए थे। संसद में भी उनकी मौजूदगी दमदार रही। अधिकारियों में उनकी छवि दबंग वाली रहती है। लेकिन कुछ विवादों ने भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। दक्षिणी दिल्ली सीट यूं तो ब्राह्मण बहुल सीट है, लेकिन यहां पर जाट, गुर्जरों के गांव भी काफी संख्या में हैं। वहीं दो सीटें सुरक्षित भी हैं। यहां से गुर्जर प्रत्याशी के रूप में प्रबल दावेदारी मानी जाए तो रामवीर सिंह बिधूड़ी का नाम सबसे आगे है।
भाजपा में राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी की देखरेख में वे शामिल हुए थे और दक्षिणी दिल्ली में सभी जाति और समुदाय में उनकी विशेष पकड़ है। बदरपुर से तीन बार वे विधायक भी रह चुके हैं और निगम पार्षदों को अपने दम पर चुनाव लड़ाने का दम-खम रखते हैं। पार्टी में उनकी मजबूत पकड़ है। भाजपा ने उनकी सुनी तो आज दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही होती। उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस के कुछ विधायक भाजपा की सरकार बनवाने को तैयार हो गए थे।
उनके बाद गुर्जर प्रत्याशी के रूप में महरौली के पूर्व विधायक ब्रह्म सिंह तंवर का नाम शामिल है। वे भी तीन बार विधायक रह चुके हैं और उससे पहले वर्षों तक निगम पार्षद भी रहे थे। क्षेत्र में न केवल तंवरों के गांव, बल्कि अन्य लोगों में भी उनकी खास पकड़ है। उनके अलावा गुर्जर प्रत्याशी के रूप में तीसरा नाम बूथ प्रबंधन विभाग दिल्ली प्रदेश प्रमुख धर्मवीर सिंह का है। वह 23 दिसंबर को बूथ प्रबंधन कार्यक्रम से चर्चा में आए। निगम पार्षद रहने के साथ-साथ उद्यान िवभाग के चेयरमैन भी रह चुके हैं। अनुशासन और सरल स्वभाव के चलते वे भी पार्टी में पसंद किए जाते हैं।
गुर्जर प्रत्याशी के अलावा जाट प्रत्याशी की बात करें तो सबसे प्रबल दावेदारी महरौली भाजपा जिलाध्यक्ष आजाद सिंह की मानी जा रही है। वे प्रदेश में उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं और पूर्व में भी जिलाध्यक्ष रहे थे। साकेत से विधायक रह चुके विजय जौली भी टिकट के दावेदार हैं। वे 70 से अधिक देशों का दौरा कर भाजपा का झंडा बुलंद कर चुके हैं। वह हमेशा ही लोगों के बीच मौजूद रहते हैं। उनका सरल स्वभाव व मुस्कान लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। पालम से कई बार विधायक रह चुके धर्म देव सोलंकी का नाम भी जाट प्रत्याशी के रूप में चर्चा में है।
यदि गैर गुर्जर-जाट प्रत्याशी की बात करें तो राज्यसभा सांसद अनिल जैन के नाम की सबसे अधिक चर्चा है। जैन का नाम 2014 के लोकसभा चुनाव में भी दक्षिणी दिल्ली सीट से प्रमुख रूप से उभरकर आया था। उनके अलावा यदि पार्टी किसी ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतारती है तो पवन शर्मा का नाम सबसे ऊपर बताया जा रहा है।
– सतेन्द्र त्रिपाठी